अशफाक कायमखानी।जयपुर।
चार माह पहले राजस्थान विधानसभा चुनाव मे सरकार बनाने के करीब पहुंचने वाली कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष सचिन पायलट व तत्तकालीन समय के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मे जीत का श्रेय लेने की होढ इस तरह मची हुई थी कि दिल्ली मे हाईकमान के सामने मुख्यमंत्री बनने के लिये एक तरह से दोनो मे युद्ध सा छिड़ा हुवा था। पायलट को जब लगा कि वो मुख्यमंत्री की दोड़ मे पीछड़ने लगे है तो उन्होंने दिल्ली पर दवाब बनाने के लिये अपनी बीरादरी के सेंकड़ो लोगो को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया था। लेकिन दिल्ली मे एक खास कोकस मे गहरी पेठ होने के अलावा सोनिया गांधी की खास मेहरबानी के कारण गहलोत बाजी जीत कर फिर एक दफा मुख्यमंत्री बन गये। लेकिन उस समय मात खाने वाले सचिन पायलट के घाव अभी भी ताजा बताते है।
घाटे मे झगड़ा होने की कहावत को झूठलाते हुये भाजपा की देश मे जब मात्र दो लोकसभा सीट आई तो पार्टी पूरी तरह एकजूट होकर केंद्रीय नेतृत्व के साथ खड़ी होने के परिणामस्वरूप आज बहुमत की सरकार दूसरी दफा बना कर एक बडी राजनीतिक ताकत के रुप मे उभर आये है। जबकि इसके विपरीत भारत मे अधीकांश समय सत्ता मे रहने वाली कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व पर आज खतरा मंडराने व राजनीतिक तोर पर बूरे दौर मे आते ही कांग्रेस नेता एकजुट होकर केन्द्रीय नेतृत्व को ताकत देने की बजाय डूबते जहाज से भागते चूहों की कहावत को चरितार्थ करने की होढ मचा रखी है। राजस्थान स्तर पर चार महीने पहले जिन नेताओ ने जीत का श्रेय लेने की होढ मचा रखी थी। वो नेता लोकसभा चुनाव मे हार की जिम्मेदारी लेने से कोसों दूर भाग रहे है।
राजस्थान मे मोजूद मीडिया का एक तबका अपने हिसाब से स्टोरी प्लांड करके कांग्रेस नेताओं मे धड़ेबंदी व आपसी टकराव उत्पन्न करके नेताओं मे आपसी टकराव के हालात बनाने मे लगा है। वहीँ कांग्रेस के कुछ विधायक कठिन समय मे पार्टी नेतृत्व को मजबूती देने की बजाय अनुशासन तोड़कर आपसी मनमुटाव को हवा देने की कोशिश करने लगे है। कुछ नेता बूरे दौर मे राजस्थान मे नेतृत्व परिवर्तन की मांग को पार्टी मंच की बजाय बाहर मीडिया के मार्फत उठाने मे लगे है। जबकि राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के हार की जिम्मेदारी लेते हुये त्याग पत्र देकर एक महीने मे दूसरा अध्यक्ष बनाने की कहने के बाद से पूरी कांग्रेस मे भारतीय स्तर पर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कांग्रेस नेताओं को भाजपा के दो सीटो के समय भी एकजुट रहने से प्रेरणा लेकर बूरे दौर से उभरने के रास्ते तलासते हुये सामुहिक प्रयास करने चाहिए। अधीकांश समय सत्ता मे रहने के कारण कांग्रेस नेता मजबूत विपक्ष की भूमिका भी ठीक से निभा नही पा रहे है।
राजनीतिक तौर पर यह तय हो चुका बताते है कि राजस्थान स्तर पर चाहे हार की जिम्मेदारी लेने से हर एक कांग्रेस नेता दूर भागता रहे लेकिन अभी तक यह तय है कि कांग्रेस हाईकमान राजस्थान सरकार का नेतृत्व परिवर्तन करने के लिये कतई तैयार नही है। जबकि केंद्र सरकार के कुछ नेता व भाजपा हर हाल मे किसी ना किसी रुप मे राजस्थान सरकार को बेदखल करने की फिराक मे बताते है। उनकी कोशिशों से राजस्थान सरकार मे बगावत होकर या फिर मुख्यमंत्री की दोड़ मे लगे एक नेता के अपने समर्थक विधायकों के साथ विद्रोह करके भाजपा के समर्थन से या फिर भाजपा मे शामिल होकर सरकार बनाने के चांसेज भी काफी हाई बताते है।
हालांकि राजस्थान कांग्रेस के प्रथ्वीराज मीणा नामक एक विधायक ने पार्टी मंच की बजाय मीडिया के मार्फत सरकार स्तर पर सीधे तौर पर नेतृत्व परिवर्तन की मांग करते हुये उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की मांग करने पर पार्टी हाईकमान ने इसे अनुशासनहीनता मानते हुये विधायक को दिल्ली तलब करके उससे लिखित मे स्पष्टीकरण मांगा है। राजनीतिक सूत्र बताते है कि विधायक प्रथ्वीराज मीणा के मुहं से नेतृत्व परिवर्तन की निकले शब्द मात्र उन अकेले विधायक या नेता का ना होकर एक बडे ग्रूप के रचे बोल बताते है। यह नेतृत्व परिवर्तन की मांग किसी ना किसी रुप मे लगातार जब तक उठती रहेगी जब तक कांग्रेस विधायकों का एक धड़ा भाजपा से मिलकर या फिर भाजपा मे शामिल होकर सरकार ना बना ले। अगर ऐसा होता है तो मानो जो नेता लाख कोशिशों के बावजूद कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री नही बन पाये, वो भाजपा या भाजपा के समर्थन से राजस्थान के मुख्यमंत्री बन सकते है।
कुल मिलाकर यह है कि जून माह मे भारतीय स्तर पर कांग्रेस पार्टी के लिये काफी महत्वपूर्ण बताते है। पार्टी स्तर पर भारी बदलाव या बडी बगावत हो सकती है। राजस्थान सरकार के लिये बजट सत्र भी काफी कुछ उठापटक साथ लेकर आने वाला बताते है।