लॉकडाउन का प्रभाव आम नागरिकों पर

डा. जावेद आलम खान
जैसा की यह सभी को भली भांति मालूम है कि पिछले साल 23
मार्च को केंद्रीय सरकर द्वारा बिना किसी उचित तय्यरी एवं योजना के अचनाक लॉकडाउन किया था जिसके अब एक साल पूरे हो चुके हैं। सरकार के इस गलत तरीके से लॉकडाउन करके यातायात रोक देने से यह पूरे संसार ने देखा की सब से अधिक जो वर्ग प्रभावित हुआ वह प्रवासी मजदूरों का था बल्कि हम यूँ कह सकते हैं की सरकार ने उनको सड़कों पर मरने के लिए छोड़ दिया था । शहरों के विकास में इन मजदूरों की बड़ी अहम् भूमिका रही है लेकिन इस लॉकडाउन ने उन को इस बात पर मजबूर कर दिया की वह अब इन शहरों को छोड़ के हज़ारों मील दूर अपने गावं पैदल ही वापस जाएं। जिस की वजह से सैकड़ों मजदूर जान से हाथ धो बैठे । इसी प्रकार जो लोग एक शहर से दूसरे शहर में किसी आवश्यकता की वजह से यात्रा पे निकले थे वह भी बहुत सारी समस्याओं के शिकार हुये।
मौजूदा आंकड़ों के अनुसार इस समय भारत में लगभग 40 करोड़ लोग असंगठित छेत्रों में काम करते हैं, जिन की हालत हमेशा से दयनीय रही है क्योंकि उन के लिए सरकार द्वारा किसी विशेष प्रकार की सामाजिक सुरक्षा का कोई प्रावधान नहीं है । भारत में निति और बजट के स्तर पर मजदूरों को लेकर सरकारों ने कभी कोई ध्यान नहीं दिया।
अज़ीम प्रेम जी विश्वविद्यालय के एक अध्यन से पता चलता है की लगभग ६८ प्रतिशत मजदूरों की आमदनी में कमी देखी गयी जो अप्रैल २०२० में लॉकडाउन की कारण से बेरोज़गार हो गए थे । वहीँ महिलाओं के ऊपर इसका प्रभाव और भी अधिक पड़ा और लगभग उनमें ५६ प्रतिशत महिलाऐं बेरोज़गार हो गयीं। अज़ीम प्रेमजी विश्विद्यालय के एक और अध्यन से पता चलता है कि लोगों की आय का स्तर घट कर आधा हो गया और खाध असुरक्षा में बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसी प्रकार लोगों के खाद्य उपभोग में लॉकडाउन के दौरान काफी कमी आयी है। ( यह तुलना दिसंबर २०१९ अवं अगस्त २०२० के बीच की है )
लॉकडाउन के कारण लोगों की बदहाली का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की हंगर वाच के २०२० के एक सर्वे के अनुसार ४८ प्रतिशत लोग दिन में बिना खाये ही रहते हैं और 3० प्रतिशत लोग महीने में कई बार बिना खाये ही रहते हैं और इस का प्रभाव सब से अधिक महिलाओं और बच्चों के पोषण पर पड़ा है। इसी तरह लोगों के पौष्टिक आहार के सेवन में काफी कमी देखने को मिली है।
सब से अहम् चौकाने वाली बात ये है की सरकारी वितरण प्रणाली जिससे करोड़ों लोग फ्री और सब्सिडी में राशन प्राप्त करते हैं सरकार ने कोरोना काल के कारण उन लोगों को अतिरिक्त राशन प्रदान करने का वादा किया था परन्तु पिछले वर्ष नवंबर में सरकार ने उन लोगों का राशन रोक दिया जबकि सरकार के भंडारण में चार गुना राशन भरा हुआ था। एक और आश्चर्यजनक बात यह है की निति आयोग यह चाह रही है कि देहाती छेत्रों में रिआयती दरों पर राशन पाने वालों का प्रतिशत ७५ से घटाकर ६० और शहरी छेत्रों में ५० से घटाकर ४० कर दिया जाये। इस प्रकार आय में कमी के साथ साथ राशन में भी कमी के कारण बच्चों और महिलाओं के पोषण में बहुत अधिक प्रभाव पड़ने वाला है।
कोविड ने जितने भी सामाजिक और आर्थिक विभागों को प्रभावित किया शिक्षा उनमें सर्वाधिक प्रभावित होने वाला क्षेत्र रहा है, लॉकडाउन के फ़ौरन बाद से सरे देश के स्कूल बंद हो गए और सरे विद्यार्थी अपने घरों में बैठ गए बच्चों को सब से अधिक प्रसन्नता छुट्टी से होती थी परन्तु इस बार सब स्कूल आने के लिए बेचैन हो गए। गरीब, दलित, अल्पसंख्यक समुदाय और पछड़े वर्ग के बच्चे अमूमन सरकारी स्कूलों में ही जाते हैं लेकिन इस लॉकडाउन से सरकारी स्कूलों में क्लासेज लगभग पूर्ण रूप से आस्थगित हो गयीं । कुछ धनवान और अमीर घरों के ही बच्चे प्राइवेट स्कूलों में फीस महँगी होने के कारण जा पते हैं, इन में से भी कुछ ही स्कूलों ने ऑनलाइन पढ़ाई की प्रक्रिया आरम्भ की, उन में भी कुछ बच्चों के पास मोबाइल, लैपटॉप और टेबलेट नहीं थे जिन के पास थे वो भी कहीं नेटवर्क के अच्छा न होने के कारण तो कुछ ग्रामीण छेत्रों में लाइट बराबर न होने के कारण पूर्णरूप से फायदा नहीं उठा सके बहुत कम ही बच्चे हैं जो ठीक ढँक से इस प्रक्रिया से फायदा उठा सके । शिक्षा की परिस्थिति इतनी अधिक ख़राब है की लॉकडाउन के कारण बच्चों के माता पिता उन की फीस नहीं चुका पा रहे, किताबों की व्यवस्था नहीं कर पा रहे और उन की शिक्षा रोक दे रहे हैं। बच्चों से बात कर के यह पता चल रहा है कि उन में से कुछ ने पढ़ाई छोड़ दिया है कुछ जिस कक्षा में थे उसी में हैं और अधिकतर तो जो जानते थे वो भी भूल गए।
