कोरोना और लाॅकडाउन भी घृणा के वाइरस को समाप्त नहीं कर सके :मौलाना अरशद मदनी

प्रेस विज्ञप्ति

कोरोना और लाॅकडाउन भी घृणा के वाइरस को समाप्त नहीं कर सके
धार्मिक घृणा और सांप्रदायिक आधार पर लोगों को विभजित करने का यह खतरनाक खेल आखिर कब तक? मौलाना अरशद मदनी

नई दिल्ली 20 जून 2021
हाल ही में हरियाणा के मेवात, दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद के लोनी में और देश के अन्य स्थानों पर मॉबलिंचिंग और मस्जिदों को अपवित्र करने की निंदनीय घटनाओं पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद मौलाना सैयद अरशद मदनी ने आज अपने एक बयान में कहा कि यह धार्मिक घृणा देश को विकास नहीं विनाश के रास्ते पर ले जा रही है और धर्म के नाम पर देश भर में जो खतरनाक खेल खेला जा रहा है, उससे सामाजिक रूप से घृणा की खाई और अधिक गहरी होती जा रही है और एक बार फिर भय और आतंक का माहौल तैयार हो रहा है, जिसके अभिशाप से देश हस स्तर पर विनाश की स्थिति में है।
उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले जब कोरोना की दूसरी लहर लोगों की जानों ले रही थी तो लोग धर्म से ऊपर उठकर एक दूसरे की सहायता कर रहे थे, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब एक साथ आकर कोरोना पीड़ितों की मदद कर रहे थे, तब यह महसूस हो रहा था कि जो काम हमारे शासकों और राजनेता नहीं कर सके उसको कोरोना के कारण पैदा हूए मानवता की भावना ने पूरा कर दिखाया। उन्होंने यह भी कहा कि तब प्रिंट और एालेक्ट्रानिक मीडीया से लेकर सोशल मीडीया तक यह कहा जाने लगा था कि इस महामारी ने सभी भारतियों को एकजुट कर दिया है और इस घृणा की दीवार को गिरा दिया है, जो सांप्रदायिक दलों और संठनों ने अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए उनके बीच खड़ी कर दी थी, तब देश के हर शांति प्रिय नागरिक ने राहत की सांस ली थी, लेकिन चुनाव निकट आते ही एक बार फिर घृणा का खेल शुरू हो गया और एक विशेष विचारधारा के लोग पुलिस के संरक्षण में पुरानी मस्जिदों और निहत्थे मुस्लमानों को उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर अपना निशाना बनाने लगे यहां तक कि बूढ़ों को भी नहीं बख़्शा जा रहा है, उनकी दाढ़ी काटी जा रही है, बूढ़ों के साथ यह मामला उपद्रवियों ने धार्मिक घृणा फैलाने के लिए किया जो कि निन्दनीय है। मौलाना मदनी ने कहा कि अब यह तथ्य पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि जब भी कोई चुनाव निकट होता है, अचानक एक विशेष वर्ग उपद्रव और धार्मिक घृणा को हवा देने में व्यस्त हो जाता है। स्पष्ट है कि कुछ लोग समाज में सांप्रदायिक हदबंदी स्थापित करके सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं, अर्थात सभी घटनाएं राजनीतिक आधार पर की जा रही हैं, उन लोगों के यहां न तो देश के संविधान का कोई महत्व है और न ही मानवीय भावनओं की, जबकि देश एक बड़े आर्थिक संकट से गुज़र रहा है, रोजगार समाप्त हो रहे हैं, शिक्षित युवाओं की एक पूरी पीढ़ी बेकारी का शिकार है, देश की विकास दर निगेटिव आंकड़े तक जा पहुंची है, हम 21वीं सदी में भले ही जी रहे हैं मगर देश के नागरिक हर प्रकार के विकास के दावे के बावजूद अब भी मूल सूविधाओं से वंचित हैं, कोरोना की महामारी ने विकास की भयानक सच्चाई सामने ला दी है, जब हम लोगों को आॅक्सीजन तक उपलब्ध नहीं करा सके, इसकी कमी से हजारों लोग दम तोड़ गए, बहुत से लोगों को अस्पताल में बेड नहीं मिला, अगर मिल भी गया तो उन्हें आवश्यक दवाएं नहीं मिल सकीं।
