नई दिल्ली, साल 2019 में बीजेपी सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को कश्मीर से हटा दिया था। सरकार ने कहा था 370 को हटाने के बाद कश्मीर से आतंकवाद खत्म होगा और युवाओं को रोजगार दिया जाएगा। लेकिन आज कश्मीर के हालत बद से बदतर होते जा रहे है।
आतंकवाद, रोजगार, निवेश, पर्यटन, हिंसा इनमें से कुछ नहीं बदला बल्कि आतंकवादी हमले से आम नागरिक आए दिन मर रहे है। वहीं बात करे 370 से समय नेताओं के नजरबंद की तो आज भी तीन साल हो गए, लेकिन कुछ नेताओं का नजरबंद से नहीं हाटाया। उनमें से एक नेता है वरिष्ठ हुर्रियत नेता मीरवाइज उमर फारूक, जो तीन साल बाद भी अपने श्रीनगर स्थित आवास में नजरबंद हैं।
द वायर की खबर के मुताबिक मीरवाइज के करीबी हुर्रियत के एक अधिकारी ने बताया कि जम्मू कश्मीर के अधिकारियों ने उन आरोपों का विवरण देने से इनकार कर दिया है, जिनके तहत उन्हें श्रीनगर में उनके निगीन स्थित आवास तक सीमित कर दिया गया है, जहां पहुंचना प्रतिबंधित है और जिसकी निगरानी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा की जाती है।
मीरवाइज को कश्मीर विवाद का शांतिपूर्ण तरीके से समाधान खोजने के लिए दंडित किया जा रहा है। अगर उनके खिलाफ कोई आरोप हैं तो उन्हें उनके बारे में जानने का संवैधानिक अधिकार है ताकि वे सभी न्यायिक उपायों का लाभ ले सकें।
अनुच्छेद 370 हटाए जाने से एक दिन पहले 4 अगस्त 2019 को एक पुलिस वैन निगीन इलाके में मीरवाइज के आवास पहुंची थी। हुर्रियत के अधिकारी ने कहा, ‘वैन लगातार मीरवाइज के आवास के बाहर तैनात है। उनके बुनियादी मानवाधिकार छीन लिए गए हैं, जिसने उनके धार्मिक दायित्वों में बाधा डाल दी है। यह उनके और कश्मीर के मुसलमानों के लिए बेहद दुख की बात है।
मीरवाइज की मां, पत्नी और दो बच्चों समेत उनकी गतिविधियां उनके आवास तक ही सीमित कर दी गई हैं। उन्हें भारी सुरक्षा घेरे में बाहर निकलने की अनुमति है, जिसके तहत अस्पताल के कुछ दौरों के साथ-साथ कोविड-19 टीकाकरण और परिवार में हुई एक मौत के वक्त उनका बाहर निकलना हुआ था। केवल कुछ चुनिंदा आगुंतकों, जिनमें करीबी रिश्तेदार शामिल हैं, को ही उनसे मिलने की अनुमति है।
मीरवाइज का पासपोर्ट सालों से जब्त है। सूत्रों ने बताया कि उनके दो बच्चे पिछले दो सालों से अपने पासपोर्ट के नवीनीकरण का इंतजार कर रहे हैं। हुर्रियत के एक प्रवक्ता ने अपने बयान में कहा कि मीरवाइज की गिरफ्तारी ‘मनमानी, निरंकुश और अधिकारियों की न्याय से इतर कार्रवाई’ है और ‘उनके सभी मौलिक और बुनियादी मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन’ है।
खबर के मुताबिक हुर्रियत कॉन्फ्रेंस द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, मीरवाइज ने साल 2016 से अब तक 1,521 दिन हिरासत में बिताए हैं, जिसकी शुरुआत हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के बाद हुए प्रदर्शनों के दौरान हुई थी, तब उन्हें करीब दो महीने श्रीनगर की चेशम शाही उप-जेल में रखा गया था।
जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ बातचीत ‘मानवता के दायरे में’ होगी, तब मीरवाइज हुर्रियत के उन चंद नेताओं में से एक थे जिन्हें नई दिल्ली द्वारा बातचीत में शामिल किया गया था।
हुर्रियत कांफ्रेंस के भीतर मीरवाइज द्वारा बातचीत के समर्थन का कड़ा विरोध हुआ था, जिसके बाद उन्होंने भारी व्यक्तिगत नुकसान भी झेले, जिनमें जून 2014 में उनके चाचा मौलवी मुश्ताक की हत्या और उसी दिन उनके घर पर ग्रेनेड का हमला होना शामिल हैं।
हुर्रियत के अधिकारी ने कहा, ‘सही और गलत तय करना विवाद को बढ़ाता है, हमारा दृष्टिकोण इससे इतर रहा है। हम विवाद से जुड़े तीनों पक्षों (भारत, पाकिस्तान और जम्मू कश्मीर के लोग) की चिंताओं और हितों को समझकर समाधान देखते हैं और सभी की संतुष्टि के लिए बातचीत व विचार-विमर्श के माध्यम से समाधान खोजने का प्रयास कर रहे हैं। यह मुश्किल है, लेकिन सबसे अच्छा शांतिपूर्ण विकल्प यही उपलब्ध है।
बता दें कि हुर्रियत और मुख्य दलों के कई अन्य नेताओं के साथ-साथ मीरवाइज की गतिविधियों पर 4 अगस्त 2019 को पाबंदियां लगाई गई थीं। इनमें राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला शामिल थे, जिन्हें अब आजाद कर दिया गया है. बाकी दूसरे लोग जम्मू कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों की जेलों में हैं। मीरवाइज एकमात्र नेता हैं जो घर में नजरबंद हैं।