मिल्लत टाइम्स,नई दिल्ली: अयोध्या विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मध्यस्थों को सौंप दिया। मध्यस्थता की बातचीत फैजाबाद में होगी।जस्टिस फकीर मुहम्मदखलीफुल्ला मध्यस्थता पैनल की अध्यक्षता करेंगे। इस पैनल में श्री श्री रविशंकर और वकील श्रीराम पंचू भी होंगे।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पैनल 4 हफ्ते में मध्यस्थता के जरिए विवाद निपटाने की प्रक्रिया शुरू करे। 8 हफ्ते में यह प्रक्रिया खत्म हो जानी चाहिए।
‘पूरी प्रक्रिया गोपनीय होगी’
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि मध्यस्थता प्रक्रिया कोर्ट की निगरानी में होगी और इसे गोपनीय रखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जरूरत पड़े तो मध्यस्थ और लोगों को पैनल में शामिल कर सकते हैं। वे कानूनी सहायता भी ले सकते हैं। मध्यस्थों को उत्तरप्रदेश सरकार फैजाबाद में सारी सुविधाएं मुहैया कराएगी।
मध्यस्थता के माहिर रहे हैं पंचू
जस्टिस खलीफुल्ला : मूल रूप से तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में कराईकुडी के रहने वाले हैं। उनका जन्म 23 जुलाई 1951 को हुआ था। 1975 में उन्होंने वकालत शुरू की थी। वे मद्रास हाईकोर्ट में न्यायाधीश और इसके बाद जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रहे। उन्हें 2000 में सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के तौर नियुक्त किया गया। 2011 में उन्हें कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
श्रीराम पंचू : वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू मध्यस्थता से केस सुलझाने में माहिर माने जाते हैं। कोर्ट से बाहर केस सुलझाने के लिए उन्होंने ‘द मीडिएशन चैंबर’ नाम की संस्था भी बनाई है। वे एसोसिएशन ऑफ इंडियन मीडिएटर्स के अध्यक्ष हैं। वे बोर्ड ऑफ इंटरनेशनल मीडिएशन इंस्टीट्यूट के बोर्ड में भी शामिल रहे हैं। असम और नागालैंड के बीच 500 किलोमीटर भूभाग का मामला सुलझाने के लिए उन्हें मध्यस्थ नियुक्त किया गया था।
श्रीश्री रविशंकर : आध्यात्मिक गुरु हैं। वे अयोध्या मामले में मध्यस्थता की निजी तौर पर कोशिश करते रहे हैं। इस संबंध में उन्होंने पक्षकारों से मुलाकात की थी। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर इस मसले को सुलझाने का एक फॉर्मूला भी पेश किया था।
‘लक्ष्य की ओर चलना है’
श्रीश्री रविशंकर ने ट्वीट किया, “सबका सम्मान करना, सपनों को साकार करना, सदियों के संघर्ष का सुखांत करना और समाज में समरसता बनाए रखना – इस लक्ष्य की ओर सबको चलना है।”
Respecting everyone, turning dreams to reality, ending long-standing conflicts happily and maintaining harmony in society – we must all move together towards these goals.#ayodhyamediation
— Gurudev Sri Sri Ravi Shankar (@SriSri) March 8, 2019
14 अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर हो रही है। अदालत ने सुनवाई में केंद्र की उस याचिका को भी शामिल किया है, जिसमें सरकार ने गैर विवादित जमीन को उनके मालिकों को लौटाने की मांग की है।
चार प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में विवाद का हल निकालने की कोशिशें हुईं
1986: प्रधानमंत्री राजीव गांधी के वक्त तब के कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रेसिडेंट अली मियां नादवी के बीच बातचीत शुरू हुई थी, लेकिन नाकाम रही।
1990: तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर राव ने दोनों समुदायों के बीच गतिरोध तोड़ने की कोशिश की। उन्होंने उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार और राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत की मध्यस्थता में बात कराई, लेकिन कोई बात नहीं बनी।
1992: तत्कालीन प्रधानमंत्रीनरसिम्हा राव ने भी इस विवाद को बातचीत से सुलझाने की कोशिश की। बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराने के बाद उन्होंने जस्टिस लिब्रहान की अध्यक्षता में एक जांच कमीशन भी बनाया, जिसने 2009 में अपनी रिपोर्ट दी।
2002: अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार में हिंदू-मुस्लिम नेताओं से इस मसले पर बात करने के लिए पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी शत्रुघ्न सिन्हा की अध्यक्षता में अयोध्या सेल बनाया, लेकिन ये कोशिश भी नाकाम रही।
2003 से 2017 के बीच भी हुई कोशिशें
2003: कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की बात कही।
2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के तत्कालीन चीफ जस्टिस धर्मवीर शर्मा ने इस मसले को बातचीत से सुलझाने का सुझाव दिया।
2016: ऑल इंडिया हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी और मुस्लिम पक्ष की तरफ से दायर याचिकाओं की अगुआई करने वाले मोहम्मद हाशिम अंसारी के बीच मुलाकात हुई। अंसारी ने हनुमान गढ़ी मंदिर के महंत ज्ञान दास से भी बातचीत शुरू की। बातचीत में योजना बनाई कि विवादित 70 एकड़ पर मंदिर और मस्जिद का निर्माण कियाजाए और दोनों के बीच 100 फीट की दीवार रहे।
2016: मई में ऑल इंडिया अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने भी अंसारी से मुलाकात की, लेकिन बातचीत आगे बढ़ती, इससे पहले ही अंसारी का निधन हो गया। इसके बाद इसी साल रिटायर्ड जज जस्टिस पलक बसु ने भी कोर्ट के बाहर समझौते से इस मसले को सुलझाने का सुझाव दिया।
2017: मार्च में सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर सुनवाई के दौरान एक बार फिर मध्यस्थता की पेशकश की। तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने सुझाव दिया किअगर दोनों पक्ष कोर्ट के बाहर इस मसले को सुलझाने के लिए राजी हैं, तो कोर्ट मध्यस्थता करने को तैयार है।
2017: नवंबर में आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर ने भी इस मामले को बातचीत से सुलझाने की कोशिश की। उन्होंने दूसरे पक्ष से कई मुलाकात भी कीं, लेकिन इस बातचीत का कोई हल नहीं निकला।(इनपुट भास्कर)