कोरोना की दूसरी लहर ने ढ़ाया कहर – कोरोना के इस काल में न शमशान न कब्रिस्तान लाशों की ढ़ेर में जल रहा: सारा हिंदुस्तान

नई दिल्ली (मासूमा सिद्दीकी) कोरोना की पहली ज़ोरदार थपेड़ झेलने के बाद अब दुसरी लहर ने ढ़ाया है कहर। 2020 में भयानक तौर पर 9 महिना गुज़ार लेने के बाद कहीं न कहीं लोग मान चुके थे कि अब कोरोना की वापसी नही हेगी। अब कोरोना वायरस कोई ख़ास चुनौती नही रहा। देश के तमाम अलग अलग हिस्सों में जमा हुई भीड़ और लोगों के आपसी मिलने जुलने के व्यवहार ने मन की इस चुनौती को और बढ़ावा दे दिया। अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में बिना मास्क के टी 20 मैचों में उत्साहित दर्शकक जिधर एक ओर दिखे वहीं दुसरी तरफ़ 13 लाख की संख्या में हरिद्वार पहुँचे श्रद्धालुओं की श्रद्धा भी जोश में आ गई। मास्क और दो ग़ज़ दूरी की बात दरकिनार हो गई। शादी व्याह, रैली, उत्सव, त्यौहारों में 50 से ज़्यादा की भीड 500 से ऊपर पहुँची। सेनेटाइज़र से हांथ धोने और सोशल डिस्टेंस की बात भी आती जाती रही। टिकाकारण की लुकाछिपी ने भी बड़े आश्वासन का काम किया। इन्ही आशवासनों के बीच चुनाव, रैली और सत्ता की होड़ जागी। इस मुश्किल वक़्त में भी सत्ताधारियों ने चुनाव का झंडा लहरा दिया। बाकी सारी बातों से पल्ला झाड़ लिया। ये साफ तौर पर देखा जा सकता है कि आज जो कोरोना से देश की हालत है उससे सैकड़ों जलती लाशों को न शमशान मिला है न कब्रिस्तान। हुकुमत की ये लाईकी है जसमें बेबस लाशों के साथ जल रहा है सारा हिंदुस्तान।
ये बात सब जानते हैं कि कोरोना की पहली लहर के मुकाबले इसकी दुसरी लहर ने अन्य देशों में ज्यादा तबाही मचाई थी। कोरोना की दुसरी लहर में यूरोपीय देशों के ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम और इटली जैसे देशों की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई थी। जिसमें पहली लहर के मुकाबले दुसरी लहर में 4 लाख मौतों की तादात बढ़ गई थी। ये डराने जैसी बात नही थी। ये वो तल्ख हक़ीकत थी जिससे भारत के लोगों ने अंजान बने रहना ही सही समझा। सोचा जाए तो हम दुसरे देशों की बरबादी से अपनी तबाही को रोकने का सबक ले सकते थे। लेकिन आम जनता के बड़े हिस्से ने कही न कहीं ये धारणा बना ली थी कि अब कोरोना नही आने वाला। हुआ ये कि दूसरों की मौंतों को नज़रअंदाज़ करने का नजारा आज हमारे सामने कोरोना से मर रहे लोगों की अफ़राद लाशों के रूप में सामने खड़ा हैं।
देश में कोरोना की दुसरी लहर का संक्रमण हद से ज़्यादा फैल गया है। कोरोना के मामले में आई तेज़ रफ़्तार आए दिन गंभीर रूप लेती जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी आंकडों के अनुसार सबसे बुरी स्थिति महाराष्ट्र की दर्ज की गई। जिसके दिए आंकड़े इस प्रकार हैं- महाराष्ट्र कोरोना अपडेट ये है-

