OBC जातियों की नहीं होगी गिनती, केंद्र का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा

नई दिल्ली, (रुखसार अहमद) केंद्र सरकार ने साफ किया है कि वह जनगणना में ओबीसी जातियों की गिनती नहीं करवाएगी। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि इस तरह की जनगणना व्यावहारिक नहीं है। 1951 से देश में यह नीति लागू है। इस बार भी सरकार ने इसे जारी रखने का फैसला लिया है।

पहले से चली आ रही नीति के तहत इस बार भी सिर्फ अनुसूचित जाति, जनजाति, धार्मिक और भाषाई समूहों की गिनती होगी। केंद्र ने यह हलफनामा महाराष्ट्र सरकार की एक याचिका के जवाब में दाखिल किया है। आबादी के जातिगत आंकड़े जुटाने और उसे सार्वजनिक करने की मांग पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा था। अब केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय ने लिखित जवाब दाखिल कर कहा है कि पिछड़ी जातियों की गणना कर पाना व्यावहारिक नहीं होगा।

केंद्र ने बताया है कि 2011 में जो सोशियो इकोनॉमिक एंड कास्ट सेंसस (SECC) किया गया था, उसे ओबीसी की गणना नहीं कहा जा सकता। मंत्रालय ने बताया है कि 2011 के SECC का उद्देश्य परिवारों के पिछड़ेपन का आंकलन था। इसके आधार पर जब जातिगत जनसंख्या का आंकलन करने की कोशिश की गई तो पता चला कि लोगों ने लाखों जातियां दर्ज करवाई हैं।

जबकि, केंद्र और राज्यों की ओबीसी लिस्ट में सिर्फ कुछ हजार जातियां हैं। लोगों ने अपने गोत्र, उपजाति आदि को भी दर्ज करवा दिया। इस तरह जातियों की संख्या का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सका। हलफनामे में बताया गया है कि जातियों की वर्तनी (स्पेलिंग) में इतना अंतर है कि पता लगाना मुश्किल है कि कौन ओबीसी है, कौन नहीं। सरकार ने महाराष्ट्र से ही उदाहरण देते हुए बताया है कि वहां पोवार ओबीसी हैं, लेकिन पवार नहीं। एक ही गांव या इलाके में लोगों ने अपनी जाति की स्पेलिंग अलग दर्ज करवा दी है। कई जगह सर्वे करने वालों ने अलग-अलग स्पेलिंग लिख दी है। ऐसे में इस सर्वे के आधार पर जातिगत आंकड़ा निकालने की कवायद बेकार साबित हुई।

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