नई दिल्ली :(फरहीन सैफी) मिल्लत टाइम्स के द्वारा 21 नवंबर को नेशनल वेबिनार में शाहीन बाग और किसान आंदोलन की बात की गई जिसमे इस मसले पर बात की गई कि किस तरह शाहीन बाग और किसान आंदोलन ने इस तानाशाही सरकार को हिला कर रख दिया।
इस मसले पर बात करने के लिए कुछ खास महमान मौजूद रहे जिसमे सफोरा जरगर, क्वलप्रीत कौर, अमृत राज़, अभय कुमार, फैज़ुल हसन, सैफुल इस्लाम, हनीफ अहरार और आराधना भारगावा शामिल है।
इस मुद्दे पर सबने अपनी अलग अलग राय रखी जिसमे सबसे पहले सफोरा जरगर ने बताया कि-
सरकार ने जो अभी तीनो कृषि बिल वापस किए वो लोगो की जीत है सरकार को लोगो और इस देश के किसानों के सामने झुकना पड़ा मगर अफसोस कि बात ये है कि इस आंदोलन में 700 लोगो की जान चली गई।
इस वेबिनार को आगे बढ़ाते हुए क्वलप्रीत कौर ने अपनी बात रखते हुए कहा कि-
शाहीन बाग की औरतो ने पूरे देश मे प्रोटेस्ट का एक मॉडल सेट किया है उन लोगो ने पूरे देश को रास्ता दिखाया और जितने भी किसानों की इस आनदोलन में मौत हुई उसकी ज़िम्मेदार सरकार है।
यहा पर हर चीज़ को किसी न किसी तरह से एन्टी मुस्लिम दिखाने की कोशिश की जाती है। लोगो मे इतनी पावर है कि वो सरकार झुका सकते है और इसी तरह नरेन्द्र मोदी की सरकार को भी झुकना पड़ा।
आगे अपनी बात रखते हुए अमृत राज़ ने कहा कि-
शाहीन बाग आंदोलन और किसान आंदोलन एक ही मॉडल पर शुरू हुआ था इतिहास गवाह है कि फासिस्ट सरकार हमेशा जन आंदोलन से डरती है किसान और शाहीन बाग आंदोलन सिर्फ बिल वापस करने के लिए नही था यह आंदोलन डेमोक्रेसी को बचाने के लिए था यह दोनों आंदोलन देश को बचाने के लिए थे।
इस वेबिनार को और आगे बढ़ते हुए अभय कुमार कहते है कि-
2014 के बाद से यह एक ऐसी सरकार है जो पीछे हटने को तैयार नही है पहले भी सरकारे थी ऐसी लेकिन वो फिर भी स्टूडेंट्स की मांग मान लिया करती थी ये सरकार जिसको घमंड था, सत्ता के नशे में चूर थी उन्होंने जामिया में लाठी चार्ज करवाया, अलीगढ़ में करवाया या लोगो को जबरदस्ती जेलो में डलवाया इन आंदोलनों की वजह से उनकी गाड़ी थोड़ी रुक गयी है
आगे फैज़ुल हसन कहते है कि-
मुसलमानो को हमेशा से मुसीबतो का सामना करना पड़ा है अगर गलती से किसी घटना में मुसलमान का नाम आ जाता है जो उसके चक्कर मे पूरे मुल्क के मुसलमानों को टारगेट किया जाता है बार बार हमें पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और अफगानिस्तान बोल बोल कर हमारे मोरल को गिराया जाता है।
हनीफ अहरार कहते है कि-
इस सरकार में लोगों की अहमियत नही है जब नोटबन्दी कि गयी तो उसमें 150 से ज्यादा लोग मारे गए। और सरकार ने लोगो के दबाव में आकर कानून वापस करने के लिए बोला है, मगर किया नही है बीजेपी और आरएसएस के लोग कब मुकर जाएंगे कुछ पता नही है।
इस जुमले बाज़ सरकार के ऊपर भरोसा नही किया जा सकता। बीजेपी के लिए असल मुद्दा लोग नही है उन्हें बस सत्ता में आना है इसलिए यह बिल वापस करने के लिए बोल रहे है। बीजेपी हमेशा से लोगो को बांटने का काम करती रही है। सब लोगो को साथ मे मिलकर इस सरकार का विरोध करना चाहिए।
इस वेबिनार के आखिर में ऐडवोकेट आराधना भारगावा अपनी बात रखते हुए कहती है कि-
यह कानून सरकार इसलिए नही समझ पाई क्योंकि यह कानून इन्होंने बनाए ही नही थे ये तो कंपनियों ने बनाए थे जिनके इशारो पर ये सरकार चल रही है इसलिए कृषि कानून प्रधानमंत्री को भी समझ नही आए और न ही ग्रहमंत्री को। किसान आंदोलन सिर्फ कुछ राज्यो या लोगो का नही पूरे देश का आंदोलन है।
कोरोना महामारी में अगर किसान नही होता तो देश की क्या हालत होती ..ये आंदोलन करके किसानों ने बता दिया कि ये कृषि प्रधान देश है जनता के कहने पर ये देश चलेगा। प्रधानमंत्री इस बात को समझ गए है और घबराकर उन्होंने ये कानून वापस लिए है।
सरकार को ये बात समझ लेनी चाहिए कि जुमलेबाज़ी से काम नही चलता। ये आंदोलन इसलिए भी कामयाब हुआ क्योंकि किसानों के मन मे किसी प्रकार का डर नही था।