सुल्तान पैलेस पर क्या कहते हैं नागरिक समाज के लोग, इसे बचाना क्यों ज़रूरी है?

नई दिल्ली, (Asif Eqbal) पिछले कुछ दिनों से पटना का सुल्तान पैलेस खबरों में है। पटना हाई कोर्ट ने अपने सुनवाई के दौरान बिहार सरकार से जवाब मांगा है कि सरकार सुल्तान पैलेस को क्यूँ तोड़ना चाहती है।

23 सितंबर को सुनवाई करते हुए न्यायालय ने सरकार से, आठ महीने के अंदर अपना पक्ष रखने को कहा है। कोर्ट ने युवा वकीलों द्वारा दायर जनहित याचिका के सन्दर्भ में ये जवाब मांगा है।

क्या है पूरा मामला?

पिछले दिनों बिहार सरकार ने फैसाल लिया कि कुछ पांच सीतारा होटल पटना में बनाया जाए. इसके लिए पटना के कई स्थान को सरकार ने चुना है. जिसमें पटना का सुल्तान पैलेस भी शामिल है. ये एक हेरिटेज ईमारत है जिसमें अभी बिहार सरकार के परिवहन विभाग का दफ्तर हैं.

क्या है सुल्तान पैलेसे? किसने इसे बनवाया?

सियासी तौर पर अहम माने जाने वाले, वीर चन्द पटेल मार्ग पर ये एतिहासिक इमारत है. जिसे आज से ठीक सौ साल पहले यानि 1922 में, बैरिस्टर सर सुल्तान अहमद ने बनवाया था . जानकार कहते हैं कि इस तारीखी ईमारत को बनवाने में पुरे 22 लाख खर्च किए थे सर सुल्तान ने . इंडो-सारसेनिक शैली में बनी यह हवेली कई माएने में खास है. इसकी सीढ़ियों पर लगी लकड़ियों को उस वक़्त, तब के बर्मा से मंगाया गया था. इसमें लगे शीशे को इटली से लाया गया था. इससे ये पता चलता है कि सर सुल्तान की इस इमारत को बनवाने में खासी दिलचसपी थी. अब आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि सैयद सुल्तान अहमद थे कौन.

कौन थे सर सुल्तान अहमद ?
सुल्तान अहमद पटना के एक नामवर बैरिस्टर थे.सार्वजनिक जीवन में काफी सक्रिय रहते थे. वकालत के एलावह उनकी पहचान पटना विश्वविद्यालय के पहले भारतीय वाईस चांसलर के तौर पर है. इनका कार्यकाल 1923 से 1930 के दरमियान रहा. अपने दौर में उन्होंने यूनिवर्सिटी की मुख्य इमारत बनवाई और कई विभाग खोले. सर सुल्तान मूल रूप से बिहार के जहानाबाद के रहने वाले थे. इनकी ख़्याति एक ज्युरिस और शिक्षाविद के रूप में रही. सन 1963 में इनका इंतेकाल जहानाबाद में ही हो गया.

सुल्तान पैलेस पर क्या कहते हैं नागरिक समाज के लोग. इसे बचाना क्यों ज़रूरी है?

शहर को जिंदा रखने में वहाँ के अवाम की अहम भूमिका होती है. इस पूरे मुहिम को नौजवानों ने आगे बढ़ाया. जनहित याचिका दायर करने वाले वकीलों में से एक कहते हैं कि “सुलतान पैलेस पटना हाई कोर्ट से जुड़े बैरिस्टर सर सुल्तान अहमद की एक मात्र निशानी है. हम सब की ज़िम्मेदारी है कि बिहार के इस महान न्यायविद को याद रखा जाए. इसी लिए सुल्तान पैलेस को बचाना ज़रूरी है ”

इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले मोहम्मद दानिश, सर सुल्तान को याद करते हुए कहते हैं कि “सुल्तान पैलेस को तोड़ना एक बेवक़ूफ़ी भरा फैसला होगा. हेरिटेज टूरिज्म के जरिये इस बिल्डिंग को विकसित किया जा सकता है. यूरोपीय देशों में आज भी 300-400 साल पुरानी इमारतें हैं. वहाँ की सरकार ने उसे इस तरह से सँवार कर रखा है कि आज भी दूसरे मुल्क़ों से लोग उस इमारत को देखने जाते हैं. बिहार जैसे गरीब प्रदेश में सरकार को चाहिए कि सुल्तान पैलेस सहित अन्य पुरानी इमारत को सजाए संवारे. इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. गरीब राज्य के लोगों को रोजगार मिलेगा.”

हेरिटेज टाईम्स से जुड़े और पटना के एतिहासिक इमारतों पर नज़र रखने वाले उमर अशरफ बताते हैं कि “सुल्तान पैलेस को सरकार द्वारा तोड़ने का फैसला ये दिखाता कि हमें अपने विरासत की क़द्र नहीं है.”

“सुल्तान पैलेस एक ऐतिहासिक इमारत है और पूरे विश्व में ऐतिहासिक इमारत को बचाने की कवायद चल रही है. हम चाहते हैं कि सुल्तान पैलेस के अस्तित्व को बचाया जाए और इसे हेरिटेज होटल के रूप में तब्दील किया जाए”- अमरजीत( पेशे से वकील) शिकायतकर्ता

“सुल्तान पैलेस बिहार के खूबसूरत ऐतिहासिक इमारतों में एक है मिश्रित स्थापत्य कला का यह बेमिसाल नमूना है. सर सैयद सुल्तान अहमद ने अपने खर्चे से इमारत का निर्माण कराया था. इमारत में लगने वाले लकड़ी जहां वर्मा से मंगाए गए थे वहीं से इटली से मंगवाए गए थे”- दानिश, इतिहास के जानकार

बिहार सरकार ने 2008 में सुल्तान पैलेस को पर्यटन विभाग के वेबसाइट पर शामिल भी किया था. इस मुद्दे पर अगली सुनवाई पटना हाई कोर्ट में 2 दिसंबर को है. उम्मीद है सरकार इसको एक हेरिटेज इमारत के तौर पर विकसित करेगी.

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