नई दिल्ली, नसीरुद्दीन शाह साहब को इस बात का अंदाजा नही है कि 21वीं सदी के भारतीय मुसलमान किस पर विशवास करते हैं। एक मेगास्टार होने के नाते नसीरुद्दीन साहब ने जनता और विशेष रुप से कहे गरीब जनता के साथ अपना संपर्क खो दिया है। ज्यादा से ज्यादा वह शुद्ध उर्दु बोलने वाले, अंग्रेजी माइंडसेट जेट्री के साथ व्यवहार करते है, जो गालिब और शेक्सपियर के उद्धरण टोपी पर बूंद की तरह है।
मैं शाह साहब को बता दूं भारत का मुस्लमान तालिबान का सर्मथन नहीं कर रहा है। ऐसा करना और भी नमूमकिन है क्योंकि दिन ब- दिन वह हिंदू तालिबान से पीड़ित हैं। दरअसल नसीरुद्दीन साहब की परेशानी यह है की उनकी उन भारतीय मुस्लमानों तक कोई पहुंच नहीं है, जो अपनी कमाई का बढ़ा हिस्सा अपनी बेटियों और बेटों कि पढ़ाई पर खर्च रहे हैं।
मिस्टर शाह की सोच विशेष रूप से टोडी-मीडिया में होने वाली कट्टरता पर गठित होती है, जिसे राष्ट्रीय चैनल कहा जाता है, और इस मीडिया का एक एजेंडा है जो मुस्लमानों के खिलाफ गलत बयानबाजी करता है और अनपढ़ मुसलमानों को पालने और सौदेबाजी के व्यवसाय कर रहा है। जिसका मकसद एक राजनीतक दल से जुड़ा होता है।
नसीरुद्दीन शाह को भारत के प्रमुख मुस्लिम मानसिकता को जानने की जरूरत है जो उदारवादी व्याख्याओं और भारत के संविधान के अनुसार चलते है। साथ ही जो AIMPLB तरह के संगठनों के खिलाफ लड़ रहे हैं और उन्हें हरा रहे हैं और अपने कुरान और संवैधानिक अधिकारों का जश्न मना रहे हैं। इस 58 सेकंड, पोर्ट्रेट स्टाइल, मेड-फॉर-इंस्टाग्राम वीडियो के साथ, शाह ने अपनी बोरियत को दूर करने की कोशिश की है, जो शायद लॉकडाउन के कारण हुई होगी या यह भूलकर कि वह इस्लामोफोब को एक हैंडल प्रदान कर रहे हैं जो इस तरह के फैंसी उदारवादी प्रकोपों का शिकार करते हैं।