प्रेस रिलीज़
14 अगस्त 2021
नई दिल्लीः पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद की बैठक में पारित प्रस्ताव में संगठन ने पिछड़े वर्गों की आबादी के हिसाब से उनकी हिस्सेदारी को सुनिश्चित बनाने के लिए जाति के हिसाब से जनगणना और पर्याप्त आरक्षण की मांग की है।
एनईसी ने कहा कि सकारात्मक कार्यवाही की व्यापक प्रणाली और अन्य सहायक मेकानिज़्म की मौजूदगी के बावजूद पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व का स्तर लगातार नीचे गिर रहा है। संसद के दो हालिया खुलासों ने इस तथ्य पर रोशनी डाली है। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने हाल ही में राज्यसभा में बताया कि पिछड़े वर्गों से ताल्लुक रखने वाले छात्र देश के सबसे प्रसिद्ध तकनीकी शिक्षा संस्थानों आईआईटी से सबसे ज़्यादा ड्रॉप-आउट हुए हैं।
पॉपुलर फ्रंट की एनईसी ने इस ओर भी इशारा किया कि एक तरफ जहां पर्याप्त प्रतिनिधित्व के संवैधानिक उद्देश्य की प्राप्ति पहुंच से बहुत दूर है, वहां आरक्षण को कई चुनौतियों का सामना है। आश्चर्य की बात है कि शिक्षा मंत्री ने संसद में यह भी बताया कि ओबीसी के हज़ारों पद खाली पड़े हुए हैं। यह इस बात का सबूत है कि किस तरह से क्रीमी लेयर जैसे विचार पिछड़े वर्गों के उम्मीदवारों की एक बड़ी संख्या को आरक्षण से वंचित करने का हथियार बन गए हैं।
इसी बीच शासक वर्ग और कई विपक्षी दल मिलकर आरक्षण के विचार को ही कमज़ोर कर रहे हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण देना उच्च जाति के मंसूबे का हिस्सा है। और यह सामाजिक व शैक्षिक पिछड़ेपन और कम प्रतिनिधित्व के असल संवैधानिक मापदंड को खुलेआम हाईजैक करके किया गया। अगड़ी जाति के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को एससी, एसटी और ओबीसी के अवसरों को चुराकर आरक्षण दिया गया। हम यह भी देख रहे हैं कि एक के बाद एक अगड़े समुदाय जो कि आर्थिक रूप से बेहतर हैं और नौकरी व शिक्षा में काफी ज़्यादा प्रतिनिधित्व रखते हैं, वे आगे आकर आरक्षण की मांग कर रहे हैं। लेकिन वहीं पर मुसलमानों के लिए अभी तक कोई आरक्षण तय नहीं किया गया है, हालांकि सभी रिपोर्टों ने मुसलमानों को देश के सबसे ज़्यादा पिछड़े वर्गों में शामिल किया है। भले ही महाराष्ट्र सरकार ने शुरू में मुसलमानों और मराठों को एक साथ आरक्षण देने की बात कही थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से मांग को खारिज किए जाने के बाद भी केवल मराठों तक आरक्षण को सीमित कर दिया।
जाति के हिसाब से जनगणना कराने में सरकार की झिझक आरक्षण को प्रभावी रूप से लागू करने में दूसरी बड़ी चुनौती बनी हुई है। जाति के हिसाब से डाटा को अपडेट करना देश के पिछड़े वर्गों की एक लंबे समय से रुकी हुई मांग है। एक ऐसे समाज में जहां हर पहलू से जाति को महत्व दिया जाता है वहां हम लगभग एक शताब्दी पुराने डाटा पर अपने सभी सकारात्मक कामों और विकास योजनाओं की बुनियाद नहीं रख सकते। विकास और सामाजिक न्याय की योजनाओं के समान वितरण के लिए जातियों का ठीक-ठीक और अप-टू-डेट डाटा होना बहुत ज़्यादा महत्व रखता है। जब आरक्षण को कमज़ोर करते हुए आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को आरक्षण देने और क्रीमी लेयर को निकालने का फैसला लिया गया तो यह सब वास्तविक आंकड़ों पर नहीं बल्कि केवल कल्पनाओं पर आधारित था।
इसलिए पॉपुलर फ्रंट की राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद शासन, शिक्षा और संसाधनों के आवंटन में सभी वर्गों के उनकी आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित बनाने के लिए जाति के हिसाब से जनगणना और पर्याप्त आरक्षण की मांग करती है। साथ ही पॉपुलर फ्रंट की एनएससी न्यायपालिका से अपील करती है कि वह प्रतिनिधित्व और आरक्षण से जुड़ी समस्याओं पर फैसला देते समय सामाजिक न्याय के उसूलों और संवैधानिक सिद्धांतों को बरकरार रखें।
अनीस अहमद,
महासचिव,
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली