तुर्की के नोबेल विजेता ओरहान पामुक बोले- ‘हिजाब पर मोदी फैसला नहीं कर सकते’

 नई दिल्ली, साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित तुर्की के मशहूर उपन्यासकार ओरहान पामुक ने हिजाब को लेकर एक बयान दिया है। उन्होंने कहा है की महिलाओं को ही यह तय करने दिया जाना चाहिए कि वो हिजाब पहनेंगी या नहीं।

अंग्रेज़ी अख़बार ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए इंटरव्यू में पामुक से पूछा गया था कि ईरान में हिजाब के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों और भारत में कॉलेज जाने वाली छात्राओं को हिजाब पहनने से रोकने को वो कैसे देखते हैं, क्योंकि उनके ‘स्नो’ उपन्यास में तुर्की में हिजाब को लेकर सवाल उठाए गए थे।

इस पर पामुक ने विस्तार से जवाब दिया। उन्होंने कहा, “फ़्रांस में हाई-स्कूल की लड़कियों के लिए हिजाब पर बैन लगा दिया गया जो ठीक है लेकिन अगर आप विश्वविद्यालय जाने वाली युवतियों पर ये लगाते हैं तो ये मानवीय गरिमा के ख़िलाफ़ है। मेरा उपन्यास ‘स्नो’ इसी को लेकर था।

“तुर्की में एक अल्पसंख्यक यह तय कर रहा था (क्योंकि हिजाब पर प्रतिबंध धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादियों ने लगाया था), लेकिन 65 फ़ीसदी से अधिक तुर्की की महिलाएं रीति और परंपरा के तहत हिजाब पहनती थीं न कि राजनीतिक इस्लाम की अभिव्यक्ति के तौर पर।

“दरअसल, अर्दोआन इन महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और जबरन हिजाब उतरवाने के ख़िलाफ़ सत्ता में आए थे। आप देखेंगे देश के 70 से 75 फ़ीसदी लोग इससे ख़फ़ा थे। स्नो’ में एक थियेटर का सीन है, जहां पर एक महिला जबरन हिजाब उतार रही है और उसे जला रही है, ईरानी महिलाएं उसी तरीक़े से आज कर रही हैं। मैं इन ईरानी महिलाओं की प्रशंसा करता हूं और मेरी इनके साथ सहानुभूति है।

‘स्नो’ में मैंने हिजाब का बचाव नहीं किया है। मैं महिलाओं के अधिकार का बचाव करता हूं कि वो तय करें कि उन्हें क्या पहनना है, हिजाब पहनना है या नहीं पहनना है। बिल्कुल उसी तरह जैसे वो तय करें कि वो गर्भपात चाहती हैं या नहीं। “यह न ट्रंप तय करेंगे, न ही मोदी और न ही अर्दोआन. महिलाएं ख़ुद तय करे। इस पर मेरी स्थिति बिल्कुल उदारवादी है।

बता दें नोबेल विजेता ओरहान पामुक की हाल ही में एक किताब आई है, जिसका नाम ‘नाइट्स ऑफ़ प्लेग’ है. ये उपन्यास महामारी की पृष्ठभूमि पर आधारित है। नए उपन्यास पर पामुक ने कहा कि वो हमेशा से प्लेग पर आधारित एक बड़ा नाटकीय उपन्यास लिखना चाहते थे और इसके बारे में बीते 40 सालों से सोच रहे थे। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक उपन्यास के प्रकाशित होने के बाद पामुक पर तुर्की के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क और तुर्की के झंडे का अपमान करने के आरोप लग रहे हैं।

इस सवाल पर पामुक ने कहा, “मैं जानता था कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी मुझ पर हमला करेंगे क्योंकि वो हमेशा एक कारण खोजते हैं। मुझे हैरत तब हुई जब इस्लामवादी अर्दोआन के समय पर एक सरकारी वकील ने इसे गंभीरता से लिया और मुझे पूछताछ के लिए बुलाया।

उन्होंने मुझसे कहा कि ‘आप हमें बताइये कि आप अतातुर्क या तुर्की के झंडे का मज़ाक नहीं बनाने जा रहे हैं?’ मैं उनके दफ़्तर में गया और मैंने कहा कि आपने किस पन्ने पर अपमान देखा? लेकिन अब वो इस मामले को नहीं देख रहे हैं और मेरा मामला अंकारा की भूलभुलैया में कहीं गुम हो गया है।

 

 

 

 

 

 

 

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