जानिए क्या है माहे रमजान का महत्व? सुरक्षित प्रक्रिया कैसे अपनाएं कोरोना वायरस संकट के समय

खुर्रम मालिक

जैसा के हम सब को पता है के इस समय पूरी दुनिया कोरोना नामक महामारी से पीड़ित है और इस से बचाव के लिए हर वह उपाय किये जा रहे हैं जो इस बीमारी से मनुष्य को बचा सके. पूरी दुनिया में लाक डाउन हैऔर लोगों को अपने अपने घरों में रहने के लिये कहा गया है.जिस का पालन सभी लोग कर रहे हैं. और इसी बीच कल इस्लामिक पवित्र महीना रमज़ान का चांद पूरे देश में देखा गया और आज से रोज़ा शुरु हो गया. और इसी के साथ पूरी दुनिया के मुसलमानों ने रोज़ा रख कर इस पवित्र महीना का आरंभ किया. सब से पहले बात करते हैं के यह महीना है किया?इसकी महत्ता किया है और इसे इतना पवित्र कियु कहा गया है?

○इस्लामिक कैलेंडर का 9वां महीना रमजा़न है। इस महीने में मुसलमान रोजा़ रखते हैं। रोजे़ के दौरान सूर्योदय(सूरज निकलने)से लेकर सूर्यास्त(सुरज डूबने)तक कुछ भी नहीं खाते-पीते। इसके साथ ही रमजा़न में बुरी आदतों से दूर रहने के लिए भी कहा गया है। रमजा़न में मुसलमान लोग अल्लाह को उनकी नेमत के लिए शुक्रिया अदा करते हैं। महीने भर रोजे़ के बाद शव्वाल की पहली तारीख़ को ईद उल फि़तर मनाया जाता है। इन सबके बीच क्या आप जानते हैं कि रमजान क्यों मनाया जाता है? और इसका इतिहास क्या है? आज हम आपको इस बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।

○रमज़ान या रमदान (उर्दू – अरबी – फ़ारसी : رمضان) इस्लामी कैलेण्डर का नवां महीना होता है. मुस्लिम समुदाय इस महीने को परम पवित्र मानते हैं . रमजान शब्द अरब से निकला है. अर्थात यह एक अरबिक शब्द है जिसका अर्थ है कि “चिलचिलाती गर्मी तथा सूखापन”

○ऐसा माना जाता है कि मोहम्मद साहब को साल 610 में लेयलत उल-क़द्र के मौके़ पर पवित्र कु़रान शरीफ़ का ज्ञान प्राप्त हुआ था। उसी समय से रमजा़न को इस्लाम धर्म के पवित्र महीने के तौर पर मानाया जाने लगा। इस पवित्र महीने में मुसलमान लोगों को कुछ खास सावधानियां बरतने की सलाह दी गई है।

○रमज़ान या रमदान (उर्दू – अरबी – फ़ारसी : رمضان) इस्लामी कैलेण्डर का नवां महीना होता है. मुस्लिम समुदाय इस महीने को परम पवित्र मानते हैं . रमजान शब्द अरब से निकला है. अर्थात यह एक अरबिक शब्द है जिसका अर्थ है कि “चिलचिलाती गर्मी तथा सूखापन”.
○इस पवित्र महीने का महत्व यह भी है के उसी पवित्र महीने में चारों आसमानी किताबें उतारी गई, जिस में तौरैत, ज़बूर(दाऊद अ) , इन्जील, और पाक किताब क़ुरान ए पाक हज़रत मुहम्मद सo पर. इस महीने की महत्ता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अल्लाह ने कहा के यह महीना मेरा महीना है और मैं इस महीने का बदला लोगों को उन के कर्मो के अनुरूप दूँगा. इस का सीधा अर्थ यह है के यह महीना अल्लाह के नज़्दीक बहुत महत्व वाला है.
○इस पवित्र महीने में इब्लीस (शैतान) को बंदी बना कर क़ैद कर लिया जाता है. इस पवित्र महीने में कुछ चीज़ें हैं जिन को करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. ○1- रोज़ा- इस पवित्र महीने में सारे मुसलमानों को रोज़ा अर्थात उप्वास रखने का आदेश दिया गया है जो सुर्युदय से ले करसुर्यास्त तक होता है.अर्थात सुबह की अज़ान जिसे इस्लाम में फ़ज्र कहा गया है उस समय से ले कर शाम को सुरज डूबने तक सभी मुसलमानों को बिना दाना पानी खाए भूखा रहना होता है. लेकिन इस्लाम ने ऐसे लोगों के लिए छूट भी दी है जो बीमार हैं या जिन्हें डाक्टर ने भूखा रहने को मना किया है. तो ऐसे लोगों के लिये इस्लाम ने यह आदेश दिया है के वह रमज़ान के रोज़े ना रखे और जब वह स्वस्थ हो जाए तो बाद में वह रोज़े रख ले. कियु के इस्लाम में कहीं कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं है. जैसा लोग समझ्ते है.

