जनसंख्या नियंत्रण क़ानून के लिए: शिक्षा और जागरूकता ज़्यादा कारगर

(मासूमा सिद्दिक़ी)

उत्तर प्रदेश की सरकार नई जनसंख्या नीति लाने की तैयारी में है। नए जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है। लेकिन हिंदुस्तान में एक बात बड़ी अच्छी है वो ये कि कभी कभी सरकार निजी जीवन में कोई नया दायरा नया कानून बनाने से पहले आम लोगों को सोचने का मौका दे देती है। 11 जुलाई को उत्तर प्रदेश सरकार ने अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या दिवस के मौके पर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण क़ानून लागू करने का ऐलान करके इस मुद्दे पर बहस को एक नया आयाम दे दिया है। कहीं न कहीं ये मुददा 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव से भी प्रभावित हहै। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है, ये बात सभी लोग जानते हैं। इसलिए यहाँ शुरू हुई इस देशव्यापी बहस को लोगों में बांट दिया गया है और साथ ही इस बिल पर राज्य सरकार ने आम लोगों को 19 जुलाई तक अच्छी तरह सोचने समझने का मौका भी दे दिया है। ताकि लोगों में लोकतंत्र का एहसास बना रहना चाहिए और सरकार पर कोई इल्ज़ाम भी नही आना चाहिए। जहां शिक्षा, बेरोजगारी, महंगाई, नौकरी जैसी बातें बिल्कुल अनियंत्रित हो रखी है, वहां अचानक से जनसंख्या नियंत्रण कानून कूद पड़ा है। एक बात समझ कभी नही आती कि हर साल अंतराष्ट्रीय जनसंख्या दिवस के मौके पर मंच से जनसंख्या नियंत्रण के उपदेश दिए जाते रहे हैं लेकिन क्या शिक्षा जैसी अहम बात को दरकिनार करते हुए मंच से कुछ भी बोल के चले आना सही है, शायद नही। लेकिन अब होता क्या है, कि मुख्यमंत्री होने के नाते कुछ न कुछ काम करके तो दिखाना है न। इसलिए बड़ा अनाउंसमेंट भी होते रहना चाहिए। भविष्य में जब किसी नीति का पता न हो तो चीजें आसानी से नियंत्रित नही हो सकती। मुझे तो ऐसा लगता है कि पेट्रोल, डीज़ल, सरसों के तेल का भी कोई दिवस आना चाहिए ताकि उसपर हुकूमत से बात की जा सके। नियंत्रण तो बहुत सारी बातों पर लगाना था, और सोचने का आम लोगों को मौका भी देना चाहिए था लेकिन शायद मुख्यमंत्री जी सोच ही नही पाए कि और भी बातों पर उनको सोचना चाहिए था। जनसंख्या नियंत्रण क़ानून किसी शहर का नाम बदल देने जैसा, या फिर स्मार्ट सिटी के होर्डिंग लटका देने जैसा हरगिज़ नही है इसलिये ऐसा कोई भी कानून लाने से पहले शिक्षा पर कानून आने चाहिए थे, लेकिन ऐसा कुछ नही दिख रहा। जिस तरह के लोग इस भारत देश में रहते हैं, वहां एक कमज़ोर शिक्षित वर्ग को तो बिल्कुल ये नही समझाया जा सकता कि जनसंख्या नियंत्रण कानून आख़िर है क्या?

