सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उप्र सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) सहित मुस्लिम पक्षकारों को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद (Ram Janmbhoomi-Babri Masjid Land Dispute) में अपने लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति दे दी. मुस्लिम पक्षकारों ने इसमें कहा है कि शीर्ष अदालत का निर्णय देश की भावी राज्य व्यवस्था पर असर डालेगा.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई (CJI Ranjan Gogoi), न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ के समक्ष मुस्लिम पक्षकारों के एक वकील ने कहा कि उन्हें राहत में बदलाव के बारे में लिखित नोट रिकॉर्ड पर लाने की अनुमति दी जाए ताकि इस मामले की सुनवाई करने वाली संविधान पीठ इस पर विचार कर सके.
6 अगस्त से 40 दिन तक चली सुनवाई
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने छह अगस्त से इस मामले में 40 दिन सुनवाई करने के बाद 16 अक्टूबर को कहा था कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा. इस वकील ने यह भी कहा कि विभिन्न पक्षकार और शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री ने लिखित नोट सीलबंद लिफाफे में दाखिल करने पर आपत्ति जताई है.
मुस्लिम पक्षकारों के वकील ने कहा, ‘‘हमने अब रविवार को सभी पक्षकारों को अपने लिखित नोट भेज दिए हैं.’’ साथ ही उन्होंने अनुरोध किया कि रजिस्ट्री को उनके रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया जाए.
हालांकि, पीठ ने इस लिखित नोट के विवरण के बारे में कहा कि सीलबंद लिफाफे में दाखिल यह नोट पहले मीडिया के एक वर्ग में खबर बन चुका है.
‘भविष्य पर पड़ेगा कोर्ट के फैसले का असर‘
संविधान पीठ के समक्ष लिखित नोट दाखिल करने वाले मुस्लिम पक्षकारों ने बाद में आम जनता के लिए एक बयान जारी किया था. मुस्लिम पक्षकारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन द्वारा तैयार किये गए इस नोट में कहा गया है, ‘‘इस मामले में न्यायालय के समक्ष पक्षकार मुस्लिम पक्ष यह कहना चाहता है कि इस न्यायालय का निर्णय चाहे जो भी हो, उसका भावी
पीढ़ी पर असर होगा. इसका देश की राज्य व्यवस्था पर असर पड़ेगा.’’
इसमें कहा गया है कि न्यायालय का फैसला इस देश के उन करोड़ों नागरिकों और 26 जनवरी, 1950 को भारत को लोकतंत्रिक राष्ट्र घोषित किये जाने के बाद इसके संवैधानिक मूल्यों को अपनाने और उसमें विश्वास रखने वालों के दिमाग पर असर डाल सकता है..input (news 18)