(मासूमा तलत सिद्दीक़ी)…【पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के नतीजों के आने के बाद हुई हिंसा को सभी लोग जानते हैं। जिसमें 17 लोगों की मौत हो गई थी और बेशुमार लोग ज़ुल्म का शिकार हुए थे। हिंसा में उपद्रवियों ने दर्जनों मकान और राजनीतिक दलों के दफ्तर भी जला दिए थे। मरने वालों में से नौ बीजेपी, सात टीएमसी और एक व्यक्ति संयुक्त मोर्चा का था। हिंसा तो थम गई लेकिन इस पर राजनीति थमने का नाम नही ले रही। केंद्र राज्य का टकराव आज भी कहीं न कहीं इस मुददे पर गरमाया रहता है】
भाजपा ने सोमवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा पश्चिम बंगाल सरकार की एक अर्जी खारिज किए जाने की सराहना की। उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनाव के बाद हिंसा की घटनाओं में मानव अधिकारों के उल्लंघन की जांच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सौंपने संबंधी आदेश सोमवार को वापस लेने से इंकार करते हुये इस बारे में राज्य सरकार का आवेदन खारिज कर दिया। अदालत ने मानवाधिकार आयोग को एक समिति गठित कर राज्य में चुनाव के बाद हिंसा के दौरान कथित मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं की जांच करने का आदेश दिया था। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस दावे के लिए उनकी आलोचना की कि उनकी सरकार के तहत हिंसा का भाजपा पर आरोप को ‘‘नौटंकी” बताया। एक महिला से उसके पोते के सामने कथित बलात्कार और भगवा पार्टी के कार्यकर्ताओं की हत्या की घटनाओं का हवाला देते हुए सवाल किया कि क्या ये सब ‘‘नौटंकी” थी। ईरानी जी को अब आज नौटंकी तो लगनी ही थी, कियूं कि जब हिंसा हुई उस वक़्त इनके पास कोई मंच नही था जहां से ये हिंसा की नौटंकी होने का संदेश दे पातीं इसलिए आज फ्रंट कैमरे पर फ्रंट पोजीशन में नए बयान के साथ हाज़िर हैं। खैर, ईरानी ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘ईमानदार मुख्यमंत्री को न्याय सुनिश्चित करने के लिए खुद पर इसे लागू करना चाहिए। लेकिन, मैंने हमेशा कहा है कि राजनीतिक यातना, हत्या और बलात्कार टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) के राजनीतिक हथियार हैं और चुनाव के बाद बंगाल में हो रही हिंसा उनके खिलाफ मेरे रुख की पुष्टि करती है।” अब देखिए यही, इसी बात पे लोग कहते हैं कि सूप तो सूप छलनी भी बोले। पहले मोदी जी बोले कि पश्चिम बंगाल में यही सब होता है ,यहां हिंसा तृणमूल कांग्रेस का काम है। जैसे स्टेटमेंट देते वक़्त मोदी जी भूल गए कि सबसे ज़्यादा हिंसा उन इलाकों में रही जहां बीजेपी जीती थी है। हिंसा को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिशें की गई। इसके लिए फर्जी वीडियो और तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया। अब ये सब जानते हुए कही गई बातों को दोहराने के लिए ईरानी जी बोल पढ़ी हैं। ईरानी ने राज्य की सत्तारूढ़ टीएमसी की राज्यपाल जगदीप धनखड़ की आलोचना को भी खारिज कर दिया। ईरानी ने कहा कि वह ‘‘अनगिनत बलात्कारों”, हत्याओं और हिंसा से बचने के लिए अपने घरों से भाग रहे नागरिकों के लिए ‘‘मूक दर्शक” नहीं हो सकते। उन्होंने आरोप लगाया कि बनर्जी का रुख है कि प्रताड़ना हो, बलात्कार हो लेकिन इसपर कोई कुछ मत बोले। भाजपा की वरिष्ठ नेता ईरानी ने कहा, ‘‘मेरा सवाल उस महिला (बनर्जी) से है जिन्होंने यह कहकर राजनीतिक पद ग्रहण किया कि वह बंगाल के लोगों के लिए समृद्धि और सुरक्षा सुनिश्चित करेंगी। उन्होंने दलितों, आदिवासियों और अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करने वालों के खिलाफ हिंसा की अगुवाई की…और आज, पश्चिम बंगाल की सरकार के रुख को उच्च न्यायालय ने धिक्कारा और शर्मसार किया।” इतना सबकुछ कहने के बाद भाजपा की वरिष्ठ नेता ईरानी जी को ये भी बताना चाहिए कि आखिर ये उस वक़्त कहां थीं जब इसी पश्चिम बंगाल के लोगों को दवा, हॉस्पिटल, आक्सीज़न की ज़रूरत थी और लोग कोरोना में मर रहे थे। सच तो ये है कि चुनाव में अपनी शर्मनाक हार नहीं पचा पाने की वजह से ही बीजेपी यह सब करती है और फ़िर बाद में स्मृति ईरानी जैसे इनके सपोर्टर वकालत के लिए खड़े हो जाते हैं।
