मिल्लत टाइम्स,नई दिल्ली:सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल 2016 मंगलवार को लोकसभा से पास हो गया। विधेयक से 1955 के कानून को संशोधित किया गया है। इससे अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर मुस्लिमों (हिंदु, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी व इसाई) समुदाय के लोगों को नागरिकता देने का रास्ता तैयार होगा। अभी के कानून के अनुसार इन लोगों को 12 साल बाद भारत की नागरिकता मिल सकती है, लेकिन बिल पास हो जाने के बाद यह समयावधि 6 साल हो जाएगी। वैध दस्तावेज न होने पर भी 3 देशों के गैर मुस्लिमों को इसका लाभ मिलेगा। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि यह विधेयक केवल असम तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि यह पूरे देश में प्रभावी रहेगा। पश्चिमी सीमा से गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में आने वाले पीड़ित प्रवासियों को इससे राहत मिलेगी।
समझौते के बावजूद सहयोग नहीं कर रहे पड़ोसी देश: राजनाथ
राजनाथ का कहना था कि अगर हम इन लोगों को शरण नहीं देंगे तो ये लोग कहां जाएंगे। भारत ने गैर मुस्लिमों को सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराने के लिए पाकिस्तान व बांग्लादेश से समझौता किया है पर इसका पालन नहीं हो रहा। उन्होंने कहा कि संविधान के प्रावधानों के अनुरूप ही विधेयक को तैयार किया गया है। सरकार इसे बगैर किसी भेदभाव के लागू करेगी। असम के अनुसूचित जनजाति के लोगों के हितों की रक्षा के लिए सरकार कदम उठाएगी।
नागरिकता मसले पर राज्यों को पूरी मदद देगा केंद्र
विधेयक का कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, माकपा के साथ कुछ अन्य पार्टियां लगातार विरोध कर रही हैं। असम के ज्यादातर लोग इसके विरोध में हैं। राजनाथ ने इस पर कहा कि विधेयक पूरे देश में प्रभावी रहेगा और गैर मुस्लिमों को नागिरकता देने के मसले पर केंद्र राज्यों को हर संभव मदद करेगा। केंद्र ने असम की ताईहोम, कोच राजबोंगसी, चुटिया, टी ट्राइब्स, मोरन और माटक समुदाय को एसटी स्टेटस देने का निर्णय लिया है।
बोडो कछारी और कार्बिस के लिए अलग से बिल:राजनाथ
राजनाथ सिंह ने कहा कि असम के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले बोडो कछारी और मैदानों में रह रहे कार्बिस के लिए अलग से बिल लाया जाएगा। इसके जरिए उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाएगा। आटोनॅामस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल को मजबूत बनाने के लिए संविधान की छठी अनुसूची में सरकार संशोधन करने जा रही है।
जेपीसी की सिफारिशों पर बिल में किए बदलाव
बिल को पहली बार 2016 में संसद में पेश किया गया था। बाद में इसे संयुक्त संसदीय समित के पास भेजा गया। समिति की सिफारिशों पर इसमें सुधार कर मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया। कांग्रेस ने विरोध करते हुए कहा कि बिल को सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए। सरकार ने मांग नहीं मानी तो पार्टी ने सदन से वाक आउट कर दिया। तृणमूल के सौगत रॉय ने भी इसका विरोध किया। राजद, एआइएमआइएम, बीजद, शिवसेना, माकपा, एआइडीयूएफ और आइयूएमएल ने भी विधेयक का विरोध किया।
नेहरू भी थे गैर मुस्लिमों को शरण देने के पक्ष में:राजनाथ
राजनाथ सिंह ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू समेत कई नेता भी पड़ोसी देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों को शरण देने के पक्ष में थे। उनका कहना था कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी बतौर नेता विपक्ष राज्यसभा में कहा था कि भाजपा सरकार बांग्लादेश में रह रहे गैर मुस्लिमों के मामले में उदार रवैया अपनाए।
एनडीए के घटकों ने भी किया विधेयक का विरोध
नागरिकता विधेयक के मसले पर असम गण परिषद ने असम की भाजपा नीत सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। अगपा का कहना है कि यह बिल असम समझौते के खिलाफ है। इसके बनने से नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन का काम प्रभावित होगा। शिवसेना और तेदेपा भी इसके विरोध में हैं। मिजोरम व मेघालय सरकारों कैबिनेट में इसके विरोध में प्रस्ताव पास किया है।