नई दिल्ली, यूपी में योगी सरकार द्वारा मदरसों के सर्वे के आदेश पर उठे सवालों को लेकर आज दारुल उलूम देवबंद में एक बैठक बुलाई गई। इस बड़ी बैठक में 500 मदरसा संचालकों ने शिरकत की। इस दौरान 5000 से ज्यादा मौलाना बैठक में शामिल हुए।
चार घंटे तक चली इस बैठक में कई तरह के विचार रखे गए, मगर आखिर में बैठक इस ऐलान के साथ खत्म हुई कि मदरसे खुद सर्व करने में सहयोग करेंगे। इसके लिए प्रशासनिक अमला उन्हें परेशान न करे। मदरसे खुद 12 बिंदुओं पर मांगी गई जानकारी उन्हें सौंप देंगे। अभी तक जहां भी सर्वे हुआ है। वहां से कुछ भी नकारात्मक खबर सामने नहीं आई है।
वहीं आज की इस बड़ी बैठक की सदारत कर रहे मौलाना अरशद मदनी ने बताया कि ऐसा कहने और करने के पीछे बड़ी वजह यह है कि हम दिखाना चाहते हैं कि मदरसे खुली किताब हैं और यहां कुछ भी गलत नहीं होता है। सरकार या कोई भी अपनी तसल्ली कर सकता है। हम सरकार का सहयोग कर रहे हैं मगर वो भी नीयत साफ रखें।
नवजीवन की खबर के मुताबिक बैठक में बताया गया कि दारुल उलूम इस्लामिया उत्तर प्रदेश की इस प्रतिनिधि सभा में विभिन्न सभ्यताओं वाले इस देश के सभी लोगों के सामने इस तथ्य को व्यक्त करना आवश्यक है कि भारत के कोने-कोने में चल रहे इस्लामिक मदरसे देश पर अंग्रेजों के कब्जे के बाद दारुल उलूम देवबंद की स्थापना के साथ शुरू हुए। इन मदरसों का शैक्षिक, राष्ट्रीय और सामाजिक सेवाओं का उज्ज्वल इतिहास रहा है।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि मदरसों का उद्देश्य देश में मुस्लिम विरासत की रक्षा के साथ-साथ अपने देश से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना था और इन्होंने इन दोनों लक्ष्यों को भलिभांति पूरा किया। इन मदरसों ने एक तरफ देश के दुसरे सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय की सभी धार्मिक जरूरतों का ख्याल रखा और उन्हें अच्छा मुसलमान और अच्छा इंसान बनाने में अहम भूमिका निभाकर देश को बहुत ही जिम्मेदार नागरिक दिये हैं।
दूसरी तरफ इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया और उलेमाओं के नेतृत्व में मुसलमानों को आज़ादी के आंदोलन में हर तरह का बलिदान देने के लिए तैयार किया। साथ ही अपने हमवतनों को भी आज़ादी की इस लड़ाई में बढ़चढ कर आगे आने और साथ देने के लिए प्रेरित किया। इस देश का हर कोना इसका गवाह है और जिसे सभी निष्पक्ष इतिहासकार मानते हैं।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भी इन मदरसों ने अपनी अद्भुत भूमिका जारी रखी। इन्होंने हमेशा शांति की आवाज बुलंद की। देश को अच्छे नागरिक दिये। पूरी तरह से मुफ्त शिक्षा के माध्यम से देश की आबादी के एक बेसहारा और गरीब हिस्से को शिक्षा हासिल करने और अपना जीवन सुधारने और अपने भविष्य को उज्जवल बनाने का मौका दिया।
मदरसों का इतिहास यह भी रहा है कि इन्होंने हमेशा आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाई और इनके उलामा ने सभी कठिनाइयों के बावजूद स्थिति को नियंत्रण में रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मदरसों की कड़ी मेहनत और मार्गदर्शन के कारण भारतीय मुसलमानों की एक बहुत ही स्वच्छ छवि दुनिया भर में स्थापित हुई।
यहां सबसे महत्वपूर्ण बात मौलाना अरशद मदनी ने कही कि इन मदरसों के अहमियत को समझें। यह कौम की रीढ़ हैं। किसी भी ऐसे शब्द या कार्य से बचें जिससे मदरसों की छवी खराब हो या उनके बारे में नकारात्मक ख्याल पैदा हों, बल्कि जितना हो सके ऐसे उपाय करें जिनसे मदरसों को मजबूती हासिल हो और देश में भाईचारा, प्यार और मुहब्बत बढ़े। मदरसा संचालक सर्वेक्षण की प्रक्रिया के संबंध में किसी भी भय या ज़ेहनी उलझन में न पड़ें और न ही कोई भावुकता दिखाएं, बल्कि इसको एक ज़ाब्ते की कार्रवाई समझते हुए इसमें सहयोग करें।