फैक्ट फाइंडिंग की रिपोर्ट में हुआ खुलासा, त्रिपुरा में 12 मस्जिदों सहित 51 जगहों पर की गई तोड़फोड़

नई दिल्ली : एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले के चलते त्रिपुरा में मुसलमानों की कई दुकानों और मस्जिदों को बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के लोगों ने निशाना बनाया। यह सारी घटना प्रशासनिक लापरवाही के चलते हुआ।

सुप्रीम कोर्ट के वकीलों और मानवाधिकार संगठनों की एक जांच टीम ने मंगलवार को यह खुलासा किया कि अगर भाजपा सरकार चाहती तो वह त्रिपुरा में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ पूर्व नियोजित हिंसा को विफल कर सकती थी, लेकिन उसने कथित तौर पर हिंदुओं की भीड़को खुली छूट दे दी जांच रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि त्रिपुरा के 51 स्थानों पर मुसलमानों पर हमला किया गया और 12 मस्जिदों में तोड़फोड़ की गई व उन्हें क्षतिग्रस्त किया गया।

सुप्रीम कोर्ट के वकील एहतेशाम हाशमी और लॉयर्स फॉर डेमोक्रेसी के नेतृत्व में वकीलों की टीम ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक प्रेस कांफ्रेंस की। इस दौरान यह रिपोर्ट पेश की गई। इस रिपोर्ट का शीर्षक है, ‘humanity under attack in Tripur। ‘ रिपोर्ट के लिए डाटा 29 और 30 अक्टूबर की अवधि में इक्टठा किया गया जिसके लिए यह टीम त्रिपुरा के अलग-अलग घटनास्थल गई थी।

टीम के सदस्य वकील एहतेशाम हाशमी ने कहा, “त्रिपुरा में मुसलमानों पर हमले बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले की प्रतिक्रिया में हुए थे। हिंसा तब हुई जब विश्व हिंदू परिषद ने 26 अक्टूबर को बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों के खिलाफ एक विरोध रैली निकाली थी। इस दौरान 12 मस्जिदों पर हमला किया गया। दक्षिण त्रिपुरा में स्थित दरगाह बाजार मस्जिद में दंगाइयों ने कुरान जलाई और 9 दुकानों और 3 घरों को नुकसान पहुंचाया।

इसी टीम के एक अन्य सदस्य वकील अमित श्रीवास्तव ने कहा, “अगर पुलिस और प्रशासन ने सख्त कदम उठाए होते तो इन घटनाओं को रोका जा सकता था। हम वकीलों ने घटनाओं की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित करने और पीड़ितों की शिकायतों के आधार पर अलग एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध किया है।

बता दें 13 अक्टूबर को पड़ोसी देश बांग्लादेश से सांप्रदायिक हिंसा की खबरें आई थीं। बांग्लादेश में दुर्गा पूजा समारोह के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा और हाथापाई में कम से कम छह लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए थे. इस हिंसा की शुरुआत एक अफवाह से हुई थी।

वकीलों द्वारा इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकीलों की एक जांच टीम का गठन किया गया जिसने त्रिपुरा में हुई हिंसा की पड़ताल की। इस टीम ने हिंसा के घटनास्थल पर पहुंचकर पीड़ितों से बातचीत की. इसका ज़िक्र रिपोर्ट में किया गया है।

40 वर्षीय आमिरुद्दीन पानीसागर के रवा बाजार में सब्जी बेचा करते थे। हिंसक झड़प के दौरान उनकी दुकान को जला दिया गया। वह कहते हैं, “मैं पिछले 20 सालों से दुकान चला रहा हूं। इतनी भयानक घटना कभी नहीं देखी। कुछ लोग आए और उन्होंने मेरी दुकान जला दी. मुझे छह लाख रूपए का नुक्सान हुआ है।” रिपोर्ट में इस घटना का अनुभव साझा करते हुए लिखा गया है कि आमिरुद्दीन प्रशासनिक डर से उनकी दुकान को जलाने वाले का नाम नहीं बताना चाहते थे।

34 वर्षीय आमिर हुसैन रवा बाजार में इलेक्ट्रिक उपकरणों की दुकान चलाते हैं। उन्होंने वकील एहतेशाम हाशमी के साथ अपना अनुभव साझा किया. आमिर हुसैन कहते हैं, “मेरी दुकान के बगल में हिन्दू परिवार रहता है। यह घर मानिक देबनाथ का है। जब दंगाई मेरी दुकान को जलाने के लिए आए तब देबनाथ दुकान के सामने आकर खड़ा हो गया और कहने लगा कि इनकी दुकान मत जलाओ वरना मेरा घर भी जल जाएगा। दंगाइयों ने मेरी दुकान तो नहीं जलाई लेकिन वह मेरी दुकान लूटकर ले गए. उन्होंने लैपटॉप, प्रिंटर और इलेक्ट्रिक मोटर चुरा लिए। साथ ही दुकान में तोड़फोड़ भी की. इन सबसे मुझे करीब 10 लाख रुपए का नुकसान हुआ है जबकि सरकार ने मात्र 26 हजार रूपए का मुआवजा दिया है।

इस टीम में शामिल वकीलों ने 8 मांगे रखी हैं। इस घटना के कारण जिन लोगों के व्यवसाय को आर्थिक नुकसान हुआ है, उन्हें राज्य सरकार द्वारा उचित मुआवजा मिलना चाहिए। साथ ही आगजनी और तोड़फोड़ में क्षतिग्रस्त हुए धार्मिक स्थलों को दोबारा बनाया जाए जिसके लिए सरकार पैसा दे, और आपत्तिजनक नारे लगाने वाले लोगों और संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।.

 

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