नागरिकों के नाम रवीश कुमार का एक पत्र, बंद कर दें न्यूज़ चैनल और सामान्य रहें।

भारत के शानदार नागरिकों,

9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि मामले पर फ़ैसला सुनाने जा रहा है। दशकों पुराना मुक़दमा है। दोनों पक्षों की तरफ़ से ऐसी कोई बात नहीं जिसे लेकर पब्लिक में बहस नहीं हुई है। दोनों समुदाय के लोगों ने जान भी दी है। जितना कहना था, सुनना था, लिखना था वो सब हो चुका है। झूठ और सच सब कुछ कहा जा चुका है। पचासों किताबें लिखी गईं हैं। हम या आप किसी बात से अनजान नहीं हैं। कई साल तक बहस और हिंसा के बाद सभी पक्षों में इस राय पर सहमति बनी थी कि जो भी अदालत का फ़ैसला आएगा वही मान्य होगा। यहीं बड़ी उपलब्धि थी कि सब एक नतीजे पर पहुँचे कि अदालत जो कहेगा वही मानेंगे। तो अब इसे साबित करने का मौक़ा आ रहा है।

30 सितंबर 2010 को भी इस मामले में फ़ैसला आ चुका है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ ज़मीन को तीन पक्षों में बाँट दिया था। दो तिहाई ज़मीन मंदिर पक्ष को ही मिला था। तीनों पक्ष अपने अपने दावे लेकर सुप्रीम कोर्ट गए। तो कुछ नया नहीं होगा। जो भी होगा उसका बड़ा हिस्सा 2010 में आ चुका है। उस साल और उस दिन भारत के नागरिकों ने अद्भुत परिपक्वता का परिचय दिया था। लगा ही नहीं कि इस मसले को लेकर हम दशकों लड़े थे । हमने साबित किया था कि मोहब्बत से बड़ा कुछ नहीं है। कहीं कुछ नहीं हुआ। तब भी नहीं हुआ जब इलाहाबाद कोर्ट से निकल कर सब अपनी अपनी असंतुष्टि ज़ाहिर कर रहे थे और सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कर रहे थे।

हम इस बार भी साबित करेंगे। ठीक है हम बहस करते हैं। मुद्दों को लेकर भिड़ते रहते हैं लेकिन जब मोहब्बत साबित करने की बारी आएगी तो हम मोहब्बत साबित करेंगे। हर्ष करना है न मलाल रखना है। जिसके हिस्से में फ़ैसला आए उसी में शामिल हो जाइये। यह मुल्क एक फ़ैसले से बहुत बड़ा है। कल का दिन ऐतिहासिक नहीं है। 30 सितंबर 2010 को भी ऐतिहासिक घोषित किया गया था। अब किसी को न वो फ़ैसला याद है और न इतिहास। इसलिए सामान्य रहिए। फ़ैसले को सुनिए। बातें भी कीजिए लेकिन संतोष मनाइये कि यह मसला ख़त्म हो रहा है।

हमें अपने प्यारे वतन को और ऊँचा मक़ाम देना है। अच्छे स्कूल बनाने हैं। अस्पताल बनाने हैं। ऐसी न्यायपालिका बनानी है जहां जज का इक़बाल हो। इंसाफ समय पर मिले। पुलिस को ऐसा बनाना है कि जहां एक महिला आई पीएस भीड़ से पिट जाने के बाद चुप न रहे। हमें बहुत बनाना है। राजनीति ऐसी बनानी है जिसे कोई उद्योगपति पीछे से न चलाए। बहुत कुछ करना है। नौकरियाँ जा रही हैं। लोगों के बिज़नेस डूब रहे हैं। नौजवानों का जीवन बर्बाद हो रहा है। हम सबको इन सवालों पर जल्दी लौटना होगा।

इसलिए दिलों में दरार न आए। बाहों को फैला कर रखिए। कोई हाथ मिलाने आए तो खींच कर गले लगा लीजिए। इस झगड़े को हम मोहब्बत का मक़ाम देंगे। हम बाक़ी ज़िम्मेदारियों में फेल हो चुके नेताओं को ग़लत साबित कर देंगे। राजनीति को छोटा साबित कर देंगे। भारत के नागरिकों का किरदार ऐसे फ़ैसलों के समय बड़ा हो जाता है। 9 नवंबर का दिन आम लोगों का है। आम लोग 2010 की तरह फिर से साबित करेंगे कि हम 2019 में भी वहीं हैं।

मैं जैसे ही शारजाह पुस्तक मेले के लिए दुबई एयरपोर्ट पर उतरा, ख़बर मिली कि 9 नवंबर को फ़ैसला आ रहा है। मेरी प्रतिक्रिया सामान्य थी। 2010 में सिहरन पैदा हो गई थी। जाने क्या होगा सोच सोच कर हम लखनऊ गए थे । फ़ैसले के दिन यूपी और शेष भारत ने इतना सामान्य बर्ताव किया कि शाम तक लगने लगा कि बेकार में सुरक्षा को लेकर इतनी बैठकें हुईं। झूठमूठ कर मार्च होते रहे। सब अपने अपने काम में लगे थे। अच्छा होता हम भी लखनऊ न आते और अपनी फ़ैमिली के साथ होते।

मुझे पूरा यक़ीन है कि 9 नवंबर का दिन भी विकिपीडिया में कहीं खो जाएगा। लोग सामान्य रहेंगे और सोमवार से अपने अपने काम पर जुट जाएँगे। जैसे मैं जिस काम के लिए आया हूँ वो काम करता रहूँगा। गीता में समभाव की बात कही गई है। समभाव मतलब भावनाओं को संतुलित रखना। एक समान रखना। कल इस मुद्दे से छुटकारा भी तो मिल रहा है।

फ़ैसले को लेकर जो भी विश्लेषण छपे उसे सामान्य रूप से पढ़िए। भावुकता से नहीं। जानने के लिए पढ़िए।याद रखने के लिए पढ़िए। हार या जीत के लिए नहीं। पसंद न आए तो धमकाना नहीं है और पसंद आए तो नाचना नहीं है। सच कहने का वातावरण भी आपको ही बनाना है। साहस और संयम का भी।

2010 में मीडिया ने शानदार काम किया था। ग़ज़ब का संयम था। इस बार ऐसा नहीं है। लेकिन हम इस मीडिया की असलियत जान गए हैं। कल से लेकर सोमवार तक न्यूज़ चैनल बंद कर दें। दो चार दिनों तक न्यूज चैनलों से दूर रहें। मोहल्लों में आवाज़ दें कि टीवी से दूर रहें। और भी माध्यम हैं जिनसे समाचार सुने जा सकते हैं। रेडियो सुनिए। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री और विपक्ष के मुख्य नेताओं को सुनिए। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जाकर फ़ैसले को खुद पढ़िए। चैनलों में आने वाले फ़ालतू प्रवक्ताओं से दूर रहे हैं। किसी नेता की बात मत सुनिए। किसी एंकर के चिल्लाने से तनाव मत लीजिए। मुस्कुराइये। जो घबराया हुआ मिले उसे पकड़ कर चाय पिलाइये। कहिए रिलैक्स। टेंशन मत लो।

आपका,

रवीश कुमार

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