बिहार की सभी 40 सीटें जातीय खेमों में बटीं,उम्मीदवारों ने भी इसी आधार पर रणनीति बनाई

ओम गौड़,पटना:अगर आपको चुनाव में जातिवाद का नजारा देखना है तो एक बार बिहार जरूर आइए। न कहीं उम्मीदवारों के पोस्टर, न झंडे-बैनर, न कहीं प्रचार-प्रसार। क्योंकि यहां देश का चुनाव जातीय प्रमुख चुने जाने की तर्ज पर लड़ा जा रहा है। जातीय खेमों में फैली प्रदेश की 243 विधानसभा और 40 लोकसभा सीटों पर सिर्फ जाति का लेबल चस्पा है। दलों के पास जातिगत आंकड़ें हैं और सभी दल इन आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए जिताऊ चेहरे सिलेक्ट करते हैं, इसीलिए कि जातिवाद के आधार पर चुनाव जिताने-हराने का 40 साल पुराना यह टेस्टेड फॉर्मूला है।

बिहार में सांसद-विधायक विकास की बातें करते नजर तो आते हैं लेकिन उन्हें जिस चीज को सहेज कर रखना है वह जातिगत गठजोड़ ही है। सबसे मजेदार बात यह है कि प्रदेश में पार्टियों से नेता नहीं जातियां रूठती-मनती हैं। राष्ट्रीय पार्टियां जातिवाद के कारण ही छोटे क्षेत्रीय दलों से गठजोड़ करने को मजबूर हैं। बानगी देखिए, यहां महागठबंधन की 40 में से 19 सीटों पर राजद लड़ रहा है तो कांग्रेस को महज 9 सीटों पर समझौता करना पड़ा। एनडीए में जदयू-भाजपा 17-17 सीटों पर लड़ रही है। यह समझौता भी उन हालात में हुआ जब भाजपा को 2014 में जीती हुई 5 सीटें कुर्बान करनी पड़ी। भाजपा ने 2014 में बिहार में 22 सीटें जीती थीं अब 17 पर लड़ रही हैं। जदयू ने 2 सीटें जीती थीं अब 17 सीटों पर मैदान में है।

चुनाव में हार-जीत के एंगल की तलाश के पीछे भी जातिवाद के तर्क होते हैं। लालू प्रसाद यादव को बिहार में जमीन से राजनीति का क्षत्रप बनाने की कहानी के पीछे एकमात्र गठजोड़ जातिवाद का रहा है। कहते हैं क्षेत्रीय दलों की उत्पत्ति में जातिवाद सबसे मजबूत कारण रहा। नीतीश कुमार को छोड़ कर बिहार में लालू, पासवान या उपेन्द्र कुशवाहा जैसे नेता छोटे से गांव से निकल कर अपने – अपने जातीय गठजोड़ बना सर्वोच्च पदों पर रहे। लालू-राबड़ी पंद्रह साल मुख्यमंत्री रहे तो केंद्रीय मंत्रालय के प्रमुख पदों को संभाला।

केंद्र में अति महत्वपूर्ण मंत्रालयों में कैबिनेट मंत्री रहे रामविलास पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक यूं ही नहीं कहा जाता। इसके पीछे भी जातिवाद का ही प्रभाव है। उपेन्द्र कुशवाहा इस बार नए मौसम वैज्ञानिक बनने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने ऐन वक्त पर एनडीए का साथ छोड़ महागठबंधन का दामन थाम लिया है। हां, इनके मौसम विज्ञान का नतीजा 23 मई को आएगा लेकिन इनके पलटने के पीछे एकमात्र आधार जातिवाद ही है। यहां न विकास कोई मुद्दा है, न राष्ट्रवाद की लहर है, न ही कहीं न्याय योजना का जिक्र है। बिहार में जातिगत आधार रखने वाले नेताओं की मान-मनौव्वल में राष्ट्रीय पार्टियों के बड़े नेता सक्रिय हो रहे हैं। हेलीकॉप्टर लेकर पीछे घूमते हैं। उन्हें बिहार से उड़ा कर दिल्ली ले जाकर राष्ट्रीय प्रमुख से मिलवाकर गिले-शिकवे दूर करने पड़े। इतना ही नहीं चुनाव के दौरान किसी ऐसे ही जातिवादी नेताओं को छींक आ जाए तो बड़ी पार्टियां पलक-पांवड़ें बिछा देती हैं।

यह जातिवाद की ही वजह है कि सीवान से कुख्यात अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह चुनाव लड़ रही है। अनंत सिंह की पत्नी मुंगेर से चुनाव मैदान में हैं, नवादा से लोजपा प्रत्याशी के रूप में बाहुबली सूरजभान के भाई चंदन मैदान में रहे तो उनके सामने दुष्कर्म के मामले में जेल में बंद राजवल्लभ की पत्नी विभा देवी चुनाव लड़ी।

कुल मिलाकर बिहार में जातिवाद ही मुद्दा है। कभी सीएम रहे जीतन राम मांझी की पहचान जातिवादी नेता की नहीं रही। पर पद से हटने के बाद उन्हें जाति याद आई और उन्होंने भी पार्टी बनाई और जातिवादी नेता बन गए। जातिवाद कमोबेश देशभर में फैला है लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश जातिवाद के जन्मदाता स्टेट हैं। यहां लोग कहते सुने जा सकते हैं कि बेटी और वोट जात को। चुनाव में एमवाय (मुस्लिम+यादव) फैक्टर की खूब चर्चा होती है जो बिहार से निकलकर ही उत्तर प्रदेश तक पहुंच गया है। यह फैक्टर भी चुनाव जीतने के लिए जातिवादी एकता का स्लोगन है।

जाति की एकता का एक किस्सा यह भी…

एक मजेदार वाकया है। रामलखन सिंह यादव फतुहा के इलाके में एक चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे। संभवत: वह 1967 का चुनाव था। उन्होंने अपने स्वजातीय लोगों से आह्वान किया कि हमें देश में बदलाव के लिए और समाज को आगे बढ़ाने के लिए एक पैर पर खड़े होना है। यादव का इतना कहना था कि भीड़ में मौजूद हजारों लोग यह सुनते ही सचमुच ही एक पैर पर खड़े हो गए। बाद में रामलखन सिंह ने सभा में उपस्थित लोगों को बताया कि एक पांव पर खड़े होना एक मुहावरा है। इसका मतलब है-जो तय कर लिया उसे करो। इसलिए हमें समाज का साथ देना है।

(इनपुट भास्कर के शुक्रिया के साथ)

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity