नई दिल्ली : त्रिपुरा हिंसा के बाद वकीलों और पत्रकारों पर UAPA के तहत कार्रवाई की गई थी। जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने अगले आदेश तक वकीलों और पत्रकारों पर काठोर कार्रवाई ना करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने याचिका पर त्रिपुरा सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दिया है।
याचिका में UAPA की FIR को चुनौती दी गई है। इस मामले में गैरकानूनी गतिविधियां ( UAPA) कानून को भी चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट में 2 वकीलों अंसार इंदौरी व मुकेश और एक पत्रकार ने ये याचिका दाखिल की है। बता दें वकीलों ने फैक्ट फाइंडिंग टीम के हिस्से के रूप में त्रिपुरा का दौरा किया था, जबकि पत्रकार श्याम मीरा सिंह ट्विटर पोस्ट के लिए FIR का सामना कर रहे हैं। याचिका में उन पर दर्ज UAPA के तहत दर्ज FIR को रद्द करने की मांग की गई है। याचिका में मुस्लिम नागरिकों के खिलाफ हिंसा और त्रिपुरा में मस्जिदों पर हमलों (बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के बाद) की घटनाओं की अदालत की निगरानी में जांच की मांग की गई है।
इसमें UAPA की कुछ धाराओं को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है और कहा गया है कि यदि राज्य को UAPA का उपयोग फैक्ट फाइंडिंग को अपराधी घोषित करने लिए इस्तेमाल की अनुमति दी जाती है तो इसका बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘ प्रतिकूल प्रभाव’ पड़ेगा। ऐसा करने पर तो केवल सरकार के लिए सुविधाजनक तथ्य सामने आएंगे। भारत की संप्रभुता या क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल नहीं उठाया गया। याचिका में पत्रकार श्याम मीरा सिंह के “त्रिपुरा जल रहा है” ट्वीट का भी बचाव किया गया। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज आरएफ नरीमन के हालिया भाषण का भी हवाला दिया गया, जिसमें उन्होंने UAPA को अंग्रेजों का कानून बताया था।
वहीं त्रिपुरा में अल्पसंख्यक समुदाय के पूजा स्थलों के खिलाफ कथित हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर पत्रकार समेत 102 सोशल मीडिया यूजर्स के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (UAPA) मुकदमा दर्ज किया गया है। त्रिपुरा पुलिस ने इन अकाउंट्स पर पिछले महीने उत्तरी त्रिपुरा के पानीसागर में हुई हिंसा को लेकर कथित रूप से गलत सूचना फैलाने का आरोप लगाया. इनमें 68 ट्विटर अकाउंट, 32 फेसबुक अकाउंट और यूट्यूब के 2 अकाउंट हैं।