मिल्लत टाइम्स,बुलंदशहर:मानवाधिकार संगठन एन.सी.एच.आर.ओ. की एक टीम ने आज बुलंदशहर का दौरा किया और सम्बंधित सभी पक्षों से बातचीत की। सभी पक्षों से बातचीत और घटनास्थल का दौरा करने के बाद जारी प्रेस वक्तव्य में टीम ने बुलन्दशहर की घटना को पूर्वनियोजित होने की तरफ इशारा किया है।
फैक्ट फाइडिंग टीम आज सुबह वरिष्ठ पत्रकार किरण शाहीन के नेतृत्व में बुलंदशहर घटना की जांच करने के लिए दिल्ली से रवाना हुई। टीम के सदस्यों में एआईपीएफ के मनोज कुमार, एनसीएचआरओ के एडवोकेट अन्सार इंदौरी, दिल्ली विश्वविधलय की प्रोफेसर भावना बेदी, सामाजिक कार्यकर्ता अज़ीम नावेद और आरटीएफ की आयशा शामिल थी।
टीम की सदस्या और वरिष्ठ पत्रकार *किरण शाहीन* ने बताया की योगेश राज द्वारा लिखाई गई एफआईआर में सुदेफ़ चौधरी, इलियास, शराफत, अनस, साजिद, परवेज़ और सरफुद्दीन निवासी नया वास थाना स्याना, जिला बुलंदशहर गायों को काट रहे थे। जो उन्हें देख और उनके शोर मचाने से मौके से भाग गये। तहरीर के मुताबिक योगेशराज तथा अभियुक्तगण एक ही गांव के रहने वाले हैं। फिर भी तहरीर में 12 साल से कम उम्र के अनस और साजिद का नाम शामिल हो गया। अभी पुलिस ने जो लोग गौकशी के नाम पर पकड़ें है उनमे कुछ युवक सालों पहले गांव छोड़ कर जा चुके हैं।
टीम के सदस्य और संगठन के सचिव *एड्वोकेट अन्सार इन्दौरी* ने कहा की घटना के समय प्रशासन की मौजूदगी में इतनी बड़ी घटना का हो जाना ये साबित करता है कि इस घटना की साजिश पहले से रची जा रही थी। समय रहते पुलिस और प्रशासन ने सही कदम उठाया अगर प्रशासन सही कार्यवाही नहीं करता तो इससे भी बड़ा हादसा हो सकता था। उपद्रव के दौरान खुलेआम भीड़ के हाथो एक पुलिस अधिकारी का मारा जाना भीड़ द्वारा हत्या की नई घटना नहीं है।
टीम की सदस्या और दिल्ली विश्वविद्यालय की *प्रोफेसर भावना बेदी* ने कहा की कि संघी कार्यकर्ताओ के षडयंत्र को नाकाम करने में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार को अपनी जान गंवानी पड़ी।इन हिंदूवादी संगठनों के निशाने पर मुस्लिमो के साथ साथ हिन्दू भी थे।
टीम के सदस्य और एआईपीएफ के *मनोज सिंह* के अनुसार 3 दिसंबर की घटना बुलंदशहर के इस शांत इलाक़े में संघ-बीजेपी से जुड़े संगठनों द्वारा बर्चस्व बढ़ाने और मुस्लिम समुदाय में डर का माहौल बनाने की साज़िश है। जानकारी के अनुसार स्थानीय स्तर पर दोनों समुदायों के कुछ व्यक्तियों और समुदायों के बीच के छोटे झगड़ों को बहाना बना, इलाक़े को सांप्रदायिक आग में झोंकने की साज़िश रची गयी, जिसमें स्पष्ट तौर पर राजनैतिक संरक्षण दिखता है। इस घटना द्वारा सीधा प्रशासन से टकराव कर एक खास समुदाय के अंदर से कानून और प्रशासन के प्रति अविश्वास का भाव फैलाकर प्रशासन के ईमानदार हिस्से को हतोत्साहित करने की साज़िश दिखती है।
टीम के सदस्या और राइट टू फ़ूड कैंपेन की *आयशा* ने बताया की जिस तरह इंस्पेक्टर सुबोध कुमार को मारते हुए वीडियो बनाया गया है उससे साफ है कि इस भीड़ को योगी-मोदी सरकार का राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। इनका मनोबल आज इतना बढ़ गया है कि ये पुलिस को भी सरेआम दौड़ा कर उनकी हत्या कर रहे हैं’। आज के माहौल में आम व्यक्ति और जनता की रक्षक कही जाने वाली पुलिस, कोई भी सुरक्षित नहीं है। इस घटना के बाद उन हज़ारों बच्चों का भविष्य भी दांव पर है जिनके माता-पिता ने उन्हें इस हिंसा के बाद से स्कूल जाने से रोक लिया है। घटनास्थल पर गाय कटने का कोई चिन्ह न मिलना, आसपास के विद्यालयों की समय से पहले छुट्टी कर देना इत्यादि से साफ़ ज़ाहिर है कि इस हिंसा और इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या सोची समझी साज़िश को अंजाम देकर मुस्लिम समुदाय में डर का माहौल बनाना है।
संगठन जल्द ही पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट दिल्ली में जारी करेगा।