नई दिल्ली: (रुखसार अहमद) दक्षिण एशिया में अपने नारों, गीतों और अकाट्य तर्कों से नारीवादी आंदोलन को बुलंदियों पर ले जाने वालीं मशहूर लेखिका कमला भसीन का शनिवार सुबह दिल्ली में निधन हो गया है। कमला भसीन का निधन महिला आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका है।
जन आंदोलनों को आवाज देने वाली कमला ने दक्षिण एशियाई नारीवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। 2002 में, उन्होंने एक फेमिनिस्ट नेटवर्क ‘संगत’ की स्थापना की थी। आज उनके निधन की खबर एक्टिविस्ट कविता श्रीवास्तव ने ट्विटर पर दी।
महिलाओं की आवाज बनने वाली कमला भसीन का जन्म 24 अप्रैल 1946 को हुआ था। उन्होंने महिलाओं के लिए 1970 से काम करना शुरू कर दिया था। लैंगिक भेदभाव, शिक्षा, मानव विकास और मीडिया पर उन्होंने खूब काम किया था। कमला भसीन एक प्रख्यात लेखिका भी थीं। उन्होंने ने जेंडर इक्वालिटी, नारीवाद और पितृसत्ता के मुद्दों पर कई किताबें लिखी, ये किताबें कई भाषाओं में अनुवादित होकर बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंची। कमला भसीन के निधन पर अभिनेत्री शबाना आज़मी समेत अलग-अलग क्षेत्रों की तमाम हस्तियों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है।
I always thought #KamlaBhasin was invincible n so she remained till the end…
There was no dichotomy between what she said and what she did.
We at ActionAid will be poorer by her loss as will the thousands whose life she touched! Lets celebrate her life and contribution RIP— Azmi Shabana (@AzmiShabana) September 25, 2021
मीडिया एनालिस्ट नलक गुणवर्दने लिखते हैं कि “कमला भसीन के रूप में दक्षिण एशिया ने प्रकाश का एक पुंज एवं तार्किकता से भरी जोशीली आवाज़ खो दी है। उनके शब्द हमें प्रेरित करते रहेंगे।
#KamlaBhasin (1946-2021): Indian developmental feminist activist, poet, author and social scientist. #SouthAsia has lost a beacon of light and a passionate voice of reason. Her words will keep inspiring. #RIPKamlaBhasin #Feminism #Patriarchy https://t.co/pgPUQNujrh pic.twitter.com/EpoaH9FKeE
— Nalaka Gunawardene (@NalakaG) September 25, 2021
पार्लियामेंट्री कमेटी की रिपोर्ट स्टेटस ऑफ़ विमन इन इंडिया से 1975 में शुरू हुआ सफ़र मथुरा रेप केस, बलात्कार क़ानून में संशोधन, दहेज हत्या के ख़िलाफ़ आंदोलन से लेकर हाल के दिनों तक जारी रहा। वह पिछले 45 साल तक महिला आंदोलन का हिस्सा बनी रहीं। लेकिन इसके साथ ही उन्होंने मानवाधिकार के क्षेत्र में भी काफ़ी काम किया। वह पीयूसीएल के साथ काफ़ी गर्मजोशी के साथ खड़ी रहीं। और काफ़ी उत्साहवर्धन किया। वह मानवाधिकारी की बहुत बड़ी समर्थक थीं।
माना जाता है कि कमला भसीन ने अपने काम और हिम्मत से कई लोगों को सीमाएं लांघने और नयी ऊंचाइंयों को छूने के लिए प्रेरित किया। कविता श्रीवास्तव अपनी एक याद साझा करते हुए कहती हैं, “उनके बारे में ख़ास बात ये है कि वह भारत ही नहीं दक्षिण एशिया में नारीवादी आंदोलन की धुरी बनी रहीं। उन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश की बहनों को भी प्रेरित किय।
कमला ने मुझे पाकिस्तान जाने के लिए काफ़ी प्रेरित कियाष तब ऐसा करना बहुत कठिन था। लेकिन इस अनुभव ने मेरे व्यक्तित्व को एक नया जन्म दिया। मैं पाकिस्तान में दोस्ती बढ़ाने के लिए गयी। दक्षिण एशियाई नारीवादी आंदोलन का जो नारा है, जिसे हाल ही में लोगों ने कन्हैया कुमार की जुबान से सुना है। ये आज़ादी… वाला नारा कमला भसीन और पाकिस्तान की हमारी साथी निखत ने बनाया था।इस नारे की शुरुआत ऐसे होती थी – ‘मेरी बहनें मांगे आज़ादी, मेरी बेटी मांगे आज़ादी, मेरी अम्मी मांगे आज़ादी, भूख से मांगे आज़ादी…’ इसी में आगे फासीवाद, मर्दवाद और जातिवाद से दे दो आज़ादी आदि लाइनें हैं।