अब इस जनसंख्या कानून में बहुत सारी बातें कही गईं हैं, जिनपर सोचने का अच्छा ख़ासा मौका भी दिया गया है। आपको सबसे पहले बता दें कि उत्तर प्रदेश के राज्य विधि आयोग ने सिफ़ारिश की है कि एक बच्चे की नीति अपनाने वाले माता-पिता को कई तरह की सहूलियत दी जाएगी, वहीं, दो से अधिक बच्चों के माता-पिता को सरकारी नौकरी के अधिकार से वंचित किया जाएगा। साथ ही, उन पर स्थानीय निकाय, ज़िला पंचायत और ग्राम पंचायत के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाई जाएगी। ये बात सुनते ही सबसे पहले बीजेपी के वो विधायक समर्थन में बात करते नज़र आये जिनके ख़ुद के पहले से दो से कहीं ज़्यादा बच्चे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी के 50 फीसदी विधायक ऐसे हैं जिनके तीन या तीन से ज़्यादा बच्चे हैं। क्या इसी वजह से प्रस्तावित क़ानून में विधानसभा चुनाव पर रोक लगाई जा रही है, या मामला कुछ और है। खैर,
इसके अलावा, आगे ये कहा गया कि तीसरा बच्चा होने पर परिवार को सरकार से मिलने वाली सब्सिडी बंद किए जाने और सरकारी नौकरी कर रहे लोगों को प्रोन्नति से वंचित करने का प्रस्ताव है। तसल्ली के तौर पर ये भी कहा गया कि ये सभी प्रस्ताव जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करके नागरिकों को बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण से संबंधित पाठ्यक्रम स्कूलों में पढ़ाए जाने का सुझाव भी दिया है। अब ज़रा कोई ये पूछे कि जनसंख्या नियंत्रण संबंधी पाठ्यक्रम पढ़ने के लिए किस स्कूल में बच्चे दाख़िला लेंगे। प्राइवेट स्कूल के तो गेट पे भी आम परिवार का बच्चा खड़ा नही हो सकता कियूं कि उन स्कूलों की वो फ़ीस ही नही दे सकता और सरकारी स्कूल की शिक्षा तो खैर नज़र आती है, ज़्यादा कुछ मुझे कहने की ज़रूरत नही है। आज के वक़्त में देश का हर आम नागरिक पहले से इतना ज्यादा परेशान है शिक्षा, महंगाई, भुखमरी, नौकरी के लिए कि जनसंख्या नियंत्रण के अंतर्गत बनाय जा रहे कानूनों से वो डरे ज़रूरी नही, जब पहले ही वो सबकुछ झेल रहा है। साथ ही हर नागरिक ये भी जनता है कि देश में किसी भी ऐसी स्कीम या कानून के नाम पर राहत पैकेज मिलते मिलते इतनी देर हो जाती है, कि उसका अंततः कोई फायदा नही रह जाता।

दो बच्चों की बात करते करते प्रस्तावित कानून एक बच्चे की नीति अपनाने वालों को कई तरह की राहत देना चाहता है। अब समझिए इसके तहत जो माता-पिता पहला बच्चा पैदा होने के बाद नसबंदी या आपरेशन करा लेंगे, उन्हें कई तरह की सुविधाएं दी जाएंगी। पहला बच्चा लड़का होने पर 80 हजार रुपये और लड़की होने पर एक लाख रुपये की विशेष प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। वो लोग क्या करेंगे जिनके पहले से दो बच्चे हैं तीसरा बिल्कुल आने की तैयारी में है। या जो बच्चे अभी के मौजूदा हालात में पल रहे हैं बढ़ रहे हैं उनपर क्या विशेष ध्यान दिया जाय ये कौन तय करेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी इस जनसंख्या नियंत्रण कानून को अपने अध्ययन के मुताबिक़ इसलिए पास करना चाहते हैं कियूं कि यह प्रस्तावित कानून देश के 9 राज्यों में पहले से ही लागू है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में ऐसा क़ानून पहले से मौजूद है। इसी तरह के कानूनों से प्रेरित होकर उत्तर प्रदेश में भी इसे लागू करने का मसौदा तैयार कर लिया गया है। 2 साल पहले असम ने भी क़ानून बनाया था, लेकिन इसे 2021 से लागू करने का ऐलान किया था। अब असम भी पूरी तैयारी में है कि इस कानून को लागू कर दिया जाय। इसके अलावा, पंजाब ने 2018 में ऐसा ही क़ानून बनाने की घोषणा किया था। लेकिन उस पर कोई प्रगति नहीं हो पाई। अलबत्ता हरियाणा में कानून ज़रूर बना था, लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। मामला अभी विचाराधीन है। जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाये जाने से पहले अन्य राज्यों में लागू इस कानून की समीक्षा भी ज़रूरी है, ये जानना ज़रूरी है कि आख़िर कितने कारगर हैं ये कानून। राजस्थान में साल 2000 से लागू जनसंख्या नियंत्रण कानून के अंतर्गत जनसंख्या वृद्धि की दर को देखते हुए लगता नहीं कि उसे कोई ज्यादा फायदा हुआ है। साल 2018 में राज्य के कई सरकारी कर्मचारियों के विरोध पर इस कानून को थोड़ा लचीला बनाने की ज़रूरत आ पड़ी। मध्यप्रदेश राज्य में भी यही हुआ कि वहां भी लोगों के एतराज को देखते हुए कानून के कई प्रावधानों को बदला गया। अंतराष्ट्रीय स्तर पर बात करें तो 1 बच्चे की नीति चीन ने 35 साल अपनाई और बाद में ऐसी परेशानियां और नुकसान उठाया कि आज के वक़्त में फ़िर से वहां तीन बच्चों तक की नीति अपना ली गई है। चीन के अलावा बात करें तो ईरान, सिंगापुर, वियतनाम, ब्रिटेन, और हांगकांग सहित कई अन्य देशों ने भी दो बच्चों की नीति को लागू किया था लेकिन बाद में, उन्हें इस नीति को सिर्फ इसलिए बदलना पड़ा। क्योंकि, उन्हें इससे उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिली और सामाजिक समस्याएं अलग से खड़ी हो गईं।