मौलाना मदनी ने कहा कि अब अगर इसके बाद भी हमारी अंतरात्मा नहीं जागती और हम इसी तरह धार्मिक उपद्रव और घृणा का खेल खेलते रहे, और करोड़ों लोगों को निराश करते रहे तो इसे देश के दुर्भाग्य के अतिरिक्त क्या कहा जाएगा, उन्होंने इस बात पर कड़ी निन्दा व्यक्त की कि जो लोग देश में घृणा फैलाते हैं, हिंसा करते हैं वह पकड़े नहीं जाते बल्कि कुछ लोग टी.वी. चैनलों पर बैठ कर उनका बचाव करते हैं, इस से स्पष्ट है कि हिंसक लोगों को किसी न किसी प्रकार से राजनीतिक समर्थन प्राप्त है, शायद यही कारण है कि पुलिस भी उन लोगों पर हाथ डालते हुए घबराती है, और ऐसा करने वालों का बाल भी बीका नहीं होता, इसी लिये माॅबलिंचिंग करने वाले उपद्रवी लोग भय मुक्त होकर हिंसा करते हैं क्योंकि उनको यक़ीन है कि हमारे समर्थक सत्ता में मौजूद हैं, जिसके कारण हत्या करने के बावजूद भी उन पर ऐसी धाराएं लगाई जाती हैं जिससे उनकी आसानी से ज़मानत हो जाती है, इसके विपरीत दूसरी ओर दिल्ली दंगों में मुसलमान ही अधिक मारे गए, इन ही की दूकानें लूटी गईं, इन ही के घर जलाए गए, इन ही की इबादत गाहों को अपवित्र किया गया और फिर उल्टे उन पर ही इक्कीस इक्कीस तक धाराएं लगा दी गईं, जिसके कारण उनकी ज़मानतें निचली अदालातें से नहीं हो रही हैं। न्याय का यह दोहरा मापदण्ड देश के लिये अति घातक है। इस स्थिति का एक खतरनाक परिणाम यह भी हो सकता है कि जब यह अवांछनीय तत्व इस हत्या एवं उपद्रव का अल्पसंख्यकों के खिलाफ आदी हो जाएगा तो बहुसंख्यकों के शरीफ लोग भी उनके अत्याचार और उत्पीड़न से सुरक्षित नहीं रह पाएंगे।
मौलाना मदनी ने चेतावनी दी कि अभी समय है कि इस दुष्चक्र को बंद किया जाये और धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिका की जगह स्कूलों, काॅलिजों, अस्पतालों और नौकरियों की चर्चा की जाए और मिल बैठ कर देश को तबाह होने से बचाने की कोशिश की जाए, इन्होंने यह भी कहा कि पिछले कुछ वर्षों से घृणा की जो राजनीति हो रही है उसके भयानक परिणाम सामने आने लगे हैं, अगर अब भी शासकों की आँखें नहीं खुलीं तो फिर देश विनाश के जिस खतरनाक रास्ते पर चल पड़ेगा वहां से वापस लाना मुश्किल हो जाएगा।
मौलाना मदनी ने कहा कि देश संविधान और न्याय से चलता है और आपसी एकता से आगे बढ़ता है इसी लिये हम लगातार यह बात कहते आए हैं कि घृणा की जगह देश में राष्ट्रीय एकता, आपसी मेलजोल और हिंदू मुस्लिम भाईचारे को बढ़ावा दिया जाना चाहिये क्योंकि मानव इतिहास गवाह है कि मुहब्बत अपने साथ शांति, विकास और खुशहाली लेकर आती है और घृणा केवल विनाश लाती है।

फज़लुर्रहमान
प्रेस सचिव, जमीअत उलमा-ए-हिन्द
09891961134

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