नई दिल्ली: एनबीडीएसए ने समाचार चैनल ज़ी न्यूज़ के तीन वीडियो के प्रसारण को एथिक्स कोड का उल्लंघन बताया है।
एनबीडीएसए ने कहा है कि प्रसारित तीन वीडियो में चैनल ने कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों को खालिस्तानियों से जोड़ा और गलत रिपोर्ट करके 26 जनवरी 2021 को लाल किले से भारतीय झंडे को हटा दिया गया था।
टीवी समाचार प्रसारकों का निजी संघ एनबीडीएसए ने 19 नवंबर के इस आदेश में चैनल से इन वीडियो को हटाने को कहा है।
बता दें कि इससे एक दिन पहले ही एनबीडीएसए ने कहा था कि टाइम्स नाउ के दो एंकर राहुल शिवशंकर और पद्मजा जोशी द्वारा फरवरी 2020 दिल्ली दंगों को लेकर की गई बहस (डिबेट) निष्पक्ष और उद्देश्यपरक तरीके से नहीं की गई थी।
News Broadcasting and Digital Standards Authority (NBDSA) finds that #ZeeNews violated code of ethics in three videos by linking #FarmersProtests to Khalistanis & by falsely reporting that Indian flag was removed from Red Fort. NBDSA asks the videos to be taken down.#Farmers pic.twitter.com/TJiYbuQAHb
— Live Law (@LiveLawIndia) November 23, 2021
ज़ी न्यूज़ के आदेश की तरह यह आदेश (टाइम्स नाउ) भी 19 नवंबर, 2021 का है, जिस पर एनबीडीएसए के अध्यक्ष जस्टिस (सेवानिवृत्त) एके सीकरी के हस्ताक्षर हैं।
एनबीडीएसए के आदेश में कहा गया है कि कार्यकर्ता इंद्रजीत घोरपड़े द्वारा दायर की गई शिकायत 19, 20 और 26 जनवरी को (ज़ी न्यूज़ पर) प्रसारित दो कार्यक्रमों के संबंध में हैं।
एनबीडीएस के कोड ऑफ एथिक्स, जिसका ज़ी न्यूज़ उल्लंघन करता पाया गया, में कहा गया है, ‘सभी न्यूज चैनलों को निष्पक्षता और सटीकता के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रसारण के दौरान की गईं गलतियां स्वीकार की जाएं और उन्हें तुरंत ठीक किया जाए।
घोरपड़े ने अपनी शिकायत में कहा है कि इन कार्यक्रमों में असत्यापित वीडियो का इस्तेमाल किया गया, जो किसान आंदोलनों से बिल्कुल भी जुड़े हुए नहीं थे.
गणतंत्र दिवस पर ज़ी न्यूज़ के कार्यक्रमों की हेडलाइन थी- ‘सिविल वॉर ऑन रिपब्लिक डे’, ‘कंस्पीरेसी ऑफ अ वॉर अगेंस्ट द रिपब्लिक’, ‘शेडो ऑफ टेरर इन द प्रोटेस्ट’ और ‘फार्मर्स ऐडमेंट, इज अ ब्लडी वॉर डिसाइडेड’ थे।
घोरपड़े की शिकायत में यह आरोप लगाया गया है कि चैनल ने लाल किले से भारतीय ध्वज को हटाने की गलत खबर दी। इसके साथ ही कथित तौर पर किसान आंदोलन और खालिस्तानी समर्थकों के बीच समानता दिखाने का प्रयास किया।