महाराष्ट्र में एक दिन में 42,582 केस मिले ।वही एक दिन में 850 मौतें हुई,मुम्बई में भी एक दिन में 1952 मामले और 68 की मौत
राज्य में पिछले 24 घन्टे में 850 मरीजो की मौत हुई है।
अब तक कुल मौत 78,857 है।
राज्य में अब-तक एक्टिव मरीजों की कुल संख्या 5,33,294तक ।
((एक्टिव मरीजो की संख्या लगातार कम हो रही है जो कि अच्छी बात है ))
मुंबई में 24 घंटे में कोरोना पॉजिटिव 1952 नए केस मिले।
((कल से मुम्बई में कम केस मिले))
मुंबई में 24 घंटे में आज कोरोना से 68 मरीज की मौत दर्ज की गई है।
मुंबई में अब तक के कुल केस 6,83,185 है।
और मुम्बई में अब-तक हुई कुल मौत 14,040 है।
आज 54,535 मरीज ठीक होकर अपने घर गए है।अबतक ठीक होनेवाले मरीजो कि कुल संख्या 46,54,731 है।
महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटों में 42,582 पॉजिटिव केस मिले।
राज्य में अबतक की रिकवरी रेट 88.85 प्रतिशत है।
मुम्बई में एक्टिव केस की संख्या तेजी से घट रही है–अब मुम्बई में कुल एक्टिव केस 36,338 ही बचे है
मुम्बई में अब तक कुल डिस्चार्ज मरीज की संख्या बढ़कर 6 लाख 30 हजार 900 हो गई है
महारास्ट्रभर में कुल कोविड केस 52 लाख 69 हजार 292 हो गए है
और मृत्यु की दर 1.49 प्रतिशत है।

ज़ाहिर है इन तमाम तथ्यों से आंख नही चुराई जा सकती। कोरोना के पेंडमिक हालात को एंडेमिक समझने का नतीजा ये है कि मुम्बई में विद्युत शवदाह गृह के बाहर लाशों की कतारें लगी हुईं हैं। जिसमें से एक दिन में केवल 25 लाशों को जलाया जा रहा है। जिसमें पूरे 45 मिनट का टाईम एक डेड बाॅडी को जलने में लगता है। कब्रिस्तान और शमशान में ज़्यादा से ज़्यादा अंतिम संस्कार के बावजूद भी लोग सड़कों पे अपनों की लाशें लिए कतार में बैठे हैं। बहुत सारे लोग तो आर्थिक तंगी की वजह से अपनों का अंतिम संस्कार तक नही कर पा रहे हैं। ये बात साफ़ है कि वायरस का प्रकोप भले ही महाराष्ट्र मुम्बई में केंद्रित दिख रहा हो लेकिन अब देष का बहुत बड़ हिस्सा इसकी ज़द में है। जिसमें मुम्बई, नागपुर के अलावा लखनऊ, इलाबाद, बनारस, रांची, और भोपाल समेत कई और भी बड़े शहरों में इस वायरस से तबाही मची हुई है। कह सकते हैं इस संकट काल में प्रशासन की ओर से सही व्यवस्था न होने की वजह से ऑक्सीज़न सिलेंडर की कालाबाज़ारी, अस्पतालों में बेड न होने, दवा उपलब्घ न होने और वैक्सीन के अभाव में लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। अस्पताल के दरवाज़े तक जाकर भी कोविड के मरीज़ों ने दम तोड़ दिया। टूटती सांसों की डोर पर चुनाव का झंडा लहराया गया। जलते सुलगते देश की ओर से मुंह फेर लेने वाले देश प्रधान ने रोम सा जलता हिंदुस्तान का दृश्य दिखलाया जलती लाशों की सुनामी पर निरो ने सुख की बंसी बजाया। जीते जी सांसों के लिए तड़पते लोगों ने मरने के बाद भी बेईज्जती ही उठाया। ये हिंदुस्तान के फेल हुए अनोखे सिस्टम की तस्वीर लफ़्ज़ों की मोहताज नही है। इसपर लिखने और बोलने से ज़्यादा सोचने की ज़रूरत है।

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