नई दिल्ली, (शयान अस्कर) वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर आज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने के ज़िला अदालत के फैसले पर रोक लगा दी। जिसमें ASI ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण का आदेश दिया गया था। अब ASI अपना सर्वे नहीं कर सकतीं। मस्जिद की कमिटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने वाराणसी जिला अदालत के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। साथ जस्टिस प्रकाश पाण्डिय की पीठ ने निचली अदालत में चल रही सुनवाई पर भी रोक लगा दी।
आप को बताते हैं आख़िर ये ज्ञानवापी मस्जिद विवाद हैं क्या?
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि यहां एक कुआं हैं और उसके अंदर शिव लिंग हैं। यही नहीं ढांचे की दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित है। कुछ लोगों का मानना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने 1664 में नष्ट कर दिया था। फिर इसके अवशेषों से मस्जिद बनवाई, जिसे मंदिर की जमीन के एक हिस्से पर ज्ञानवापसी मस्जिद के रूप में जाना जाता है।
वहीं प्रोफेसर चतुर्वेदी कहते हैं मस्जिद निर्माण का कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है और मस्जिद का नाम ज्ञानवापी हो भी नहीं सकता, ऐसा लगता है कि शायद वहा कोई पाठशाला रही होगी जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई होगी इसलिए उसका नाम ज्ञानवापी मस्जिद रखा गया। काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मामले में 1991 में वाराणसी कोर्ट में मुकदमा दाखिल हुआ था।
इस याचिका कि जरिए ज्ञानवापी में पूजा की अनुमति मांगी गई। लेकिन कुछ ही दिनों बाद कमेटी ने उपासना स्थल कानून एक्ट, 1991 का हवाला देकर इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1993 में स्टे लगाकर मौके पर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया ।
वहीं, मुस्लिम पक्ष और अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल विरोध पत्र में दावा किया गया कि यहां विश्वनाथ मंदिर कभी था ही नहीं और औरंगजेब बादशाह ने उसे कभी तोड़ा ही नहीं. जबकि मस्जिद अनंत काल से कायम है। उन्होंने अपने विरोध पत्र में यह भी माना कि कम से कम 1669 से यह ढांचा कायम चला आ रहा है। यहां तक कोरोना काल में भी लोग यहां नमाज़ पढ़ते रहें हैं।