अब उत्तर प्रदेश की जहां तक बात है मुख्यमंत्री योगी जी इसे विधानसभा चुनाव से पहले लागू करने के इरादे से काम करते नज़र आ रहे हैं। हालांकि योगी सरकार इस कानून को हाल ही में हुए जिला पंचायत और ग्राम पंचायत के चुनाव से पहले लागू करना चाहती थी, लेकिन किसी वजह से टाल दिया था। उन्होंने अभी इतना ही करम किया कि लोगों को नौ दिन सोचने का मौका दे दिया है। खैर चुनाव, शासन, सत्ता की बात जब आ ही गई है तो सरकार को ये भी कह देना चाहिए कि क़ानून लागू होने के बाद जसके दो से ज़्यादा बच्चे हुए वो विधानसभा चुनाव भी नही लड़ेगा, तब देखिय क्या तस्वीर नज़र आती है। चुनाव और सत्ता की लालच देकर क्या जताया जा रहा है, जो लोग चुनाव के नाम पर हिंसा करते हैं, जो भीड़ ज़रा ज़रा सी बात में अनियंत्रित हो जाती है उसको नज़र अंदाज़ करके जनसंख्या नियंत्रण क़ानून बनाना कहाँ तक सही है। ज़रूरत है अगर तो पहले मौजूदा जनसंख्या को नियंत्रित किया जाय। लेकिन होता ये है कि जो समस्या आंखों के सामने होती है उसे बड़ी खूबसूरती से नज़रंदाज़ करके आने वाले भविष्य की बड़ी प्लांनिग बनाई जाती है ताकि वर्तमान में लोगों को मूर्ख बनाया जा सके। फ़िर भी सोचिए ज़रा अपनी हुक़ूमत के ज़ोर पे क्या किसी को डरा धमका के कोई क़ानून पास किया जाना सही होता है। वो किसी के हक़ में कहां तक बेहतर होता है उसका अंदाज़ा एक दिन में तो नही लगाया जा सकता। जिस समाज मे हमसब रहते हैं वहां हर वर्ग के लोग हैं। उनकी सोच को अचानक से बदलना कहाँ तक मुमकिन है, शायद मुश्किल है। भूलना नही चाहिए कि हिंदुस्तान में एक प्रथा ये भी है कि कभी कभी लड़के की चाह में बच्चे दो से चार हो जाते हैं। आने वाले समय मे एक बच्च, दो बच्चे पे लालची स्कीम बताना या उनको दो से तीन बच्चे होने पर धमकाना कोई नियंत्रण के अंतर्गत नही आता। मेरे हिसाब से समाज में जब भी किसी नई सोच का जन्म होता है तो उसको रास्ता दिखाने के लिए शिक्षा का रास्ता अपनाना सबसे आसान होता है। शिक्षा ही वो मार्ग होता है जिसपर चलकर सबकुछ सही तरह से समझा जा सकता है। लोगों में जब शिक्षा और जागरूकता पैदा होगी तब वे किसी कानून को किसी नीति को समझने के क़ाबिल होंगे। वैसे भी आज के दौर में ज़्यादा तर परिवारों में मैंने खुद देखा है कि लोग दो बच्चों से आगे सोचने का ख़याल भी नही लाते। अब जब लोग संभल कर खुद कानून बनने से पहले क़ानून का पालन कर रहे हैं तो उनपर किसी भी तरह की सख्ती करना जुर्म जैसा है। ये क्या बात हुई कि दो से ज़्यादा बच्चों पर माता पिता सज़ा काटेंगे या फिर उनको जीवन यापन की कोई सुविधा नही दी जाएगी। ये नैतिक रूप से कहाँ तक ठीक है सोचने वाली बात है। ये सब करने की जगह अगर लोगों में जनसंख्या नियंत्रण क़ानून के तहत जागरूकता का काम किया जाय तो वो बेहतर समझ सकेंगे कि बढ़ती जनसंख्या के नुक़सान क्या हैं? संसाधनों की कमी क्या है? इस तरह उनको शिक्षा के प्रति जागरूक करके ही प्रेरित किया जा सकता है। अंततः ये कहना है कि जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए कानून से कुछ वक़्त के लिए फ़ायदा हो सकता है। लेकिन इसके लिए क़ानून से ज्यादा लोगों में जागरूकता और शिक्षा को जगाने की जरूरत है। जब लोग अच्छे स्तर पर शिक्षित होंगे तभी कामियाब होंगे।
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