(मासूमा सिद्दिक़ी)
देश दुनिया के सारे हालात लिख देता है,,
वो पत्रकार है, जो हक़ की बात लिख देता है,,
कभी कलम से, तो कभी तस्वीरों के ज़रिए
वो सच्चा इतिहास लिख देता है….
देके जान और वफ़ा अपनी मिट्टी को
अपने लहू से इंक़लाब लिख देता है……।।
ऐसा ही कुछ कर दिखाया है हिंदुस्तान की मिट्टी में जन्मे वरिष्ठ पत्रकार दानिश सिद्दिक़ी ने, जो अब हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गए हैं। सच्ची पत्रकारिता करने के लिए जिस बेहतरीन हौसले की ज़रूरत होती है , उस हौसले का नाम है दानिश सिद्दिक़ी। भारतीय फोटो पत्रकार एवं पुलित्जर पुरस्कार विजेता दानिश सिद्दिकी की अफगानिस्तान में मौत हो गई, और उनका यूँ इस तरह चले जाना पत्रकारिता जगत के लिए एक बहुत बड़ा नुकसान है। सिद्दिकी, अफगानिस्तान में अफगान सैनिकों और तालिबान के बीच लड़ाई की कवरेज करने के दौरान मारे गये। दानिश की हिम्मत और कार्यशैली इस बात का सबूत है कि आज पूरा देश उनके लिए भाव विभोर और दुःखी है।
ईमानदार और साहसी युवा फ़ोटो पत्रकार दानिश सिद्दिक़ी जानी-मानी अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स के चीफ़ फ़ोटोग्राफ़र थे। रॉयटर्स के अधिकारियों के हवाले से उनकी मौत की पुष्टि की गई है। एक अफ़ग़ान कमांडर ने रॉयटर्स को जानकारी दी कि अफ़ग़ानिस्तान के विशेष सुरक्षाबल की एक टुकड़ी स्पिन बोल्डक ज़िले के मुख्य बाज़ार को दोबारा अपने नियंत्रण में करने की कोशिश कर रही थी। तभी तालिबान के साथ मुठभेड़ में दानिश और कई अफ़ग़ान अधिकारी मारे गए। कंधार का स्पिन बोल्डक वही शहर है जो पाकिस्तान की सीमा से लगता है। एक बहुत ही मुश्किल संघर्ष के दौरान फ़ोटो जर्नलिस्ट दानिश की मौत एक बहादुर पत्रकार की अनोखी मिसाल है। दानिश पिछले एक सप्ताह से अफ़ग़ानिस्तान के विशेष बल के साथ कंधार प्रांत में तैनात थे जहाँ से वो अफ़ग़ान कमांडो और तालिबान लड़ाकों के बीच जारी संघर्ष की ख़बरें भेज रहे थे। वो इस बारे में और ज़्यादा जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे थे। अवाम तक सही ख़बर पहुंचाने की कोशिश में लेकिन अब अपनी जान गंवा बैठे हैं।
फ़िलहाल आपको बता दें कि दानिश सिद्दीक़ी मुंबई में रहते थे जहाँ वो भारत में रॉयटर्स पिक्चर्स की मल्टीमीडिया टीम के चीफ थे। उन्होंने दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक की तालीम ली थी और 2007 में उन्होंने जामिया से ही एजेके मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर से डिग्री प्राप्त की थी। उन्होंने पत्रकारिता में अपने करियर की शुरूआत एक टीवी न्यूज़ संवाददाता के तौर पर की थी। बाद में वो फ़ोटो जर्नलिस्ट बने और साल 2010 में रॉयटर्स में बतौर इंटर्न के तौर पर काम शुरू किया। तमाम चुनौतियों का सामना करते पत्रकारिता को ज़िंदा रखने वाले दानिश एक बहुत ही जिंदादिल इंसान थे। समाज को सच का आईना दिखाने और अपनी फ़ोटो पत्रकारिता से दुनिया के सामने सच्ची तस्वीरें रखने में वो हमेशा कामयाब हुए। सामाजिक कुरीतियों और अपराधों को सही ढंग से पहचानने, लोगों की भावनाओं को अपनी तस्वीरों के माध्यम से कहने में दानिश बहुत ही निपुण थे। उनकी हिम्मत और बहादुरी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो अफगानिस्तान से लड़ाई के मौहोल से तस्वीरों के माध्यम से लगातार ख़बर पहुंचा रहे थे। उन्होंने जो प्रभावकारी भूमिका जाते जाते निभा दिया वह देश के हर पत्रकार के लिए मिसाल है।
तालिबान आतंकियों ने जिस जांबाज़ फ़ोटो जर्नलिस्ट दानिश की जान ली, उन्होंने सच्ची पत्रकारिता के लिए आज अपनी जान दाँव पर लगा दी है। एक बार फिर से हिंदुस्तान की शान तिरंगे को गौरवान्वित कर दिखाया है। आपको बता दें कि पिछले दिनों जब अखबारों में भारत में कोरोना मरीजों की जो जलती लाशों की तस्वीरें प्रकाशित हुई थी उनमें से बहुत सारी तस्वीरें दानिश सिद्दिक़ी ने ही ली थी। पत्रकारिता की दुनिया में दानिश का कैरियर 12 साल लंबा है। उन्हें 2018 में पुलित्जर पुरस्कार म्यांमार में रोहिंग्या संकट की कवरेज के लिए मिला था। दिल्ली में पिछले साल हुए दंगों की कवरेज भी उन्होंने ही की थी। साथ ही जामिया मिलिया के पास हमलावर की तस्वीर भी दानिश सिद्दिक़ी ने ही ली थी।
दानिश सिद्दिक़ी ने अपना फ़र्ज़ पूरा करते हुए, अपने काम को अंजाम देते हुए अपना कर्तव्य जिस तरह युद्ध मैदान में निभाया है, उससे ये साबित होता है पत्रकारिता आज भी मिशन है, कमीशन नही। जिस मिशन को अपना लहू देके उन्होंने पूरा किया है। तमाम तरह के अच्छे पत्रकार अपनी बात को अपनी सोच को कलम के जरिये दुनिया के सामने रखते हैं। दानिश वो थे जो अपनी विचारधारा को तस्वीरों के ज़रिए रखते थे। आज वो जिसतरह अपना फ़र्ज़ निभाते हुए एक युद्ध के मैदान में शहीद हुए हैं , वो आने वाले हर भावी पत्रकार के लिए बहुदूरी और सच्ची पत्रकारिता की मिसाल दे गए हैं। ऐसे पत्रकार को और ऐसी निष्पक्ष पत्रकारिता को कभी भूला नही जा सकता। दानिश सिद्दिक़ी अपनी जान की बाज़ी लगा के आज पत्रकारिता के इतिहास में एक नया पन्ना लिख दिया है। उनके इस बलिदान को, साहस, और ईमानदारी को हिंदुस्तान सलाम करता है।
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