नई दिल्ली: ( Desk Report ) पांच राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक हलचल अपने चरम पर है. बात अगर असम विधानसभा चुनाव की करें, तो वहां सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक दल पूरी कोशिश कर रही है कि असम की जनता उस पर विश्वास कर सत्ता की कमान दे दें।
सनद रहे कि पिछले कुछ सालों से देश के प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के नेता नागरिकता क़ानून की जमकर वकालत करते नजर आते हैं. जबकि असम में एनआरसी भी हो चुकी है. परंतु हैरत की बात है कि बीजेपी असम विधानसभा चुनाव में इसे मुद्दा बनाने के बजाय इससे बचती नज़र आ रही है. यहां वो विकास का मुद्दा ज्यादा उछाल रही है. जबकि अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावी भाषणों में सीएए एवं एनआरसी को चुनावी मुद्दा बना रही है.
बताते चलें कि पिछले 30 दिनों से कुछ लोग धरने पर इसलिए बैठे हैं कि उन्हें देश की नागरिकता मिल जाए.
असम में 19 लाख से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जो बाहर देश से आएं है. जिसमें सबसे ज्यादा संख्या बांग्लादेश से आये लोगों की है.
पहले असम चुनाव में धार्मिक पहचान से इतर मूल-जनजातीय और भाषाई पहचान बड़ा मुद्दा हुआ करती थीं जिसके सहारे बीजेपी ने वहां अपनी पहचान बनाई और सत्ता में आई. और उस वक़्त असम में बीजेपी के नेता और राज्य मंत्रिमंडल के स्वास्थ मंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा लगातार ये बयान देते रहे हैं कि उन्हें मुस्लिम वोट बैंक की ज़रूरत नहीं है. उनके लिए हिंदू मतदाता ही काफी हैं.
2019 और 2020 में बीजेपी सरकार जहां इस बात पर अड़ी हुई थी कि देश में नागरिकता कानून लाया जाए, परंतु अब वही मुद्दा असम क्यों नहीं उठा रही. जबकि असम में वोट पाने के लिए विकास का मुद्दा चुन रही है. गौरतलब हो कि दोनों राष्ट्रीय पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस, असम की क्षेत्रीय पार्टियों से गठबंधन बनाने में जुटी हुई है. कि किसी भी तरह असम में उनकी पार्टी को जीत मिले और वो असम में अपनी सरकार बनाए