इस्लाम धर्म से ज्यादा दुसरे धर्मों मे छोड़ी गई है महिलाएं,तो फिर इस्लाम धर्म पर हि कानून क्यों?

मिल्लत टाइम्स,नई दिल्ली: मुस्लिम महिला से ज्यादा दुसरे धर्मों की महिलाओं की स्थिति ज्यादा दयनीय है जिन्हें उनके पतियों ने एकतरफा तरीके से छोड़ दिया है। ये महिलाएं बेहद मुश्किल हालातों के बीच अपना जीवन बसर कर रही हैं। पिछली जनगणना के मुताबिक छोड़ी गई महिलाओं की संख्या 23 लाख थी। जो मुस्लिम कि तुलना मे कहीं ज्यादा है।

रोजमर्रा के जीवन में ऐसी ही कई महिलाओं को आप भी देखते होंगे। जो पढ़ी लिखी होती हैं, वह खुद को संभाल भी लें। लेकिन जो महिलाएं अशिक्षित होती हैं, वह ऐसे में बेसहारा हो जाती हैं। पति द्वारा छोड़े जाने पर कुछ अपने माता-पिता के घर चली जाती हैं। लेकिन जिन्हें वहां भी सहायता नहीं मिलती वह खुद को लाचार समझने लगती हैं। महिलाओं को केवल आर्थिक तौर पर ही समस्याएं नहीं झेलनी पड़ती बल्कि उन्हें सामाजिक समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।

उन्हें समाज के लोगों से सुनना पड़ता है कि उन्हें उनके पति ने क्यों छोड़ा? क्या गलती की थी उन्होंने जो उनके साथ ऐसा हुआ? अब आगे क्या करेंगी और कहां जाएंगी? समाज के इन तीखे सवालों का सामना करने वाली इन महिलाओं की दशा बखूबी समझी जा सकती है।

हैरान करने वाले हैं आंकड़े

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 13.2 लाख तलाक हुए हैं। तलाकशुदा लोगों में महिलाओं की संख्या 9.09 लाख है। जो कुल तलाकशुदा लोगों की आबादी का 68 फीसदी हिस्सा है।

भारत में प्रति एक हजार शादियों में 2.3 फीसदी तलाक होते हैं। जिसमें तलाकशुदा पुरुषों की संख्या 1.58 फीसदी और महिलाओं की संख्या 3.10 फीसदी है। ऐसे में साबित होता है पुरुष महिलाओं की तुलना में तेजी से दूसरी शादी कर लेते हैं।

अगर केवल महिलाओं की संख्या पर गौर करें तो सबसे अधिक तलाकशुदा महिलाएं बौध धर्म में हैं। (प्रति 1,000 विवाहों पर 6.73 फीसदी), इसाईयों में ये आंकड़ा (5.67 फीसदी), मुस्लिमों में (5.63 फीसदी) है। वहीं अन्य समुदायों में ये संख्या (4.91 फीसदी), जैन (3.04 फीसदी), हिंदू में (2.60 फीसदी) और सिख में (2.56 फीसदी) है।

एक राष्ट्रवादी मुस्लिम महिला संघ ने जून, 2016 में देश के सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को संहिताबद्ध करने के लिए दायर की गई इस याचिका में महिलाओं की दशा की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया गया। बता दें ये महिला संघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध रखती है।

इस याचिका का मकसद तीन तलाक, को समाप्त कर इस्लाम धर्म मे हस्तक्षेप करना था । इस मुद्दे पर कोर्ट ने अक्तूबर माह में सरकार से विचारों की मांग की।

सरकार ने कोर्ट को दिए जवाब में कहा कि बीते 65 सालों से मुस्लिम समुदाय में कोई सुधार नहीं हुआ है। जिसके चलते मुस्लिम औरतें सामाजिक और आर्थिक तौर पर बेहद नाजुक स्थिति में खड़ी हैं। सरकार ने तीन तलाक प्रथा की आलोचना की। ये भी कहा गया कि धर्म और संप्रदाय के नाम पर महिलाओं के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस मामले पर कहा कि सरकार ने इस बिल पर किसी भी पक्ष से बात नहीं की है। जो लोग विरोध कर रहे हैं उनकी तो छोड़िए, जिनके लिए बिल लाया जा रहा है उनसे तक बात नहीं की गई है। आपने (सरकार) समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और तीन तलाक को आपराधिक करार दे दिया है। क्योंकि यह हमारे खिलाफ इस्तेमाल होगा। लैंगिक अल्पसंख्यकों को धारा 377 में अपनी पसंद की छूट दी गई, तब धार्मिक अल्पसंख्यकों को क्यों नहीं?

समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खां का कहना है कि हमें कुरान के अलावा कोई भी कानून मान्य नहीं है। उन्होंने कहा इससे मुसलमानों का कोई लेना-देना नहीं है, जो लोग मुसलमान हैं जो कुरान को मानते हैं, हदीस को मानते हैं वह जानते हैं कि तलाक का पूरा प्रोसीजर कुरान में दिया हुआ है।

आजम ने कहा कि हमारे लिए कुरान के उस प्रोसीजर के अलावा कोई भी कानून मान्य नहीं है जो कुरान कहता है अगर उसके तहत कोई तलाक नहीं देता, खुला नहीं देता तो ना वो तलाक है ना खुला है। लिहाजा यह बहस की बात नहीं है सिर्फ कुरान का कानून और कोई कानून नहीं हिंदुस्तान ही नहीं पूरी दुनिया के मुसलमानों को कोई कानून मान्य नहीं है सिर्फ कुरान है। कैसे शादी करेगा, कैसे इबादत करेगा, कैसे तलाक देगा सब कुरान में है। इसकी पूरी डिटेल है हमारे मजहबी मामलात हैं। उन्होंने लोकसभा में होने वाली बहस में कहा पहले लोग उन औरतों को न्याय दें जिन्हें शौहरों ने स्वीकारा नहीं है, जो सड़कों पर फिर रही हैं। शौहरों का घर ढूंढती फिर रही हैं उन औरतों को तो न्याय दें।

बता दें इस्लाम में दो तरह के तलाक की बात कही गई है। एक ‘खुला’, जिसकी पहल पत्नी कर सकती है और दूसरा ‘तलाक’ जिसकी पहल पति कर सकता है। तलाक देने वाले पति को तलाक के बाद पत्नी को मेहर चुकानी पड़ती है। वहीं अगर तलाक की पहल यानी खुला पत्नी की ओर से होती है तो मेहर नहीं दी जाती।

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is a young journalist & editor at Millat Times''Journalism is a mission & passion.Amazed to see how Journalism can empower,change & serve humanity