हाफिज मोहम्मद सैफ़ुल इस्लाम मदनी,कानपुर:5 जनवरी सन 2019 को मदरसा अरबिया मदीनतुल उलूम नूरगंज पुखरायां ज़िला कानपुर देहात यूपी में एक रोज़ा अजीमुश्शान माही-ए-शिर्क ओ बिदअत (सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम) कान्फ्रेंस हुई
जलसा की सदारत फरमा रहे जनाब मौलाना मुश्ताक़ अहमद क़ासमी नाज़िम मदरसा मदीनतुल उलूम ने ख़िताब फरमाते हुए कहा कि नबी आख़िरुज़्ज़मां जनाब मोहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम को अल्लाह रब्बुल आलमीन ने माही-ए-शिर्क ओ बिदअत बनाकर भेजा, अल्लाह तआला अपनी ज़ात व सिफ़ात के एतबार से तनहा है उसका कोई सानी नहीं, शरीक नहीं, अकेले अपनी कुदरत-ए-कामिला से कायनात के निज़ाम को चला रहा है। बहुत से अंबिया इस दुनिया में तौहीद का पैगाम लेकर आए और आलम-ए-इंसानियत को कुफ़्र व शिर्क से रोका और एक अल्लाह की दावत दी, शहंशाह कौनैन सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम भी कुफ़्र व शिर्क व बिदअत को मिटाने के लिए इस दुनिया में तशरीफ़ लाए। आपने पूरी दुनिया को तौहीद का सबक दिया और आज पूरी दुनिया के अंदर अल्लाह और रसूल का नाम देने वाले लोग मौजूद हैं। मशरिक़ व मग़रिब में अतराफ़-ए-आलम में हमारे नबी मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम की धूम है।
उन्होंने कहा कि नबी अलैह सलाम ने दुनिया वालों को कामयाबी की तरीका बताया था मगर आज के मुसलमान उस तरीके से दूर हो चुके हैं आज मुसलमान कलमा पढ़ने वाला, अपने आपको आशिक ए रसूल कहने वाला, नमाज़ों से दूर है, घरों के अंदर शिर्क व बिदअत का अंधेरा है, घर के लोग बेनमाज़ी हैं, मुसलमान उस वक्त कामयाब होगा जब वो नमाज़ की पाबंदी करेगा, शिर्क बिदआत के अंधेरे से कामिल ईमान की रोशनी की तरफ निकलेगा, घर के तमाम लोग नमाज़ी होंगे।
अल्लाह ने अपने नबी को सारी कायनात के लिए रेहमत बनाकर भेजा है। आप सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने बेहतरीन अंदाज और बेहतरीन अख़लाक़ के साथ मक्का वालों के सामने दीन इस्लाम की दावत देश की। इसके बावजूद भी कुफ़्फ़ार मक्का ने जनाब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम को तरह-तरह की अज़ियतें दी, आप को सख्त तकलीफों का सामना करना पड़ा, मगर आपने इनतिहाई मोहब्बत व अख़लाक़ का मुज़ाहिरा किया। किसी को बुरा नहीं कहा, कभी किसी को सताया नहीं बल्कि मुकम्मल ताकत व कुव्वत के होते हुए भी दुश्मनों से बदला नहीं लिया और रहमत की दुआएं की। तारीख ए इस्लाम में एक भी ऐसी नज़ीर पेश नहीं की जा सकती कि किसी शख्स ने गैर मामून होने की वजह से या फिर नबी या असहाब ए नबी के खौफ़ से ईमान कुबूल किया हो बल्कि आक़ा सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के अख़लाक़ ए करीमाना और कलाम ए इलाही की हक़्क़ानियत को तस्लीम करके इस्लाम कुबूल किया। यही वजह है एक शख्स की दावत पर क़बीलों के क़बीले, ग़ैरों का लश्कर इस्लाम में दाखिल होने लगा।
मौलाना नेमतुल्लाह राजपुरी दामत बरकातुहुम ने ख़िताब करते हुए औलिया ए कामिलीन की करामात व बुज़ुर्गी पर बात की और कहा कि अल्लाह के बेशुमार बन्दे ऐसे हैं जिन्होंने इस हाल में अल्लाह को राज़ी करने वाली जिंदगी गुजारी है कि अगर उनके हालाते जिंदगी का तज़किरा किया जाए तो यकीन म आये। किताबों में वाकिया लिखा है कि एके अल्लाह वाले 40 साल तक सोए नहीं और पूरी पूरी रात इबादतों के अंदर गुजार दी ‘यह वो लोग थे जिन्हें न दुनिया के मताअ व माल की जरूरत थी और न जाहिर दौलत से मोहब्बत करने वाले लोग थे। ना कीमती बिस्तरों का शौक था और ना ही कोई आला किस्म की मरगूब ग़िज़ा होती थी बल्कि जो मयस्सर आ आए वह खा लिया करते थे। एक बुजुर्ग का वाकया है कि पूरे हफ्ते अल्लाह की इबादत करते थे न कुछ खाते न पीते थे, सिर्फ सातों दिन रोटी के कुछ निवाले पानी में भिगोकर खा लिया करते थे।
हज़रत ख्वाजा बायजीद बुस्तामी अलैह रहमा एक बेमिसाल वली कामिल गुजरे हैं इतनी बड़ी विलायत के मकाम पर होने के बावजूद दिन रात मां की खिदमत में गुजार देते थे।
इन औलिया ए कामिलीन का अमल हमारे लिए नमूना है जो शख़्स वलियों की खिदमत में लगा रहता है उस पर भी वलियों के असरात पड़ने लगते हैं। उनका दिल भी नूरानी होता है इसलिए जरूरी है कि किसी वली कामिल से ताल्लुक जोड़ा जाए और उनके साथ रह कर अपने ईमान को मजबूत किया जाए।
कान्फ्रेंस में मुफ्ती शाहिद कासमी, मौलाना अब्दुल वाजिद कासमी, मौलाना मोहम्मद खालिद कासमी, हाफ़िज़ मुहम्मद एहसानुल हक़ साहब, हाफ़िज़ सैफ़ुल इस्लाम मदनी खासतौर पर शरीक रहे, मौलाना फ़ज़ले हक़ कासमी ने नाते पाक का नज़राना पेश किया, निज़ामत के फराइज़ मौलाना अब्दुल माजिद कासमी ने अंजाम दिया और बड़ी तादाद में वाम ने शिरकत करके प्रोग्राम को कामयाब बनाया।