गृहमंत्री अमित शाह से मिले मौलाना बदरुद्दीन अजमल, असम-मिजोरम तनाव को खत्म करने की मांग की

नई दिल्ली, असम-मिजोरम की सीमा पर चल रहे तनाव को लेकर मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने बुधवार (11 अगस्त) को दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने दोनों राज्यों के बीच शांति बरकरार रखने के मुद्दे को लेकर चर्चा की। मौलाना बदरुद्दीन ने असम-मिजोरम सीमा मुद्दे को हल करने के लिए उनसे जल्द हस्तक्षेप करने की मांग की है। अमित शाह के साथ हुई इस मुलाकात में उनके साथ सोनाई विधायक करीम उद्दीन बरभुइया भी शामिल थे। मौलाना अजमल ने कहा की हमने ब्रिटिश काल से असम-मिजोरम सीमा की ऐतिहासिक मुद्दो की व्याख्या करते हुए एक ज्ञापन सौंपा है। उन्होंने आगे कहा कि हमने मिजोरम प्रशासन के सक्रिय समर्थन से मिजो लोगों द्वारा असम के क्षेत्र पर आक्रमण करने तक स्पष्ट रूप से सीमा रेखा का सीमांकन किया। मौलाना बदरुद्दीन ने कहा कि “हमने अंतरराष्ट्रीय सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए मिजो प्रशासन की शांतिपूर्ण वापसी के लिए गृह मंत्री के जल्द हस्तक्षेप की मांग की है और यह वादा किया है कि अब मिजो की ओर से कोई हिंसक हमला नहीं किया जएगा। बता दें 26 जुलाई को हुए असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद एक भयानक हिंसक रूप ले गया था। सीमा पर हुई इस झड़प में असम पुलिस के 6 जवान शहीद हो गए थे, जबकि कई लोग घायल भी हुए थे। दोनों राज्यों के बीच काफी समय से सीमा को लेकर विवाद चल रहा है। दरअसल, असम और मिजोरम का बॉर्डर वर्तमान समय में करीब 165 किलोमीटर लंबा है और यह उस समय से मौजूद है जब मिजोरम को लुशाई हिल्सी के नाम से जाना जाता था। लुशाई हिल्सल, असम का ही एक जिला था। साल 1875 में एक नोटिफिकेशन जारी हुआ और नोटिफिकेशन के बाद लुशाई हिल्सी, काचर प्लेंेस से पूरी तरह से अलग हो चुका था। इसके बाद एक नोटिफिकेशन साल 1933 में जारी हुआ। इस साल जो नोटिफिकेशन आया उसमें लुशाई हिल्स और मणिपुर के बीच एक सीमा को रेखांकित कर दिया गया था। मिजोरम के लोगों का मानना है कि सीमा को सन् 1875 के नोटिफिकेशन के आधार पर रेखांकित किया जाना चहिए था। यह नोटिफिकेशन बंगाल ईस्ट र्न फ्रंटियर रेगुलेशन (BEFR) एक्टि, 1873 से तैयार किया गया था। मिजो नेताओं का कहना है कि पहले भी सन् 1933 के आधार पर तय हुई सीमा का विरोध किया जा चुका है। उनका तर्क है कि सीमा का निर्धारण करते समय मिजो नागरिकों से पूछा नहीं गया था और इसमें उनकी सलाह नहीं ली। मिजो नेताओं की मानें तो असम सरकार सन् 1933 के सीमा निर्धारण को मानता है और संघर्ष की असली कारण यही हैं। आजादी मिलने के बाद भी यह सीमा विवाद सुलझ नहीं पाया। सन् 1986 में स्टेीट ऑफ मिजोरम एक्टव को पास किया गया और सन् 1987 में मिजोरम एक अलग राज्यट बन बनकर उभरा। सन् 1950 में असम को भारत के राज्यर का दर्जा मिला। इसके बाद सन् 1960 और 1970 में इसकी सीमाओं से सटे कई नए राज्यल बने। इसकी वजह से असम का बॉर्डर कम होता चला गया। मिजोरम के लोगों का मानना है कि असम और मिजोरम की सरकारों के बीच हुए समझौते के तहत बॉर्डर में यथास्थिति को नो मैन्सम लैंड में बरकरार रखा जाना चाहिए।

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