नई दिल्ली, हाथरस साजिश मामले में गिरफ्तार उत्तरी दिल्ली के कैब ड्राइवर मोहम्मद आलम को जमानत मिल गई है। आलम को गिरफ्तारी के करीब 23 महीनों बाद इलाहाबाद कोर्ट से 23 अगस्त को जमानत दे दी गई।
इस मामले के आठ आरोपियों में आलम पहले हैं जिन्हें जमानत मिली है। 5 अक्टूबर 2020 को आलम को केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन और अतीकुर्रहमान व मसूद और मुस्लिम छात्र संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के दो कार्यकर्ताओं के साथ गिरफ्तार किया गया था।
तीनों लोग उत्तर प्रदेश के हाथरस गांव जा रहे थे जहां कप्पन की योजना एक दलित महिला से जुड़े मामले पर रिपोर्ट करने की थी, जिनकी ठाकुर जाति के पुरुषों द्वारा सामूहिक बलात्कार कर दी गई थी। इस मामले में अदालत के समक्ष 11 अगस्त को बहस पूरी हो गई थी। अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
लाइव लॉ के मुताबिक, अदालत ने इसलिए जमानत दी क्योंकि उन्हें ‘अपीलकर्ता की संलिप्तता आतंकी गतिविधियों या किसी भी प्रकार की राष्ट्रविरोधी गतिविधि में नहीं मिली। अदालत ने उनके मामले को पत्रकार कप्पन से अलग करते हुए कहा कि ‘कप्पन के कब्जे से कथित तौर पर आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई थी, लेकिन ऐसी कोई सामग्री आलम के कब्जे से बरामद नहीं हुई। आलम को जमानत मिलने पर उनकी पत्नी बुशरा ने कहा है कि उनकी दुआएं रंग लाईं, वे दो साल से यह खबर सुनने के लिए प्रार्थना कर रही थीं। बुशरा ने कहा कि जब वे जेल में आलम से मिली थीं तो वे स्वभाव और शारीरिक तौर पर बदल गए थे।
उनकी हंसी छिन गई थी, उम्मीदें खत्म हो गईं थीं और उन्होंने परिस्थिति को स्वीकार कर लिया था। गिरफ्तारी के वक्त आलम पर आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत सार्वजनिक शांति भंग करने का आरोप लगाया गया था और कुछ दिनों बाद उन पर और उनके तीन यात्रियों पर यूएपीए के तहत दो आरोप और लगाए गए, साथ ही भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आईटी अधिनियम के तहत भी कई आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया था। इस बीच मामला भी कई पुलिस विभागों के बीच स्थानांतरित किया गया, जिससे जांच में देरी हुई।
द वायर के मुताबिक आलम के वकील सैफान शेख ने कहा कि मामले की शुरुआत से ही उनका रुख यह था कि आलम यूपी पुलिस द्वारा लगाए गए किसी भी साजिश के आरोप से नहीं जुड़े हैं। वह केवल एक टैक्सी ड्राइवर थे और अपने साले दानिश के अलावा किसी भी सह-आरोपी को नहीं जानते थे दानिश ने ही रहमान से आलम को ड्राइवर रखने के लिए कहा था और उनका पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) या सीएफआई से कोई संबंध नहीं था।
आलम की जमानत के लिए सबसे बड़ी चुनौती वकील के सामने यह थी कि सुनवाई के लिए बार-बार अदालतें बदली जा रही थीं। पहले मथुरा, फिर लखनऊ की विशेष अदालत, इसके कारण वकील को अपनी याचिका नई अदालत में वापस शुरू से लगानी पड़ती थी. उनके वकील ने बताया कि इससे आलम की रिहाई में देरी हुई। बता दें इस महीने की शुरुआत में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सिद्दीक कप्पन की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, उन्हें यूएपीए और राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।