कंगना रनौत ने भारत की आज़ादी को बताया भीख..

मासूमा सिद्दीक़ी

यूँ तो बिन मांगे मिल जाते हैं तख्तो ताज
कभी कभी भीख में मांगो तो मोहब्बत नही मिलती
या कंगना रनौत की ज़बान में यूं कह सकते हैं,,
जो 1947 में आज़ादी मिली वो भीख थी
अब 2014 जैसी आज़ादी नही मिल सकती।।

देश के संविधान में हमारी सुरक्षा इक्छा और सुविधा के लिए सबकुछ लिख दिया गया है जो हमारे लोकतंत्र का सच्चा और साफ़ आईना है। उसी संविधान में वाक और अभिव्यक्ति की भी पूर्ण स्वतंत्रता और निर्बंबन्ध की भी बात कही गई है। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आख़िर कैसी? क्या कुछ भी बोले जाना हमारी अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है नही। देश का सर्वोच्च पदमश्री पुरस्कार दिए जाने के बाद भारत को 1947 में मिली आजादी को अभिनेत्री कंगना रनौत ने भीख में मिली आज़ादी बताया है जिसके बाद उनकी इस टिप्पणी को लेकर चौतरफा आलोचना भी हो रही है। गौरतलब है कि राजनीति या अन्य विषयों पर अपने बयानों से आए दिन चर्चा में रहने वाली रनौत ने यह कहकर विवाद उत्पन्न कर दिया था कि भारत को ‘वास्तविक आजादी’ 2014 में मिली थी या वो साफ़ तौर पर ये भी कह सकती थीं कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद उनको ये आज़ादी मिली। दरअसल कंगना जो कहना चाह रही हैं वो खुलके कह नही पाई एक दिन वो फ़िर किसी मंच पे आएंगी और बता देंगी कि घृणा, असहिष्णुता, दिखावटी देशभक्ति और दमन को भारत में 2014 में आजादी मिली।’’ जिस आज़ादी का ज़िक्र ये कर रही हैं और जो आज़ादी इनके माँ बाप को मिली उसमें फ़र्क सिर्फ इतना है कि एक लाइन में इन्होंने 1947 में लड़े देशभक्तों के सम्मान और आत्मबलिदान को बेइज़्ज़त करके रख दिया और 2014 की आज़ादी के बाद कुछ भी अनाप शनाप बोलने पर पदमश्री हासिल कर लिया। देखिये ज़रा ‘‘भगत सिंह, आजाद और गांधी की आजादी इन्हें भीख लगती है और जो सत्ता इनको देश के ख़िलाफ़ बात करने पर भी सेक्युरिटी प्रदान करें उसकी गुलामी को ये असल आजादी बताती हैं। इनकी इसी महान सोच के लिए ही राष्ट्र पुरस्कार भी दे दिया जाता है?’’
महिला कांग्रेस की ओर से राजस्थान के चार शहरों जोधपुर, जयपुर, उदयपुर और चूरू में फिल्म इस अभिनेत्री के खिलाफ भारत की स्वतंत्रता को कथित रूप से “भीख” बताने के मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। जोधपुर महिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष मनीषा पंवार ने शिकायत में कहा कि कंगना रनौत ने अपने बयान के माध्यम से स्वतंत्रता सेनानियों और देश के लोगों का अपमान किया, जो “देशद्रोह की श्रेणी” के अंतर्गत आता है। शिकायत दर्ज कराने वालों को ही क्या केवल इस बयान से आपत्ति है ‘‘स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान है।’’ उन लोगों को नही समझ आता जिनकी शय पे कंगना इतनी बड़ी बात बोल गईं हैं। मेरे खयाल से सुन के अनसुना करने का हुनर भी 2014 की आज़ादी के बाद से मिला।
समझने वाली बात ये भी है कि इनके ज़रिये भीख में मिली आज़ादी की बात कोई पहली दफ़ा नही कही गई इसको तो उस दिन भी प्रदर्शित किया गया था जब गांधी जी का पुतला बना कर गोली मारने वाला वीडियो वायरल हुआ था। आप देख सकते हैं पहले से व्हात्सप्प, फेसबुक, ट्विटर जैसे प्लेटफार्म का सहारा लेकर बड़ी ही निडरता से 1947 की आज़ादी की पवित्रता को नकारा जा रहा है। इन्ही पालतफर्मो पर 2014 की आज़ादी के बाद ही गांधी की हत्या का जशन मनाया जाता है और नाथूराम गोडसे को सदी का महानायक। इस तरह से कड़ी मेहनत करके करोड़ों लोगों को तैयार कर दिया जाता है कि वो 1947 की आज़ादी को खुले मंच पे आकर भीख कह सके। ये बातें पहले से ही अंदर ही अंदर पहुंचाई जा चुकी हैं कंगना रनौत ने इसको बस मंच पर आकर बोल दिया है। इस तरह की बातें पहले भी कई बार सुनने को मिली लेकिन कोई इसको चर्चा का विषय नही समझता, बोहत कोशिश करके कुछ लोग ट्विटर पे लिख भी देते हैं अगर तो या तो उनपर UAPA लगा दिया जाता है या फीर वो अकॉउंट ही ससपेंड कर दिया जाता है। सिर्फ़ धर्म विशेष को महत्व देते हुए इस 2014 की आज़ादी को लोगों के दिल दिमाग़ में बैठाया जा रहा है। यही वजह है कि लोग महंगाई में दब के मर जाना पसंद कर लेंगे लेकिन अपनी 2014 वाली आज़ादी को नही जाने देंगे। अंदभक्तों ने पहले ही कह दिया और लोग भी बोहत जल्द कहते नाज़र आएंगे कि धार्मिक आज़ादी भी उन्हें 2014 के बाद मिली इसलिए वो जहां पा रहे हैं वहां दूसरे धर्म के लोगों को मार रहे हैं।
