नई दिल्ली: मुस्लिम समुदाय के खिलाफ दिए जा रहे नफरत भरे भाषणों को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद मांग करते हुए कहा कि नफरते भरे भाषणों पर कार्रवाई की जाए और राज्य शिकायतों के बावजूद कार्रवाई करने में विफल रहे हैं।
इस याचिका को जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा अपने अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद असद मदनी के जरिए दायर किया गया है। याचिका में कहा गया है, ‘इस तरह के भाषण दूसरे के धर्म को लेकर की जाने वाली आलोचना की सीमा से परे जाते हैं और निश्चित रूप से इसकी वजह से असहिष्णुता के भड़कने की संभावना है.। याचिका में कहा गया है कि ‘पैगंबर मोहम्मद का अपमान करना इस्लाम की नींव पर हमला करने के समान है।
याचिका में कहा गया है, ‘कई हिंसा वाले मामले सामने आए हैं, जिसमें कई कीमती जानों को खोना पड़ा है। इसमें से ज्यादातर समाज के कमजोर वर्ग के लोग है, जिसमें से अधिकांश संख्या मुस्लिमों की है।’
जमीयत उलेमा-ए-हिंद का इशारा मॉब लिंचिंग और दंगों की तरफ था वकील एम आर शमशाद द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि संगठन ने काफी समय तक इंतजार करने और राज्य के अधिकारियों को इन भाषणों पर कार्रवाई के साथ-साथ निवारक उपायों के लिए उचित कदम उठाने के लिए समय देने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिका में कहा गया, ‘हालांकि, ऐसा लगता है कि राज्य सरकार इस मामले में पूरी तरह विफल रही है।’ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में हाल के घटनाओं से लेकर पहले ही घटनाओं तक का जिक्र किया गया है, जब मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा भड़काने वाले भाषणों को दिया गया।
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