○2- तरावीह -यह एक नमाज़ है जिसे तरावीह की नमाज़ कहा जाता है. इस का पढ़ना सुननत ए मो’अक्कदा है अर्थात जिस के पढ़ने पर पुनय मिलता है. जो के 20 रकात पढी़ जाती है. इस नमाज़ में क़ुरान को एक हाफ़िज़ साहब (क़ुरान को याद किया हुआ इंसान) पढ़ते हैं और पीछे लोग उसे सुनते हैं.

○3-इफ़्तार -यह सुर्युदय के बाद अर्थात मग़रिब की अज़ान होने पर किया जाता है.जिस में सब से पहले खजूर खाने को कहा गया है या अगर यह नहीं है तो किसी मीठी चीज़ से अपना रोज़ा(उप्वास) खोले.

○4-सेहरी- यह सुबह के समय के खाने को कहा जाता है अर्थात ठीक सुर्युदय से पहले कुछ भी भोजन गर्हण कर लेना होता है. और इस की महत्ता के बारे में खु़द मुहम्मद साहब ने कहा है के

قال رسول الله ص: تسحروا فان في السحور بركة..(بخاری شریف)

क़ाला रसूलुल्लाह सo..
तसह्हरु फ़’इनना फ़िस-सुहूरी बर’कतन (बुखा़रीशरीफ़)

रोज़ा रखने के लिए सेहरी मस्नून है,हदीस में इस अमल को बरकत क़रार दिया गया है इस लिए सेहरी का ख़ास एहतेमाम करना चाहिए.

5-ज़कात – ज़कात या ( अरबी : زكاة ) इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है, जिसका शाब्दिक अर्थ है शुद्ध या पोषण करना। इसका मुख्य उद्देश्य ग़रीबों की मदद करना, सामाजिक कल्याण में अमीरों को शामिल करना और योग्य लोगों के लिए निर्वाह के साधन उपलब्ध कराना है।
इस्लाम में जिस तरह नमाज़ पढ़ने पर ज़ोर दिया गया है ठीक इसी तरह ज़कात निकलने पर भी सख़्त आदेश दिये गए हैं. कियु के नमाज़ के बाद इस पर सब से ज़ियादा बात की गई है. वह इस लिये के इस के निकलने से ग़रीबों की मदद हो जाती है और इस का हुक्म मुहम्मद साहब के समय ही हुआ था जिस का पालन अब तक किया जा रहा है .
इस की व्याख्या अगर सरल शब्दों में की जाए तो इस का अर्थ यह निकलता है के वैसे मुसलमान जो माल्दार हैं, पैसे से सम्पन्न हैं और पूरे साल में जो कमाता है और उस के बाद अगर उस के पास पैसे बच जाते हैं तो वह उस का ढाई अर्थात 2.5 पर्तिशत निकाल कर ग़रीबों, मोह्ताजों को देना होता है. इस्लाम ने इसे इस लिये लागू किया था के इस से समाज में गरीब लोगों का भी उद्धार हो और वह भी एक बेहतर जीवन व्यतीत कर सकें.

