कस्तूरबा नगर को क्यों तोड़ा जा रहा है?

29 अगस्त को कस्तूरबा नगर में एनसीएचआरओ द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई। रिपोर्ट द्वारा जो निष्कर्ष निकले वो आंखें खोलने वाले थे और यह और भी स्पष्ट करता है कि कस्तूरबा नगर में ये घर तोड़ने का अभियान DDA द्वारा उत्पीड़ित जाति और वर्ग के लोगों के खिलाफ एक व्यवस्थित हमला है।

रिपोर्ट रिलीज में कई वक्ता थे – जितेंद्र मीणा (डीयू में प्रोफेसर), गुरुशरण सिंह (कस्तूरबा नगर के सबसे पुराने निवासी), आशुतोष (एनसीएचआरओ के उपाध्यक्ष), मोनिका (छात्र संगठन भगत सिंह छात्र एकता मंच की सदस्य, बीएससीईएम)धनु और विक्की, कस्तूरबा नगर निवासी।

एक संक्षिप्त सारांश-

कस्तूरबा नगर को क्यों तोड़ा जा रहा है?

जितेंद्र मीणा और अन्य वक्ताओं ने बहुत से तथ्यों पर बात की। क्यों सिर्फ दलित और अल्पसंख्यकों के घरों को बुल्डोज करने की राजनीति ये सरकार चलातीं हैं।

डीडीए जिस सड़क का निर्माण करना चाहता है, उसे शिवम एन्क्लेव (एक उच्च वर्ग कॉलोनी) के पास के पार्क/ पार्किंग को हटाकर बनाने की अनुमति दी गई थी, लेकिन उन्हें स्टे ऑर्डर मिल गया और अब उसकी जगह गरीब लोगों के घरों को तोड़ा जा रहा है ,

जिनके पास सत्ता है और पूंजी है (सामाजिक और आर्थिक) वे नहीं चाहते कि उनसे अलग दिखने वाले लोग उनके आस-पास रहें। यह पूरी दिल्ली में हो रहा है, जहां सरकार और शक्तिशाली लोग मजदूर वर्ग के लोगों को सिर्फ इसलिए दूर फेंक देते हैं क्योंकि वे उनके जैसे नहीं हैं।

हमें एकजुट होकर खड़े होने की आवश्यकता क्यों है?

धनु ( अभी किरोरीमल कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं) , और गुरचरण जो कि कस्तूरबा नगर निवासी हैं। उन्होंने संगठित होकर लड़ने पर ज्यादा जोर दिया। साथ ही कहा कि “हमें झूठी खबरों और बातों के लालच में नहीं आना चाहिए क्योंकि हम जानते हैं की एकजुटता में ही ताकत है।

सरकार हमें तोड़ना चाहती है। *वे टुकड़ों में कॉलोनी को ध्वस्त कर रहे हैं ताकि लोग एकजुट न रहें। वे लोगों को किसी भी संघर्ष से दूर करने की कोशिश कर रहे हैं और इसलिए हमें अधिक सावधान रहने और ज्यादा संगठित होने की आवश्यकता है क्योंकि यह हमारे घरों की लड़ाई है। ये घर एक दिन में नहीं बने थे, बल्कि पीढ़ियों और दशकों की बचत से बने हैं । हम 1947 में यहां आकर बसे और यह हमारे अस्तित्व की लड़ाई है, हमारे घरों की लड़ाई है।”

पुनर्वास के झूठे वादों पर हमें विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए?

बीएससीईएम (भगत सिंह छत्र एकता मंच) की मोनिका ने कहा कि लोगों को अपनी लड़ाई को मजबूत रखने की जरूरत है। उन्होंने कस्तूरबा नगर की महिलाओं के संघर्ष की लगन और उनके संघर्ष को जारी रखने के तरीके की प्रशंसा की। उन्होंने 17 अगस्त को दिए गए पुनर्वास पर रोक के आदेश को उन महिलाओं को भी समर्पित किया, जो अपने घरों के लिए पहली पंक्ति में सड़कों पर लड़ी थीं।

उन्होंने लोगों को पुनर्वास के बारे में सरकार के झूठे वादों के बारे में आगाह किया। उन्होंने खोरी का उदाहरण दिया जहां विध्वंस के बाद भी लोग अपने टूटे हुए घरों की देहली पर तंबू लगाकर विरोध कर रहें है, लेकिन उन्हें कुछ भी नहीं दिया गया। जिन कुछ लोगों का पुनर्वास किया गया था, उन्हें दिल्ली के दूर बाहरी हिस्सों में भेज दिया गया था, जो उनके कार्यस्थलों और स्कूलों से दूर थे और इसलिए अंत में उन्हें कमरे किराए पर लेने पड़े ताकि वे जीवित रह सकें और उनके सिर पर छत हो।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हमें मजबूती से खड़े होने की जरूरत है क्योंकि सुधा भारद्वाज कहती हैं, “लड़ाई दो तरह की होती है, एक जो कागज पर लड़ी जाती है और एक जो सड़कों पर लड़ी जाती है।” उन्होंने कहा कि उन्हें दोनों लड़ाई लड़ने की जरूरत है और ये ही अपने घरों को बचाने का एकमात्र  तरीका है।*

रिपोर्ट-

एनसीएचआरओ ने  तथ्य खोज रिपोर्ट प्रकाशित की और एनसीएचआरओ के उपाध्यक्ष आशुतोष और शोएब को उनके प्रतिनिधि के रूप में भेजा। लोग रिपोर्ट के लिए आभार प्रकट किया है और यह समझने लगे कि कैसे उनका अपना मुद्दा बड़े मुद्दों से  जुड़ा हुआ है।

कस्तूरबा नगर  के लोग कौन हैं और उनका मुद्दा क्या है –

कॉलोनी के सबसे पुराने निवासियों में से एक, गुरु शरण सिंह जी ने बताया कि यह कालोनी विभाजन के दौरान 1947 मे मुल्तान से भारत आए लोगों की है। इन लोगों को शरणार्थियों के रूप में प्रदर्शित किया गया और उस समय की सरकार के द्वारा यह पुरी जमीन दी गयी और अब  सभी सरकारें इसे अवैध के रूप में प्रदर्शित कर रही है।

ये वही सरकारें हैं जिन्होंने इनसे हाउस टैक्स लिया है,उन्हें घर का नंबर आवंटित किया है और उनका वोट लिया है। यदि उनके घर अवैध हैं तो जिन एजेंसियों ने उन्हें ये सेवाएं आवंटित की हैं, वे भी अवैध हैं और जिन सरकारों ने उनके वोट मांगे हैं वे भी अवैध हैं।

श्याम लाल कॉलेज के पूर्व छात्र और कस्तूरबा नगर निवासी विक्की ने सभी को संबोधित किया और कहा कि दृढ़ता से लड़ो क्योंकि यह उनकी अपनी लडाई है  और उन्हें एकजुट रहने की जरूरत है। ये सरकारें उन पर अत्याचार कर रही हैं और उनका दमन करना चाहती हैं क्योंकि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वे तब तक नहीं रुकेंगे जब तक हमें हमारा घर नहीं मिल जाता और हम एकजुट होकर लड़ेंगे। उन्होंने जय भीम के जोरदार नारे के साथ अपनी बात ख़तम की।

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