अशफाक कायमखानी।जयपुर।
मध्यप्रदेश की सरकार के तत्तकालीन मुखिया कमलनाथ व दिग्विजय सिंह की जीद का कांग्रेस हाईकमान ने साथ देकर मध्यप्रदेश की सरकार गिरने के बाद राजस्थान सरकार के मुखिया अशोक गहलोत की जीद के आगे भी अब नतमस्तक होकर कांग्रेस हाईकमान को राजस्थान की सरकार गवाने के बजाय सरकार बनी रहने के विकल्प पर मंथन करके सरकार बचाये रखने पर अंतिम फैसला नये विकल्प पर ले लेना चाहिए।
स्पीकर जौशी द्वारा सुप्रीम कोर्ट मे दायर एसएलपी को वापस ले लिया है। वही कांग्रेस ने राजस्थान के राजभवन पर आज के प्रदर्शन करने के ऐहलान के बाद वहा प्रदर्शन करना रद्द कर दिया है। राज्यपाल द्वारा कल उक्त कांग्रेस प्रदर्शन को लेकर डीजीपी यादव व मुख्य सचिव राजीव को राजभवन तलब करके इंतजाम के बारे मे पुछने के बाद गहलोत खेमे को अपनी गलती का अहसास होने पर उन्होंने राजभवन की बजाय बाड़ेबंदी मे बंद विधायक वाली होटल मे ही विरोध सभा करने का तय करने से कांग्रेस खेमे मे बैचेनी होना साफ नजर आ रहा है।
कांग्रेस नेताओं द्वारा बार बार भाजपा पर लोकतंत्र को कमजोर करने के लिये लोकतांत्रिक मूल्यों का चीरहरण करने के आरोप लगाये जाते रहे है। हो सकता है कि इस आरोप मे कुछ हद तक सच्चाई भी हो। पर मदन दिलावर द्वारा बसपा विधायकों के विलय के खिलाफ स्पीकर सीपी जोशी के यहां लगाई याचिका पर बीना उनका पक्ष जाने उसको निरस्त करने व उस निर्णय की कापी तक उपलब्ध नही करवाने को लोकतंत्र मे कांग्रेस कहा तक जायज मान रही है। जबकि उक्त निर्णय की कोपी तक लेने के लिये विधायक को धरने पर बैठना पड़ रहा है।
इधर गहलोत मंत्रीमंडल द्वारा विधानसभा का सत्र बूलाने का अधकचरा निवेदन पत्र दो दफा राजभवन भेजनै के बाद राज्यपाल द्वारा कुछ क्योरीज के साथ वापस लोटाने से कांग्रेस रणनीतिकारों की किरकिरी होना देखा जा रहा है। गहलोत खेमे द्वारा न्यायालय का दरवाजा खटाखटाने पर उन्हे किसी तरह की राहत नहीं मिलते देख रणनीति मे बदलाव करते हुये जनता मे जाकर आंदोलन करने का तय किया बताते है।
कुल मिलाकर यह है कि अधिकांश विधायक अभी चुनाव मे जाना नही चाहते है। पर गहलोत की चल रही रणनीति से लगता है कि राजस्थान मे बिहार चुनाव के साथ मध्यवर्ती चुनाव हो सकते है। पंखवाड़े से अधिक समय से बाड़ेबंदी मे बंद विधायकों के प्रति उनकी क्षेत्र की जनता मे अंसतोष पनप रहा। असंतोष अगर चरम पर पहुंच गया तो जनता होटल को घेरकर अपने विधायको को बाड़ेबंदी से मुक्त कराने की तरफ भी बढ सकती है। कांग्रेस हाईकमान को पल पल बदलते राजनीतिक हालात पर मंथन करके अशोक गहलोत की जीद के आगे नतमस्तक होने की बजाय सरकार बचाये रखने के विकल्पों पर विचार करना चाहिए।