मोहन भागवत को शक, मदरसों में पढ़ाई जाती है “गजवा हिंद” जैसी किताब

नई दिल्ली : (रुखसार अहमद) आर एस एस प्रमुख मोहन भागवत 22 सितंबर को दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग में स्थित इमाम हाउस में मौलाना उमैर इल्यासी से मुलकात करने पहुंचे थे। इस दौरान वो एक मदरसे भी गए। उमर अहमद इलियासी ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन (AIIO) के प्रमुख हैं।

उन्होंने मोहन भागवत को इस दौरान राष्ट्रपिता बताया था। जिसके बाद सोशल मीडिया पर मौलना की काफी अलोचना भी की गई। वहीं मिल्लत टाइम्स ने उनके इस बयान पर एक इंटरव्यू क्या जिसमें उन्होंने मोहन भागवत से मुलकात की वजह बताई और उन्हें राष्ट्रपिता क्यों कहा उसकी जानकारी भी दी।

मौलाना इल्यासी कहते है कि मोहन भागवत को यह गलतफहमी है कि मदरसों में “गजवए हिंद” नाम की एक किताब पढ़ाई जाती है। जिसमें हिंदुओं को मारने की बात की जाती है। इसलिए मैंने उनको मदरसा आने की दावत दी थी।

उन्हें एक शक और संदेह था जिसे दूर करने मदरसे में आए थे। मौलाना इल्यासी का कहना है की मोहन भगवत कभी अपनी जिंदगी में मस्जिद और मदरसे नहीं गए थे, इसलिए उनके मन में इन दोनों के लेकर एक गलतफहमी बैठी थी। मैने उनको इसलिए दावत थी कि वह जान सके हमारे मदरसों में कैसे पढ़ाया जाता है, और मस्जिद में हर धर्म के लोग आ सकते किसी के आने पर रोक-टोक नहीं है।

मोहन भगवत को मैने मदरसे तजवीदुल कुरान जो 1948 से मौजूद है उसमें जाने की भी दावत दी, वहां उन्होंने मदरसों के बच्चों से बातचीत की उनसे जाना की वह क्या बनना चाहते है। साथ ही मदरसों के बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए मॉडर्न एजुकेशन पर भी बात की।

मौलना इलायासी का कहना है की मदसों में मॉडर्न एजुकेशन की जरूरत है, इसके लिए सभी उलेमाओं को मिलकर बात करनी चाहिए। ताकि मदरसों में पढ़ने वाले भी डॉक्टर, इनजीयर बन सके। मौलना इलायासी का कहना है कि हमारे नबी भी मस्जिद ए नबवी में जब कोई बैठक करते थे तो वह गैर-मुस्लिम को दावत देते थे। हमें भी ऐसे लोगों को बुलाना चाहिए।

मौलाना इल्यासी ने बताया की मोहन भगवत को जिहाद और काफिर जैसे शब्द को लेकर भी गलतफहमी है और हमारा फर्ज बनता है कि हमें ऐसे लोगों की गलतफहमी को दूर करना चाहिए। भगवत की मदरसों से मुलकात हुआ वह एक अच्छा मैसेज देगें, मुझे यह तो नहीं पता की वह बाहर जाकर क्या बोलगें लेकिन उन्हें यह जानकारी जरूर मिली है कि मदरसों में अच्छी शिक्षा दी जाती है।

मौलाना उमैर इल्यासी ने कहा कि उन्होंने मेरी दावत काबुल की यह बड़ी बात है। उनका यहां आना दो दिलों का मिलना, दो धर्म के लोगों का मिलना, और दो संगठनों का मिलना है। जिसका समाज में एक अच्छा मैसेज जाता है। इल्यासी साहब ने कहा कि अगर मीटिंग करनी है खुलकर करे कमरों में बैठकर क्या फायदा। अगर किसी के मन में हमारी कौम को लेकर कोई गलतफहमी है तो उसे दूर भी हमें करना है, इसलिए मिलना जरूरी होता है।

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