आज से नही बहोत पहले से कंगना बोलने में अपना महिरपन दिखती आई हैं जिसकी यही वजह रही है कि देश के किसानों को आतंकवादी कहने के बाद भी इनको ससम्मान राष्ट्र पुरस्कार पदमश्री दे दिया जाता है। जिस दिल्ली में कंगना ने ये अपमानजनक बात बोली उसी दिल्ली में इनको राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया और ये दिल्ली जिसने इनको सम्मानित किया वो भी भीख में मिली आज़ादी के बाद वजूद में आई, ये वही दिल्ली है जिसने हज़ारों स्वतंत्रता सेनानियों को देश के लिए लड़ते देखा उनका समर्पण देखा और 2014 के बाद पैदा हुए भक्तों को आज़ादी भीख में दे डाला। साफ़ तौर पे संविधान के अनुछेद 51 A में लिख दिया गया है कि “स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्रदय में संजोए रखें और उनका पालन करें” ये बात संविधान में नागरिकों से मौलिक कर्तव्यों के रूप में मनाने को कही गई है जिस संविधान की किताब को शायद 2014 की आज़ादी के बाद खोला ही नही गया।
इससे पहले भी रनौत ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद कहा था कि उन्हें मुंबई में असुरक्षित महसूस होता है जिसके बाद उन्हें केंद्र सरकार ने वाई-प्लस श्रेणी की सुरक्षा दी थी। उन्होंने फिल्म उद्योग के एक वर्ग में मादक पदार्थ के इस्तेमाल पर भी बात की थी।
अभिनेत्री का ट्विटर अकाउंट स्थायी रूप से निलंबित करते हुए माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ने कहा था कि ‘‘ट्विटर नियमों के लगातार उल्लंघन के लिए’’ ऐसा किया गया।
महात्मा गांधी के पड़पौत्र तुषार गांधी ने शुकव्रार को अभिनेत्री को नफरत का एक एजेंट बताया। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘पद्मश्री कंगना रनौत नफरत, असहिष्णुता और अनर्गल उत्साह की एजेंट है। यह हैरानी की बात नहीं है कि उन्हें लगता है कि भारत को आजादी 2014 में मिली। उन्होंने कहा, ‘‘यह हैरानी की बात नहीं है कि ऐसे बयान उस कार्यक्रम में दिए गए, जिसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हुए। आखिरकार आज पीएमओ नफरत का झरना बन गया है जो प्रचुर मात्रा में हमारे देश में बहता है।’’
दिल्ली भाजपा नेता प्रवीण शंकर कपूर ने रनौत की निंदा की और उनके खिलाफ न्यायिक कार्रवाई की मांग की। उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘एक स्वतंत्रता सेनानी का पुत्र होने एवं स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से आने का कारण कंगना रनौत द्वारा भारत की आजादी को भीख मे मिली आजादी कहना, मुझे स्वतंत्रता का सबसे बड़ा दुरुपयोग एवं स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग का अपमान लगता है।’’ हालांकि, उन्होंने शुक्रवार को ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा कि उन्होंने निजी हैसियत से यह ट्वीट किया है।
महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक ने कहा कि रनौत को प्रदान किया गया पद्मश्री पुरस्कार स्वतंत्रता पर उनकी विवादास्पद टिप्पणी के लिए वापस ले लिया जाए और स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान करने के लिए अभिनेत्री के खिलाफ मामला दर्ज किया जाना चाहिए।
हिंदुस्तान की तस्वीर ऐसी हो गई है कि एक तरफ़ गांधी की तस्वीर लगाई जाती है तो दूसरी तरफ़ गोडसे को नायक देशभक्त बनाया जाता है,, जहां सरदार पटेल को पुष्प अर्पित किए जाते हैं वहीं दूसरी ओर गांधी के पुतले पर गोली मारी जाती है…75 साल पहले मिली आज़ादी को भीख बताया जा रहा है 2014 के बाद फैली हिंसा और घृणा को सही बताया जा रहा है। ये क्या क्या हो रहा है ?कियूं हो रहा है? आज़ादी के 75 साल होने पर अमृत महोत्सव मनाने वाली सरकार कंगना रणौत जैसे लोगों को विष घोलने जैसी आज़ादी भी प्रदान करती है …. ये कोई बड़ी बात नही।।

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