6-ऐतेकाफ़- रमज़ान के पवित्र महीने के आखि़री के दस दिनों में मुसलमानों को अपने अपने मोहल्ले की मस्जिद में पूरे दस दिनों के लिए अल्लाह की इबादत के लिए बैठना होता है. एक मोहल्ले से अगर एक भी आदमी बैठ गया तो सब की तरफ़ से अदा हो जाता है. लेकिन अगर एक भी आदमी नहीं बैठा तो पूरी मोहल्ले को गुनाह मिलता है. और इस दौरान वह व्यक्ति मस्जिद से बाहर नहीं जा सकता है,.आप यह कह सकते हैं के मनुष्य का पूरी तरह से इश्वर की साधना में लीन हो जाना ही ऐतेकाफ़ है. और इस का अल्लह के क़रीब बहुत सवाब (पुण्य) है. और यह ईद का चांद देखने के बाद समाप्त हो जाता है और मो’तकिफ़ (मस्जिद में इबादत के लिए बैठने वाला) अपने घर चला जाता है.
इस्लाम में कहा गया है के अगर कोई मुसलमान पूरी निष्ठा और श्रद्धा से रमज़ान के इन आखि़री के दस दिनों में मस्जिद में अल्लाह की इबादत के लिये बैठता है तो उस पर अल्लाह की खा़स रहमत होती है. और जब वह मस्जिद से निकलता है तो ऐसे होता है जैसे एक पैदा हुआ बच्चा.अर्थात जैसे एक बच्चा गुनाह से पाक होता है वैसे ही वह इंसान भी हो जाता है. इस पवित्र महीने में अल्लाह ने मुसलमानों को झूट,लड़ाई झगड़े से बचने को कहा है. आपस में भेद भाव मिटाने को कहा गया है. ग़रीब और बे सहारा लोगों की मदद करने का आदेश दिया गया है. अर्थात झूट की जगह सच, बुराई की जगह अच्छाई,बद की जगह नेक को दर्शाने के लिए कहा गया है.

इसी के साथ मौजूदा रमज़ान कुछ अलग तरह का हो गया है. कोरोना की वजह कर लोग सरकारी आदेश का पालन कर रहे हैं. इस लिये मस्जिद में तरावीह नहीं हो रही है, और लोग अपने अपने घरों में ही नमाज़, तरावीह पढ़ रहे हैं जो के मुसलमानों के लिये अत्यंत दुख का कारण है. किन्तु महामारी के चलते सभी मुसलमान बाहर भी नहीं जा सकते हैं. कियु के हदीस के अनुसार अगर कहीं भी कोई वबा (महामारी) फैलती है तो ऐसे में नमाज़ घरों में पढ़ने का हुक्म दिया गया है. इस साल के रमज़ान में मुसलमान मस्जिद में तरावीह को याद कर के अफ़्सोस का इज़्हार तो कर रहा है है लेकिन दूसरी और वह इस महामारी के विक्राल रूप को भी देख रहा है और इस्लाम में अपनी और अपने परीवार की रक्षा करने को भी कहा गया है.साथ ही मुसलमानों के बड़े उलेमा ने भी घर में ही रह कर इबादात करने का आदेश दिया है और मुसलमान इस का पूरी तरह पालन भी कर रहे हैं. कुल मिला कर यह कहा जा सकता है के इस साल का रमज़ान इतिहास में ऐसा पहला रमज़ान है जिस में मुसलमान मस्जिद में ना जा कर घर में ही इबादात कर रहा है और अपने अल्लाह के हुक्म को मानने के साथ ही अपने देश की सरकार और प्रशासन का पूरी तरह से सहयोग कर रहा है जो के सराहनिय है.
इस लिये हम भी दुआ करते हैं के यह पवित्र महीना रमज़ान हम तमाम इंसानियत के लिये बेहतर साबित हो और इस मुबारक महीने की बरकत से हमारे देश और पूरी दुनिया से कोरोना नामक बीमारी को अल्लाह ख़त्म कर दे और तमाम इंसानियत की हिफ़ाज़त फ़रमाए. और देश में अमन शान्ती और भाई चारे को बनाए रखे. आमीन

खुर्रम मालिक इस्लामिक स्कॉलर और पत्रकार है। ये लेखक के निजी और व्यक्तिगत विचार हैं

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