वरिष्ठ टीवी पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी के दो महीने के ्अंदर ही सूर्या समाचार से रुखसत होने की खबर जहां आज मीडिया गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है, ऐसे में वरिष्ठ टीवी पत्रकार ्अजीत अंजुम ने फेसबुक पर एक पोस्ट से जरिेए बताया है कि सूर्या समााचार का मालिकान किस तरह का है और उन्हें क्यों प्रसून की रुखसत वाली खबर पर हैरानी नहीं हुआ।
पढ़ें अजीत अंजम का पोस्ट
मुझे हैरत तो उस दिन हुई थी, जिस दिन प्रसून बाजपेयी ने सूर्या समाचार जॉइन किया था। आज बिल्कुल हैरान नहीं ,जब जाना कि प्रसून पूरी टीम के साथ वहां से रुखसत हो रहे हैं।
जिस आदमी से 20 मिनट की मुलाकात बाद ही मैं चाय तक छोड़कर उठ गया था कि आपके साथ न मैं चाय पी सकता हूँ न ही एक दिन भी काम कर सकता, उस आदमी की कंपनी में प्रसून चले कैसे गए? हैरानी इस बात पर हुई थी।
मेरी मुलाकात डेढ़ साल पहले हुई थी। नहीं चाहते हुए भी किसी के बहुत अनुरोध पर मिलने गया था। पहले मिनट में ही मैंने तय कर लिया कि यहां तो काम किसी सूरत में नहीं करना है। 15 मिनट बाद ‘लाला जी’ जी की चाय आई। चाय सामने रखते हुए उन्होंने कहा- ‘देखो जी, हम तो हर रोज की चाय का भी हिसाब रखते हैं। मुझे पता होता है कि आज कितनी चाय बनी ‘।
तभी मैं ये कहते हुए उठ खड़ा हुआ कि आप किसी वक्त के मारे को खोजिए, जो आपके साथ काम कर सके। आप चाय का हिसाब रखिए और बिस्किट के साइज पर रिसर्च करते रहिए। मेरे जैसा आदमी एक घंटा आपके साथ काम नहीं कर सकता।
लाला जी को हक्का बक्का छोड़ मैं तेजी से बाहर निकल गया।
बाद में सुना कि कई संपादक आए और गए।. हैरान उस दिन हुआ जब प्रसून गए।
ये बात अगस्त 2017 की है। मैंने एक सुबह ताव में आकर इंडिया टीवी से इस्तीफ़ा दे दिया था और कुछ दिन ब्रेक पर रहने का मन बना चुका था। तीसरे ही दिन एक आदमी का फ़ोन आया कि आपसे आज ही मिलना है। देर रात को वो मेरे घर आए। प्रिया गोल्ड बिस्किट के मालिक का महिमा मंडन करने के बाद मेरे सामने उनका गर्भस्थ चैनल को लाँच करने का ऑफ़र रखा। मैंने साफ़ मना कर दिया तो कहने लगे कि एक बार कल ही आप चैयरमैन साहब से मिल लीजिए। फिर जो फ़ैसला करना हो करिए। मैंने उनके ऑफ़िस जाने से इनकार किया। तब मेरी बताई जगह पर मीटिंग तय हुई।
लाला जी मिलते ही कहने लगे मेरे ऑफ़िस ही चलिए। आराम से बात करेंगे। शिष्टाचार में मैं उनके साथ चला गया, लेकिन बातों से ही पता चल गया कि उनकी मंशा क्या है। मैं चाहता तो लाखों की मोटी और मुंहमांगी रक़म लेकर दो-चार -छह महीने गुज़ार देता, जैसे कुछ बड़े पत्रकार-संपादक करते हैं, लेकिन मेरा ताव मुझे ऐसा करने नहीं देता है।
बाद में लाला जी से इस एनकाउंटर के बारे में मैंने कई दोस्तों को बताया। कुछ ने ये भी कहा कि आपको इतना ब्लंट नहीं होना चाहिए था। मैंने हमेशा यही कहा कि वो आदमी ऐसा ही ब्लंट जवाब डिजर्व करता था।