मिल्लत टाइम्स,नई दिल्ली:देश में मॉब लिंचिंग और ‘जय श्री राम’ के नारे की आड़ में हो रही हिंसा पर चिंता वक्त करतेहुए पिछले दिनों 49 हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था। इसके तीन दिन बाद शुक्रवार को 62 हस्तियों ने जवाब में उन्हें खुला खत लिखा। पत्र का विरोध करने वालों में कंगना रनौत, प्रसून जोशी और मधुर भंडारकर भी शामिल हैं। उनका कहना है कि कुछ लोग चुनिंदा तरीके से सरकार के खिलाफ गुस्सा जाहिर करते हैं। इस विरोध का मकसद सिर्फ लोकतांत्रिक मूल्यों को बदनाम करना है। उन्होंने पूछा कि जब नक्सली आदिवासियों और वंचित लोगों को निशाना बनाते हैं तब वे क्यों चुप रहते हैं? अभी तक नरेंद्र मोदी ने इन घटनाओं पर कोई जवाब नहीं दिया। सरकार भी चुप है।
जवाबी पत्र में लिखा है कि देश के 49 स्वयंभू संरक्षक और बुद्धिजीवियों ने लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर फिर से चयनित तौर पर चिंता जताई। इससे साफ तौर पर उनका राजनीतिक झुकाव सामने आ गया है। उन्होंने अपने पत्र में झूठे आरोप लगाए और लोकतंत्र को बदनाम करने के लिए सवाल उठाए। खुला पत्र लिखने वाली हस्तियों में अभिनेत्री कंगना रनौत, गीतकार और सेंसर बोर्ड अध्यक्ष प्रसून जोशी, नृत्यांगनासोनल मानसिंह, मोहन वीणा वादकपंडित विश्वमोहन भट्ट, फिल्मकार मधुर भंडारकर, विवेक ओबेरॉय और विवेक अग्निहोत्री शामिल हैं। उनके मुताबिक-
देश में आदिवासी और हाशिए पर मौजूद लोगों को निशाना बनाने, कश्मीर में अलगाववादियों के द्वारा स्कूल जलाने, नामी यूनिवर्सिटी में आतंकियों के समर्थन में भारत के टुकड़े-टुकड़े के नारे लगने पर बुद्धिजीवियों की चुप्पी क्यों बनी रहती है?
यह विरोध अंतराराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि, प्रधानमंत्री के कामकाज के कारगर तरीके, राष्ट्रीयता और मानवता के खिलाफ है, जो भारतीयता के मूल्यों में शामिल है। संविधान ने हमें असहमति जताने का अधिकार दिया है, न कि भारत को तोड़ने की कोशिश करने का। लोगों का यह समूह महिलाओं को समानता का हक दिलाने और तीन तलाक के पक्ष में कभी खड़ा नहीं हुआ।
ऐसा लगता है कि अभिव्यक्ति की आजादी के सामने विरोध करने वालों के लिए देश की एकता और अखंडता के कोई मायने नहीं हैं। वैचारिक रूप से उनका अलगाववादियों, घुसपैठियों और आतंकियों के समर्थन का रिकॉर्ड रहा है। इसलिए उनके अंदर विरोध की भावना है। जबकि मोदी सरकार सबका साथ सबका विकास के मंत्र के साथ आगे बढ़ रही है और प्रधानमंत्री स्वयं लिंचिंग की घटनाओं की आलोचना कर चुके हैं।
49 हस्तियों ने लिंचिंग के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी
23 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखने वाली 49 हस्तियों में इतिहासकार रामचंद्र गुहा, अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा, फिल्मकार श्याम बेनेगल, अनुराग कश्यप और मणि रत्नम समेत अलग-अलग क्षेत्रों की हस्तियां शामिल थीं। उन्होंने लिखा- मुस्लिमों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों पर हो रही लिंचिंग पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट्स के मुताबिक 2016 में दलितों के खिलाफ उत्पीड़न की 840 घटनाएं हुईं। लेकिन इन मामलों के दोषियों को मिलने वाली सजा का प्रतिशत कम हुआ।
इन दिनों “जय श्री राम” हिंसा भड़काने का एक नारा बन गया है। इसके नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो रही हैं। यह दुखद है। जनवरी 2009 से 29 अक्टूबर 2018 तक धार्मिक पहचान के आधार पर 254 घटनाएं हुईं। इसमें 91 लोगों की मौत हुई जबकि 579 लोग घायल हुए। मुस्लिमों (कुल जनसंख्या के 14%) के खिलाफ 62% मामले, ईसाइयों (कुल जनसंख्या के 2%) के खिलाफ 14% मामले दर्ज किए गए। मई 2014 के बाद से जबसे आपकी सरकार सत्ता में आई, तब से इनके खिलाफ हमले के 90% मामले दर्ज हुए।
इन घटनाओं को गैर-जमानती अपराध घोषित करते हुए तत्काल सजा सुनाई जानी चाहिए। यदि हत्या के मामले में बिना पैरोल के मौत की सजा सुनाई जाती है तो फिर लिंचिंग के लिए क्यों नहीं? यह ज्यादा जघन्य अपराध है। नागरिकों को डर के साए में नहीं जीना चाहिए। सरकार के विरोध के नाम पर लोगों को ‘राष्ट्र-विरोधी’ या ‘शहरी नक्सल’ नहीं कहा जाना चाहिए और न ही उनका विरोध करना चाहिए। अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है। असहमति जताना इसका ही एक भाग है।(इनपुट भास्कर)