शिक्षा की अवस्था इतनी ख़राब होने के बावजूद सरकार के पास शिक्षा को लेकर कोई विशेष योजना नहीं है चाहे हम कोविड पैकेज की बात करें या २०२१-२०२२ के बजट की न तो सरकार ने विद्ध्यार्थियों के लिए किसी प्रकार के किसी इंस्ट्रूमेंट का प्रबंध किया न ही उन की फीस या छत्रवृति को लेकर ही , जबकि सरकार ने इस दौरान दूसरे सेक्टर्स में कुछ नयी स्कीमों की शुरुआत की है (जैसे की गरीब कल्याण योजना और आत्म निर्भर पैकेज )। इन परिस्थितियों में शिक्षा के मैदान में विशेष क़दम उठाने की आवश्यकता थी परन्तु सरकार की तरफ से बच्चों और उन के माता पिता को सिर्फ निराशा ही हाथ लगी। केरल सरकार ने इस सम्बन्ध में बहुत ही प्रभावी क़दम उठाते हुए प्राथमिक स्तर की शिक्षा को सुचारु बनाने के लिए नए कार्यक्रम शुरू किये हैं और स्कूलों को आमजन से जोड़ दिया है। मौजूदा सरकार की शिक्षा नीतियों को देख कर यही प्रतीत होता है की इस का पूरा ध्यान शिक्षा के हिन्दुकरण पर ही केंद्रित है न की शिक्षा को स्वतन्त्र और समावेशी रखने में, इस प्रकार सरकार यह दर्शाती है की शिक्षा उस के प्राथमिकताओं में से है ही नहीं।
सुरक्षित रोज़गार और जीविका के बेहतर अवसर महिलाओं के किये बहुत महत्व रखते हैं जबकि देखा यह गया है की देहाती छेत्रों में पांच में से चार कार्य के लिए इच्छुक महिलाऐं बेरोज़गार हैं, जो महिलाऐं हैं भी काम पर उन के साथ स्वयंसेवक की भांति व्यव्हार किया जाता है उन में आँगन बड़ी सहायिका एवं आशा कार्यकर्ता सम्मिलित हैं, इन की वेतन मान बहुत ही कम हैं और इन के लिए कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं जिस से उन के कार्य और रूचि भी प्रभावित हैं। अतः सरकार को चाहिए की इन महिलाओं के लिये सुरक्षित रोज़गार, सुरक्षा और आय की बेहतर पूर्ती पर ध्यान दे ताकि महिलाओं और बच्चों के सवास्थ एवं पोषण पर पूरा ध्यान दिया जा सके।
इसी प्रकार ग्रामीण छेत्रों में अर्थव्यस्था को बेहतर करने के लिए मनरेगा की एक अच्छी भूमिका हो सकती है सरकार को चाहिए की मनरेगा में वह नए मजदूरों को जोड़े, मजदूरी दर में बढ़ोतरी करे और कुल वार्षिक मजदूरी दिन १०० से बढ़ा के २०० करे, ऐसे ही सरकार शहरी छेत्रों में भी मनरेगा की तरह किसी इस्कीम की शुरुआत करे ताकि लोगों को रोज़गार के बेहतर अवसर प्राप्त हो सकें।
सरकार की ज़िम्मेदारियाँ अपने सम्मानित नागरिकों के ऊपर माता पिता के समान होती है जो लॉकडाउन और कोरोना जैसी महामारी में कहीं ज़्यादा बढ़ जाती है, ऐसी परिस्थिति में वह किसी भी नागरिक को यूँ ही सड़क पर मरने के लिए नहीं छोड़ सकती, न ही वह अपने देश के नागरिकों के शिक्षा, स्वस्थ या पोषण को नज़रअंदाज़ कर सकती है, ऐसा करना बहुत ही गैर ज़िम्मेराराना क़दम होगा, किसी भी सरकार की क़ाबिलियत और उस की क्षमता ऐसी ही परिस्थितियों में आज़मायी जाती हैं, परन्तु बड़े ही अफ़सोस के साथ यह कहना पड़ रहा है कि मौजूदा सरकार इस महामारी में अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में बिल्कुल भी सक्षम नहीं रही है बल्कि ऐसे क़दम उठाए हैं जिस से आमजनों को हानि के इलावा कोई लाभ नहीं मिला । इसलिए सरकर को चाहिए कि वह आमजनों के हितों को देखते हुए अपने फैसलों पे गौर करे और उनको सुधारने की कोशिश करे, अपनी अहम् नीतियों में स्वास्थ, शिक्षा और पोषण को प्राथमिकता दे और नागरिकों के रोज़गार पर विशेष ध्यान दे । तब जाकर आमजन खुश रहेंगे, देश का विकास होगा और सरकार को भी सफलता प्राप्त होगी।

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शम्स तबरेज़ क़ासमी मिल्लत टाइम्स ग्रुप के संस्थापक एंड चीफ संपादक हैं, ग्राउंड रिपोर्ट और कंटेंट राइटिंग के अलावा वो खबर दर खबर और डिबेट शो "देश के साथ" के होस्ट भी हैं सोशल मीडिया पर आप उनसे जुड़ सकते हैं Email: stqasmi@gmail.com