पांच न्यायाधीशों की पीठ ने जनहित याचिकाओं के एक समूह पर पारित आदेश को वापस लेने का पश्चिम बंगाल सरकार का आवेदन खारिज कर दिया। इन जनहित याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि विधानसभा चुनाव के बाद राजनीतिक हमलों की वजह से लोगों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा, उनके साथ मारपीट की गई, संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया और कार्यालयों में लूटपाट की गई। पीठ ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से इन घटनाओं की जांच के लिए कहा था। महिला और बाल विकास मंत्री ईरानी ने कहा, ‘‘बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के अनगिनत पीड़ितों के साथ न्याय सुनिश्चित करने के लिए मैं अदालत का आभार व्यक्त करती हूं।” उन्होंने महिला अधिकारों और मानवाधिकारों की रक्षा करने वाले उदारवारदी लोगों की ‘‘चुप्पी” के लिए उन पर निशाना साधा। ईरानी जी ने इसलिए भी आभार व्यक्त किया है कियूं कि तमाशाई भी यही लोग थे और तमाशबीन भी। बनर्जी ने हाल में कहा था कि राज्य में हिंसा की कुछ घटनाएं हुई हैं लेकिन उन्हें राजनीतिक हिंसा नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा था कि भाजपा का ऐसा आरोप एक ‘‘नौटंकी” है। ईरानी ने पलटवार करते हुए कहा कि ऐसी भी घटनाएं हुईं जब लोग सुरक्षा के लिए कैमरे के सामने गिड़गिड़ाए। ईरानी ने कहा कि क्या लोगों को सिर्फ इसलिए राशन देने से मना किया जा रहा है कि वे भाजपा के समर्थक हैं। क्या यह भी नौटंकी है। उन्होंने कहा कि बंगाल के नागरिकों न केवल अदालतों को बल्कि एससी और एसटी आयोगों और एनएचआरसी के सामने भी सबूत रखे हैं। ईरानी ने सवाल किया, ‘‘क्या ये तथ्य ममता बनर्जी के वास्तविक नहीं हैं?” दो वरिष्ठ औरतों के संवाद एक दूसरे पर पलटवार बस और कुछ नही।
उच्च न्यायालय पीठ ने 18 जून को पश्चिम बंगाल राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव (डब्ल्यूएमएलएसए) की ओर से दाखिल की गई रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए यह आदेश सुनाया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि इन घटनाओं से 10 जून दोपहर 12 बजे तक 3243 लोग प्रभावित हुए हैं। उच्च न्यायालय ने एक आवेदन क्या ख़ारिज किया कि भाजपा के लोग छिपे बिल से बाहर निकल पड़े। इसी पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार की कार्रवाई पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “केंद्र ने कभी राज्य में कोरोना संक्रमण और ऑक्सीजन या वैक्सीन के मामले पर कोई टीम नहीं भेजी थी। लेकिन सरकार के गठन के चौबीस घंटे के भीतर उसने हिंसा पर पत्र लिखा और केंद्रीय टीम को बंगाल भेज दिया। केंद्रीय मंत्री भी राज्य के दौरे पर पहुंच गए। मैंने अपने राजनीतिक करियर में पहले कभी ऐसा नहीं देखा है।” उनका दावा था कि बीजेपी के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री ग्रामीण इलाकों में हिंसा उकसा रहे हैं। लेकिन सरकार दंगा भड़काने का उनका मंसूबा कामयाब नहीं होने देगी।
सोचिए एक महिला से जीत न पाने की शर्मिंदगी बहुत कुछ करा देती है ख़ास कर उससे जिससे इनको “खेला” का आमंत्रण खुलेआम दिया था। सोशल मीडिया पर तस्वीरें, फेसबुक और ट्विटर पर तमाम ऐसे वीडियो और तस्वीरें हैं जिनको इस हिंसा से संबंधित बताया गया था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था, कि हिंसा की घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर बीजेपी बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू कराने का प्रयास कर रही है ” ये सच है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा की कुछ घटनाएं जरूर हुई हैं, लेकिन बीजेपी ने इस आग में घी डालने का काम पूरे तन मन धन से किया।
भाजपा ने सोमवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा पश्चिम बंगाल सरकार की एक अर्जी खारिज किए जाने की सराहना तो कर दी लेकिन ये भूल गई है कि इसी उच्च न्यायालय के सामने जब इनका कच्चा चिट्ठा खुलेगा तब “तेरा क्या होगा कालिया”।